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अतीरक 123
अतुरित वर्ग की छठी कथा का नाम; - त्तिक पु., अतीतारम्मण से संभवतः अतीसरं अति + vसर का वर्त. कृ. का रूप है। प्रारम्भ होने वाली ध. स. की एक त्रिकमातिका, ध. स. (पृ.) 4. अतीसार के समान इसमें भी 'इ' के स्थान पर 'ई' का प्रयोग अतीरक त्रि., ब. स., [अतीरक], सीमारहित, असीम, अनुमानित है। अपरिमित - अतीरकं आणदस्सनं, दी. नि. 3.100; अतीरकन्ति अतुच्वं/अतिउच्वं निपा., क्रि. वि., [अत्युच्चैः]. बहुत अतीरं अपरिच्छेदं महन्तं, दी. नि. अट्ठ. 3.87.
अधिक ऊपर - अतुच्चं तात पतसीति ... अतिउच्च अतीरणेय्य त्रि., तीर +vनी के सं. कृ. का निषे. [अतीरनेय], गच्छसि, जा. अट्ठ. 3.223. तीर न ले जाने योग्य, पूरा न कर सकने योग्य, ला. अ. अतुच्छ त्रि., तुच्छ का निषे॰ [अतुच्छ], वह, जो रिक्त, पार न किये जाने योग्य - अतीरणेय्य यमिदन्ति इदं खोखला अथवा घटिया नहीं है, उत्तम, महत्त्वपूर्ण - अतुच्छो किलेसजातं नाम न एतकेन तीरेतब्ब, जा. अट्ठ. 6.70. झानमञ्चोम्हि अप. 1.346; द्रष्ट. उज्झानमञ्च के अन्त.. अतीरदक्खी त्रि., वह, जिसने तट अथवा किनारे को नहीं अतुज अत्रज का अपपाठ, अत्रज के अन्त. द्रष्ट.. देखा है - अतीरदक्खिनिया नावाय, दी. नि. 1.203; तुल. अतुट्ठ त्रि., तुट्ठ का निषे., तत्पु. स. [अतुष्ट], असन्तुष्ट, अ. नि. 2(2).80, अतीर-दस्सी शब्द का समाना.,
अप्रसन्न - अतुद्वा सिवयो आसं. जा. अट्ठ. 7.277; दी. नि. अतीरदस्सी त्रि., [अतीरदर्शी], वह व्यक्ति, जिसने तीर अट्ठ. 1.49; - मानस त्रि., ब. स., असन्तुष्ट मन वाला - अथवा दूसरे तट को नहीं देखा है, निर्वाण का साक्षात्कार अतुट्ठमानसो हुत्वा, पे. व. अट्ठ. 112; - वाचा स्त्री., कर्म, न कर सकने वाला व्यक्ति - अतीरदस्सी अपारदस्सी, स. स., असन्तोष से भरी वाणी - अनत्तमनवाचन्ति अतुट्ठवाचं नि. 2(1).148; अतीरदस्सीति तीरं वुच्चति वटुं, ... पारं अ. नि. अट्ट. 2.11; - हाकार पु., असन्तोष अथवा वुच्चति निब्बानं, तं न पस्सति, स. नि. अट्ठ. 2.293; तत्थ अप्रसन्नता की मानसिक अवस्था - अप्पच्चयोति अतट्ठाकारो, अतीरदस्सीति ... तीरं अपस्सन्तो, जा. अट्ठ. 6.267. अ. नि. अट्ठ. 2.50. अतीरित त्रि., Vतीर के भू. क. कृ. का निषे., अपरीक्षित, अतुट्ठि स्त्री.. तुट्ठि का निषे., तत्पु. स. [अतुष्टि], असन्तोष, अनुत्तीर्ण, नहीं परखा हुआ, नहीं पार किया हुआ - अदिट्ठ अप्रसन्नता - अनभिरद्धीति अतुद्धि, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) अतुलितं अतीरितं. महानि. 250.
1(2).23. अतीतसत्थुक त्रि., ब. स., अतीत + सत्थु + क, बिना अतुरित त्रि., तुरित का निषे. [अत्वरित], जल्दबाजी न शास्ता वाला, भगवान् बुद्ध के बिना - अतीतसत्थुकं पावचनं, करने वाला, मन्द, शिथिल - अतरमानोति अतुरितो, दी. नस्थि नो सत्थाति, दी. नि. 2.115; मि. प. 110; अतीतसत्थुकं नि. अट्ठ. 1.204; अ. नि. अट्ठ. 3.304; - गमन नपुं., कर्म. पावचनन्ति मञ्जमाना, पारा. अट्ठ. 1.5; दी. नि. अठ्ठ. 1.4; स. [अत्वरितगमन], मन्द गति से गमन, धीमी चाल, स्थिर खु. पा. अट्ठ. 73.
गति - अतुरितगमनेन चारिकं निक्खमि. अ. नि. अट्ठ. 1. अतीतसासन त्रि., ब. स., [अतीतशासन], शिक्षाओं अथवा 230; - चारिका स्त्री., कर्म. स., शान्त चाल-ढाल, स्थिर निर्देशों का उल्लंघन करने वाला - गिज्झोवातीतसासनो, गति, (विशेष रूप से बुद्ध के चलने के स्वरूप के लिये जा. अट्ठ. 3.224.
प्रयुक्त)- अतुरितचारिक पक्कामि, जा. अट्ठ. 1.95; दी. नि. अतीव निपा., [अतीव], अत्यधिक, बहुत अधिक, - अतीव अट्ठ. 1.194, 1.197; यं पन गामनिगमपटिपाटिया देवसिक हदयं निब्बाति, जा. अट्ठ. 2.197; अतीव भासन्ति, सु. नि. योजनद्वियोजनवसेन पिण्डपातचरियादीहि लोक अट्ठ. 2.121; अतीव सुद्धिपओ, सु. नि. अट्ट, 2.88; तुल. अनुग्गण्हन्तस्स गमनं, अयं अतुरितचारिका नाम, दी. नि. अतिविय.
अट्ठ. 1.195; - टि. भगवान् बुद्ध के गमन के दो प्रकार, अतीसरंदिट्ठि/अतिसारदिहि स्त्री., कर्म. स. [अतिसार- बतलाए गए हैं, 1. तुरित-चारिका तथा 2. अतुरित-चारिका ।' दृष्टि], अन्य धर्माचार्यों के मत, मिथ्या दृष्टियां, ब्रह्मजाल- जब भगवान् बुद्ध किसी सुपात्र को शीघ्र धर्मोपदेश देने हेतु सुत्त में निर्दिष्ट 62 दृष्टियों में से कोई एक - अतीसरदिडियाव तेजी से उसके पास जाते हैं तब उनका गमन तुरितचारिका सो समत्तो, सु. नि. 895; अतिसारदिडियो वच्चन्ति द्वासद्धि कहलाता है परन्तु प्रतिदिन के भिक्षाटन के क्रम में लोक दिद्विगतानि? सब्बा ता दिद्वियो कारणातिक्कन्ता का अनुग्रह करने हेतु गांवों, निगमों आदि में एक अथवा दो लक्खणातिक्कन्ता ठानातिक्कन्ता, महानि. 218: - टि. योजन तक का उनका गमन अतुरितचारिका कहलाता है।
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