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अत्थपरिग्गहन
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अत्थपरिग्गहन नपुं.. तत्पु. स. [अर्थपरिग्रहण], हितकारक, उपयोगी अथवा शुभ का पूर्णतया ग्रहण अथवा ज्ञान, अर्थ (तात्पर्य) पर अच्छी पकड़, अर्थ का पूर्ण ज्ञान - ... चित्ते उप्पन्ने चित्तवसेनेव ... अत्थपरिग्गहणं सात्थकसम्पजनं म. नि. अट्ठ (मू.प.) 1(1).272.. अत्थपरिच्छेद पु., ष. तत्पु. स., [अर्थपरिच्छेद], अर्थ की परिभाषा, अर्थ का लक्षण, अर्थ का विनिश्चय - ... वा अत्थपरिच्छेदो वा ..., सद्द. 2.602. अत्थपरिदीपना स्त्री., [अर्थपरिदीपन], अर्थ का पूर्ण प्रकाशन, अर्थ की व्याख्या - गहेत्वाति इमस्स पन पदरस अयं
अत्थपरिदीपना, विसुद्धि. 1.112, पाठा. अत्थदीपना. अत्थपुच्छन नपुं, अर्थ के विषय में प्रश्न, वास्तविक महत्त्व
के विषय में प्रश्न - अत्थपुच्छनं पदक्खिणकम्म, थेरगा. 36. अत्थपुरेक्खार त्रि., अर्थ-व्याख्यान को उत्तम रूप से निष्पादित करने मे कुशल, अर्थ-व्याख्याताओं में अग्रगण्य, अट्ठ. का स्वाध्याय करने वाला - अनापत्ति अत्थपुरेक्खारस्स, ..., पारा. 192; अत्थपुरेक्खारस्साति अनिमित्तातिआदीनं पदानं अत्थं कथेन्तस्स, अट्ठकथं वा सज्झायं करोन्तस्स, पारा. अट्ठ. 2.123. अत्थप्पभेद पु., तत्पु. स. [अर्थप्रभेद], पदार्थों का वर्गीकरण, अर्थों या तात्पर्यो में विभिन्नता -- पुप्फ नपुं., विविध अर्थ- रूपी पुष्प - ... नानप्पकारेहि अत्थप्पभेदपप्फेहि अतिविय, खु. पा. अट्ठ. 152; - पुच्छा स्त्री., अर्थों में विभिन्नताविषयक प्रश्न - कतीति अत्थप्पभेदपुच्छा, सु. नि. अट्ठ. 1.128. अत्थबद्ध त्रि., [अर्थबद्ध], किसी बात को अथवा विषय को समझने के लिए अत्यन्त आतुर, किसी बात अथवा प्रयोजन विशेष के साथ जुड़ा हुआ - सब्बे तयि अत्थबद्धा भवन्ति, सु.. नि. 384; अत्थबद्धाति अपि नु खो इमं पहं ब्याकरेय्य, इमं कडं छिन्देय्याति एवं अत्थबद्धा भवन्ति, सु. नि. अट्ठ. 2.93. अत्थमञ्जक त्रि., [अर्थभञ्जक], कल्याण अथवा हित को नष्ट करने वाला, हानि पहुंचाने वाला - इधलोकपरलोकत्थभञ्जकं अकल्याणमित्तसंसग्ग, खु. पा. अट्ठ. 100; परेसं अत्थभञ्जकं मुसावादञ्च भासति, ध. प. अट्ठ.2.206. अत्थभजनक उपरिवत् - अत्थभञ्जनकडेन अति किलेसा
वुच्चन्ति, सु. नि. अट्ठ. 1.94. अत्थभूत त्रि., [अर्थभूत], हितकारक बात, लाभदायक या कल्याणमय धर्म - अत्थत्थमेवाति अत्थभूतमेव अत्थं जा. अट्ठ. 7.183.
