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अतोहब्म 125
अत्तकाम पेसिता, जा. अट्ट, 5.394; ख. प्रायः तुल. विशे. से पूर्व में व. [आत्मना] - अत्तनाहि कतं पापं, अत्तना संकिलिस्सति, इससे अथवा उससे अधिक अर्थ में प्रयुक्त - अतो दुल्लभतराहं ध. प. 165, 379; - अत्तनो च./ष. वि., ए. व. [आत्मनः] म. नि. 3.208.
- आकङ्घन्त विरागमत्तनो, ध. प. 343; मच्छो मरणमत्तनो, अतोहब्म त्रि., तोट्टब्भ का निषे. [अतोष्टव्य], न सन्तुष्टि जा. अट्ठ. 6.242; - अत्तनि सप्त. वि., ए. व. [आत्मनि देने योग्य, सन्तुष्ट न कराये जाने योग्य, प्रसन्न न कराने - अत्तनि वा, ... सति अत्तनियं मे ति अस्सा ति, म. नि. 1. योग्य - धनियं अतोडभेन तस्समानं अञआपदेसेनेव परिभासति. 191; ग. बुद्ध के समय में उपनिषदों आदि द्वारा परिकल्पित सु. नि. अट्ठ. 1.27, पाठा. अतुट्ठब्बेन..
नित्य, शुद्ध, बुद्ध एवं अविनाशी आत्मतत्त्व - रूपी अत्ता अत्त' पु.. [अर्थ], अत्थ के स्थान पर अप., आगे द्रष्ट... होति अरोगो परं मरणा असञी ति...., दी. नि. 1.27; अयं अत्त त्रि., [आत्त, आ + दा + क्त अथवा आप्त, आप् + अत्ता रूपी ... कायस्स भेदा उच्छिज्जति, दी. नि. 1.29; क्त], प्राप्त किया हुआ, गृहीत - अत्ता निरत्ता न हि तस्स मनोमयं ... अत्तानं पच्चेमि सब्बङ्गपच्चङ्गिं अहीनिन्द्रियन्ति, अत्थि, सु. नि. 793; अत्तं पहाय अनुपादियानो, सु. नि. 806%; दी. नि. 1.166; घ. अन्तरात्मा की आवाज, अपनी अन्तरात्मा अत्ता वापि निरत्ता वा, न तस्मिं उपलब्भति, स. नि. 864%; अथवा मन की आवाज - अत्तापि अत्तानं उपवदति, अ. नि. निरत्त का विलो.; - टि. सु. नि. अट्ठ. तथा महानि. ने अत्त 1(1).74; तं. ... अत्ता सीलतो उपवदति, स. नि. 2(1).109; (आप्त, गृहीत, प्राप्त) एवं अत्त (आत्मा) के मध्य विद्यमान अत्ता ते पुरिस जानाति, सच्चं वा यदि वा मुसा, अ. नि. श्लेष पर आधारित इस शब्द की विविध व्याख्या की है। 1(1).174; ङ. अपना प्रतिबिम्ब - ... जायेय्य अत्ता, मि. प. सम्भव है कुछ स्थलों में प्राप्त एवं गृहीत अर्थ वाले 'अत्त' 54; अत्ता च मे सो सरणं गती च, जा. अट्ठ. 7.176; - कत तथा आत्मार्थक 'अत्त' के मध्य परस्पर-व्यामिश्रण की स्थिति त्रि, तत्पु. स. [आत्मकृत], 1. स्वयं अपने द्वारा किया हुआ उत्पन्न हो गई हो. अत्तञ्जह, अत्तदण्ड एवं अत्तदान जैसे - मजे अत्तकतं वेर, जा. अट्ठ. 7.27; अत्तकतं वेरन्ति समस्त पदों में इस प्रकार के संभ्रम की स्थिति सुस्पष्ट है. अत्तना कतं पापं, तदे. 2. नपुं., अपने द्वारा किया हुआ - अत्त' त्रि., [आप्त, आप् + क्त], परिपूर्ण, भरपूर, भरा हुआ अत्तकतेन पन ते, ... पतन्ति, मि. प. 164, परकत का विप.; - अत्ताहिपि परिपुण्णाहि परिभासाहि .... दी. नि. 3.154; - कम्मफलूपग त्रि., [आत्मकर्म-फलोपग], अपने कर्मों के अत्तभावं उपनेत्वा कुत्ताहि परिपुण्णब्यञ्जनाहि.... दी. नि.. फलों को भोगने वाला - अत्तकम्मफलूपगोति अत्तनो कम्मफलेन अट्ठ. 3.136.
