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अत्थनय
धर्म की शिक्षा अत्यधम्मानुसिद्धिया जा. अड्ड. 5.52:म्मानुसासक त्रि, अर्थ एवं धर्म की शिक्षा देने वाला अत्थधम्मानुसासको अमच्चो अहोसि, जा. अट्ठ. 4. 175; बोधिसत्तो तस्स अत्यधम्मानुसासको अहोसि जा. अह 281; जा. अट्ठ. 3.354.
अत्थनय पु.. अत्थर + नय ष तत्पु, स. [ अर्थनय], अर्थ स्पष्ट करने की पद्धति एतस्स अत्थनयो वृत्तो, म.नि. अट्ठ. (मू०प.) 1(1).31.
अत्थना स्त्री अथ + अन + आ [अर्थना], अनुरोध, याचना, प्रार्थना, भिक्षा की याचना भिक्खा तु याचनात्थना, अभि. प. 759.
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अत्थनानता स्त्री [अर्थनानात्व] अर्थों में अन्तर अर्थों की
विविधता- विनापि अत्थनानतं, सद्द. 2.340. अत्थनिगमन नपुं. [ अर्थनिगमन] तर्कवाक्य का उपसंहारात्मक वचन - एत्थ ... पदयोजनाय अत्थनिगमनं करिस्साम, म. नि. अड. ( मु.प.) 1(1).59. अत्थनिष्पत्ति स्त्री. [ अर्थनिष्पत्ति ] उद्देश्यपूर्ति फलप्राप्ति, परिणाम किञ्चि अथनिष्यति अपस्सन्तो म. नि. अड. 3. 51 (रो.).
अत्थनिस्सित त्रि., [अर्थनिश्रित] अर्थ या हित से भरा हुआ, लाभप्रद, हितकारक, उपयोगी अत्थनिस्सितं कथेन्तेनपि जा. अ. 3.325; अत्थसहितन्ति अत्यनिस्सितं दी. नि. अट्ठ. 2.278.
अत्थन्तर' त्रि. क. अर्थ के अनुकूल रहने वाला, अर्थ के अन्दर रहने वाला, अर्थ से सङ्गति रखने वाला अत्थञ्च यो जानाति भासितस्स अत्थञ्च अत्वान तथा करोति अत्यन्तरो नाम स होति पण्डितो, थेरगा. 374 ख. हित करने में लगा हुआ या परहितानुरागी चित्त वाला अत्यो परहितं अन्तरे चित्ते यस्स सो, अत्थन्तरो अत्थकथं निसामयि दी. नि. 3.118; द्रष्ट. दी. नि. अट्ठ. 3.104.
अत्थन्तर' नपुं., कर्म. स. [ अर्थान्तर ], दूसरा अर्थ, अर्थ में भिन्नता तत्थ अत्थन्तरं अत्थि, मि. प. 157; नं अत्थन्तरविज्ञापनत्थञ्च .... सद्द. 1.38, 266. अत्थपकासिका स्त्री. तत्पु, स. [ अर्थप्रकाशिका ], अर्थ को स्पष्ट करने वाली अत्थसन्दस्सनीति अत्थष्पकासिका, Gl. 31. 5.246.
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अत्थपच्चत्थिक पु.. छ. स. [ अर्थप्रत्यर्थिक ] अर्थी और
प्रत्यर्थी, न्यायाधिकरण में विचारणीय विवाद में वादी और प्रतिवादी उभो अत्थपच्चत्विका सम्मुखीभूता होन्ति, चूळव.
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अत्थपरिक्खा
204... उभो अत्थपञ्चत्धिक सञ्ञपेतुं अ. नि. 3(2).59: अत्थपच्चत्थिकानं .... जा. अट्ठ० 5.114, पाठा. अत्तपच्चत्तिकानं. अत्थपञ्ञत्ति स्त्री, तत्पु० स० [अर्थप्रज्ञप्ति ], अर्थविषयिणी अवधारणा, अर्थविषयक विचार.... सम्मुतिसच्चभूता उपादापञ्ञत्तिसाता अत्थपञ्ञति वृत्ता अभि. ध. वि. 220. अत्थपटिवेध पु०, तत्पु० स० [अर्थप्रतिवेध], अर्थ का गम्भीर ज्ञान, अर्थ की तह तक जाकर प्राप्त किया हुआ ज्ञान, बौद्धपरम्परा में उल्लिखित 3 प्रकार के ज्ञानों में सबसे गम्भीर स्तर वाला ज्ञान, धर्म की धर्मता का साक्षात्कार कराने वाला
गम्भीर ज्ञान- सतिपुब्बङ्गमाय पञ्ञाय अत्थपटिवेधसमत्थता,
म. नि. अट्ठ. ( मू०प.) 1 ( 1 ). 8. अत्थपटिसंवेदी त्रि. [ अर्थप्रतिसंवेदी], अर्थ का ज्ञाता, धर्म गम्भीर एवं सूक्ष्म अर्थ का ज्ञाता, बुद्ध वचनों के अर्थो का ज्ञाता तस्मिं धम्मे अत्थपटिसंवेदी च होति धम्मपटिसंवेदी दी. नि. 3.191; अत्थपटिसंवेदिनोति पाळिअत्थं जानन्तस्स, दी. नि. अड. 3.196: अत्थप्पटिसंवेदीति अट्ठकथं आणेन पटिसंवेदी अ. नि. अड्ड 2.134 दिता स्त्री, पूर्व से व्यु. भाव. [ अर्थप्रतिसंवेदित्व] अर्थ के गम्भीर आन्तरिक ज्ञान की प्राप्ति की अवस्था यस्मा अत्यपटिसंवेदितादीनं गुणानं पदट्ठानं, खु. पा. अट्ठ. 113. अत्थपटिसम्मिदा स्त्री, तत्पु, स. [ अर्थप्रति सवित्]. अर्हत् के चार प्रकार के प्रतिसंवित् आन्तरिक ज्ञानों में से प्रथम, धर्म के पांच अर्थों के विषय में सुस्पष्ट प्रभेदगत ज्ञान
अत्थपटिसम्भिदा सच्छिकता अ. नि. 1 (2) 185 अत्यपटिसम्भिदाति पञ्चसु अत्थेसु पभेदगतं आणं. अ. नि. अड. 2.348; अत्यपटिसम्भिदाति अत्थे पटिसम्मिदा अत्यप्पभेदस्स पभेदगतं आणन्ति अत्यो विभ. अड. 365 - पत्त त्रि, प्रथम प्रतिसंवित्-ज्ञान अर्थात् अर्थ-प्रतिसंवित् ज्ञान को प्राप्त किया हुआ व्यक्ति अत्यपटिसम्भिदापत्तो होति...... अ. नि. 2 (1).105.
अत्थपद नपुं तत्पु. स. [ अर्थपद], त्रिपिटक में आया हुआ हितकारी वचन, कल्याणमय शब्द, गम्भीर अर्थ वाला बुद्धवचन एक अत्थपदं सेय्यो, ध. प॰ 100; अयमायस्मा न चेव गम्भीरं अत्थपदं उदाहरति अ. नि. 1 (2). 218, यस्स पदस्स अत्थो दुविज्ञेय्यो तं गण्ठिपदं, यस्स अधिप्पायो सुविज्ञेय्यो तं अत्थपदं विसुद्धि महाटी. 2.79. अत्थपरिक्खा स्त्री. तत्पु. स. [ अर्थपरीक्षा] अर्थ के सम्बन्ध में छानबीन या जांच-पड़ताल गहणेन विना अत्थपरिक्खा नोपजायति सद्धम्मो 532.
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