अत्थरति अत्थमि त्रि., [अस्तमित], डूबने की स्थिति वाला, लगभग अस्त होने वाला, (सूर्य)- परिनिब्बायि सम्बुद्धो, उळुराजाव अत्थमि, बु. वं. 6.31; अस्थमीति अत्थङ्गतो, केचि अत्थं गतो ति पठन्ति, बु. वं. अट्ठ. 182. अत्थयुत्त त्रि., तत्पु. स., [अर्थयुक्त], उपयुक्त, महत्त्वपूर्ण, सार्थक - अत्थं अब्भन्तरं कत्वा अत्थयुत्तं कथं निसामयि, दी. नि. अट्ठ. 3.104; सहितं मेति मह वचनं सहितं सिलिट्ठ
अत्थयुत्तं कारणयुत्तन्ति अत्थो, म. नि. अठ्ठ. (म.प.) 2.169. अत्थयुत्ति स्त्री., [अर्थयुक्ति], किसी भी बात की तार्किक सङ्गति, कथन की युक्ति-युक्तता - दिस्सतीति विजानेय्य, सद्धिमेवत्थयुत्तिया, सद्द. 1.44; - पुच्छा स्त्री., [अर्थयुक्ति पृच्छा], तर्क-संगत और सार्थक प्रश्न, युक्तिपूर्ण कथन के विषय में प्रश्न, तार्किकता के विषय में प्रश्न - तत्थ कथं
सूति सब्बत्थेव अत्थयुत्तिपुच्छा होति, सु. नि. अट्ठ. 1.199. अत्थ-योजना स्त्री., ष. तत्पु. स., [अर्थयोजना], अर्थसङ्गति, व्याख्यान, अर्थ की सङ्गति का प्रदर्शन - तत्रायं भूतमत्थं कत्वा सङ्घपतो अत्थयोजना, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).220; ... गाथाद्वयस्स वत्तविपरियायेन अत्थयोजना वेदितब्बा, पे. व. अट्ठ. 122; पालि ग्रन्थों के कतिपय व्याख्यानों के शीर्षक के रूप में भी प्रयुक्त. अत्थरक पु., [आस्तरक], गलीचा, बिछावन, चादर - पटलिकाति घनपुप्फो उण्णामयत्थरको, अ. नि. अट्ठ. 2.167; ... चित्तत्थरकादीहि नानावण्णेहि अत्थरकेहि, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.13, पाठा. अत्थरणेहि. अत्थरण नपुं./पु., [आस्तरण], क. आच्छादन, फैलाव, आस्तरण, बिछावन, ओढ़ने वाला चादर - चित्तकन्ति वानविचित्तं उण्णामयत्थरणं पटिकाति उण्णामयो सेतत्थरणो, दी. नि. अट्ठ. 1.78; ख, गलीचा - रतनपतिसिब्बितमत्थरणं कमा, अभि. प. 315; पाठा. अत्थरणक; - पापुरण/पावुरण [आस्तरण-प्रावरण], नपुं., द्वन्द्व स., गलीचा एवं चादर - .... केचि अत्थरणपाचरणं ... देन्ति, मि. प. 259; ... मञ्च वा पीठं वा अत्थरणपापुरणं वा परिभुञ्जित्वा .... ध. स. अट्ठ. 119; एकत्थरणपावुरणापि तुवमुन्ति, चूळव. 22. अत्थरति आ +vथर से व्यु., वर्त., प्र. पु., ए. व., [आस्तृणाति, आङ् + स्तृज आच्छादने क्रयादि], बिछाता है, फैलाता है, ढकता है, आच्छादित करता है - सङ्घो कथिनं अत्थरति, गणो कथिनं अत्थरति, परि. 333; - न्ति ब. व. - सेतुं अत्थरन्ति, जा. अट्ठ. 1.198; -- त्थत भू. क. कृ., फैलाया हुआ, बिछाया हुआ - ... अत्थतं होति कथिनं ..., महाव.
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