उपगतो जा. अट्ठ. 5.267; - म्मापराध पु.. तत्पु. स. अत्त' नपुं.. [अत्त, अद् + क्त अथवा अत्र], भोजन, अन्न, [आत्मकर्मापराध], अपने कर्मों का अपराध अथवा दोष - वह, जो खाया जाए - इदादीहि तत्रण, क. व्या. 658. अत्तकम्मापराधोति अत्तनो कम्मदोसो, जा. अट्ठ. 4.401. अत्त नपुं॰, भाव., [अत्त्व, अ + त्वल ], अकार-वर्ण या स्वर अत्तकाम' त्रि., ब. स. [अर्थ-काम], अपने हित अथवा
की अवस्था, अकारत्व - पञ्चादीनमत्तं, क. व्या. 90. कल्याण की कामना करने वाला, परमार्थ-धर्म या निर्वाण की अत्त' त्रि., [आत्म्य], अपने से स्वयं से या आत्मा कामना करने वाला - यत्थ अत्तकामा कुलपुत्ता सिक्खन्ति, से सम्बन्धित, अपना, आत्मीय - अत्तरूपायाति अत्तनो अ. नि. 1(1).263; ... अत्तकामाति अत्तनो हितकामा, अ. नि. अनुरूपाय .... दी. नि. अट्ठ. 3.41.
अट्ठ. 2.208; अत्तकामा हि कुलपुत्ता सासने पब्बजित्वा, म. अत्त' पु. [आत्मन्], आत्मा, विविध अर्थ क. स्वयं, जीव, नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).268. स्वभाव, शरीर, पुरुष, व्यु. रू.; - अत्ता प्र. वि., ए. व. अत्तकाम- पु., तत्पु. स. [आत्म-काम]. अपने भीतर की [आत्मा] - जीवो तु पुरिसो अत्ता, अभि. प. 92; चित्ते काये अथवा चित्त की कामवृत्ति अथवा काम भावना, अपना अभिप्राय, सभावे च सो अत्ता परमत्तनि, अभि. प. 861; ख. स्वयं, अपना प्रयोजन - अत्तकामन्ति अत्तनो कामं अत्तनो हेतू आप, निज, इस अर्थ में संकेतवाचक सर्व के रूप में तीनों अत्तनो अधिप्पायं, पारा. 197; - ता भाव., स्त्री. पुरुषों का संकेतक तथा केवल पु. के ए. व. में ही प्रयुक्त; [आत्मकामता], अपने चित्त में कामवृत्ति की अवस्था - - अत्तानं/अत्तं द्वि. वि., ए. व. [आत्मानं] - अत्तन्ति विग्गहं उत्तरिञ्चेव, दुवल्लं अत्तकामता, उत्त. वि. 299; - अत्तानं, जा. अट्ठ. 6.243; यं वा तुम्हे इत्थिं गवेसेय्याथ, यं पारिचरिया स्त्री., तत्पु. [आत्मकाम-परिचर्या], अपने लिये वा अत्तानं .... महाव. 28; - अत्तना/अत्तेन तृ. वि., ए. कामभोगों का सेवन, कामभोगों में लिप्त रहते हुए जीवन
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