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अत्तकार
अत्तजिगुच्छना यापन की दशा, मैथुन धर्म का सेवन - अत्तकामपारिचरियाय अत्तगुत्त त्रि., [आत्मगुप्त], स्वयं अपने द्वारा रक्षित, अपनी वण्णं भासतीति, पारा. 196; अत्तकामपारिचरियायाति, रक्षा अपने आप करने वाला, उपस्थित अथवा जागरूक मेथुनधम्मसङ्घातेन कामेन पारिचरिया कामपारिचरिया, अत्तनो स्मृति के द्वारा स्वयं को रक्षित किया हुआ - सो अत्तगुत्तो अत्थाय कामपारिचरिया ..., पारा. अट्ट. 2.125; - रूप सतिमा, ध. प. 379; अत्तनाव गुत्तताय अत्तगुत्तो, ध. प. त्रि., ब. स., द्रष्ट, अत्तकाम 1- तयो कुलपुत्ता अत्तकामरूपा अट्ठ. 2.349; अत्तगुत्तोति अत्तनाव गुत्तो रक्खितो, अ. नि. विहरन्ति, म. नि. 1.269.
अट्ठ. 3.3. अत्तकार पु., द्वि. वि., ब. व. में, नपुं. में भी [आत्मकार], अत्तगुत्ति स्त्री., तत्पु. स. [आत्मगुप्ति], अपनी स्वयं की 1. अपना स्वयं का पुरुषार्थ, स्वयं का प्रयास - नत्थि सुरक्षा, आत्मरक्षा, अपना परित्राण अथवा संरक्षण - अत्तगुत्तिया अत्तकारो, नत्थि परकारोति, अ. नि. 2(2).53; 2. अपना अत्तरक्खाय, अत्तपरित्तायाति, अ. नि. 1(2).84; अत्तगुत्तियाति कठोर अथवा दृढ़ प्रयास - अथत्तकारानि करोन्ति भत्तुसु. अत्तनो ... रक्खणत्थाय, अ. नि. अट्ठ. 2.308. जा. अट्ठ. 5.397; - टि. अन्य धर्माचार्यों के मतों के अत्तघञ/अत्तघञा नपुं.. स्त्री॰ [आत्महन], अपनी हत्या, उल्लेखों में प्र. वि., ए. व. में निय. अत्तकारो के स्थान पर __ आत्मविनाश- अत्तघञाय फल्लतिध. प. 164; पाठा. अत्तघाताय, मागधी प्रभावचिह्न के रूप में 'अत्तकारे रूप में भी प्राप्त - अत्तघात पु., [आत्मघात], अपना हनन, अपना विनाश, नत्थि अत्तकारे, नत्थि परकारे, दी. नि. 1.47.
अपनी हानि-अत्तनो घातत्थमेव फलति, एवं सोपि अत्तघाताय अत्तकिच्च नपुं. [आत्म-कृत्य], अपना निजी काम - फल्लतीति, ध. प. अट्ठ. 2.87. परकिच्चत्तकिच्चानि, अप. 1.355.
अत्तचतुत्थ त्रि.. ब. स., [आत्मचतुर्थ], अन्य तीन व्यक्तियों अत्तकिलमथ पु., तत्पु. स. [आत्म-क्लमथ], आत्म-उत्पीड़न, के साथ स्वयं चौथे व्यक्ति के रूप में, वह समूह, जिसमें स्वयं को कष्ट देना, पीड़ा देना या थका देना, - भवोति । तीन दूसरे हैं चतुर्थ के रूप में स्वयं है - अधिवासेतु मे, कम्मसुखं, अभवोति अत्तकिलमथो, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2. भन्ते, भगवा स्वातनाय अत्तचतुत्थो भत्तन्ति, म. नि. 2.63; 161, कामसुख का विलो.; - थानुयोग पु., अ. नि. 2(1).32. [आत्मक्लमथानुयोग], आत्म-उत्पीड़न का अभ्यास, स्वयं अत्तंजह त्रि., [आत्मजह], आत्मदृष्टि के कारण मिथ्या-रूप को कष्ट देने वाली चर्या में लगाव - न च अत्तकिलमथानुयोगं से गृहीत धारणाओं को त्यागने वाला, आत्मग्राह से मुक्त, अनुयुत्तो, दी. नि. 3.84; अत्तकिलमथानुयोगं अनुयुञ्जय्य, आत्मदृष्टि से मुक्त - अत्तञ्जहो नयिध पकुब्बमानो, सु. नि. म. नि. 3.280; कामसुखल्लिकानुयोगो का विप...
796; अत्तदिहिया यस्स कस्सचि वा गहणस्स पहीनत्ता अत्तगतिक त्रि., [आत्मगतिक], स्वयं अपने पर ही निर्भर अत्तञ्जहो, सु. नि. अट्ठ. 2.220; अट्ठ. में 'अत्तदिट्ठि-जहो' रहने वाला, अपने को ही अपना आश्रय अथवा अपनी शरण तथा 'अत्तगाह-जहो' अर्थो में भी प्राप्त - अत्तञ्जहोति एतं बनाने वाला - अत्तसरणाति अत्तगतिकाव होथ, मा ममाति ..., महानि. अट्ठ. 172. अञगतिका, स. नि. अट्ठ. 3.235.
अत्तज त्रि.. [आत्मज], क. अपने प्रयास से उत्पन्न - अत्तजं अत्तगरही त्रि., [आत्मगहीं], क. केवल अपनी निन्दा करने अत्तसंभवं ध. प. 161; एवमेव अत्तना कतं अत्तनि जातं वाला - अत्तगरहिनोयेव होन्ति अन गरहिनो, म. नि. 2. अत्तसम्भवं....ध. प. अट्ठ. 2.84; अत्तजेन वायामेन .... मि. 207; अत्तगरहिनो मयं, भन्ते आनन्द, अनगरहिनो, पारा. प. 110; ख. पु., अपना पुत्र, अपनी निजी सन्तान - तत्थ 24; ख. व्यक्ति को निन्दनीय बनाने वाला तत्त्व या ऐसे पुत्ता अत्रजादयो चत्तारो, सु. नि. अट्ठ. 2.242; महेसिं अत्तजं काम जो स्वयं को निन्दायोग्य बना दें - यदत्तगरही कत्वा ..... म. वं. 54.69. तदकुब्बमानो, सु. नि. 784.
अत्तजन पु.. [आत्मजन], अपने लोग, अपने आदमी, प्रिय अत्तगरु त्रि., ब. स. [आत्मगुरु], स्वयं अपने प्रति गौरवभाव लोग, समीपी लोग - कथहि वि ... न वायमे अत्तजनस्स रखने वाला - अत्तगरुना अत्तनिगारवेन पवत्तितं विसुद्धि. 1.14. गुत्तियाति, जा. अट्ठ. 4.263. अत्तगारव नपुं.. [आत्मगौरव], आत्मसम्मान का भाव - अत्तजिगुच्छना स्त्री., [आत्मजिगुप्सना], स्वयं अपने प्रति उभोपि पापानं अकरणरसा ... अत्तगारवपर - अरुचि अथवा घृणा का भाव - हीळनाति जातिआदीहि गारवपदट्ठानाति, अभि. अव. 240.
अत्तजिगुच्छना, विभ, अट्ठ. 458.
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