________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
अत्थकवि
किसी लक्ष्य की प्राप्ति में कुशल - एको पुरिसो अत्थकरणिको मि. प. 246.
...
अत्थकवि पु०, अत्थ' + कवि [ अर्थकवि], नीतिपरक कविता का रचयिता कवि, किसी एक उद्देश्य से युक्त कविता को रचने वाला कवि - चत्तारो मे, भिक्खवे, कवी, चिन्ताकवि, सुतकवि, अत्थकवि, पटिभानकवि... अ. नि. 1 (2). 264; यो एक अत्थं निस्साय करोति, अयं अत्थकवि नाम, अ. नि. अट्ठ. 2.387.
www.kobatirth.org
अत्थकाम त्रि. ब. स. [ अर्थकाम] हित. कल्याण एवं योगक्षेम की कामना करने वाला, शुभचिन्तक, हितेच्छीअत्थकामस्स गिलानुपट्टाकस्स... नाविकत्ता होति. महाव, 394 बहुजनस्स अत्थकामो अहोसि हितकामो फासुकामो... दी. नि. 3.123... कोचिदेव पुरिसो उप्पज्जेय्य अत्थकामो हितकामो योगक्खेमकामो, म. नि. 1.167; सदेवकस्स लोकरस अत्थमेव कामेतीति अत्थकामो उदा. अट्ठ. 166, तुल, अत्तकाम, अत्तत्थकाम, अत्तत्थिय ता स्त्री. भाव. [आत्मकामता ]. हितकामता हित करने की मनोदशा अत्थसहितेनाति अत्थकामताय हितकामताय उपेतेन दी. नि. अट्ठ. 3. 193 वग्ग पु. जातक संग्रह के एक खण्ड - विशेष का नाम, जा. अट्ठ 1.230-253. अत्थकामिनी स्त्री० [अर्थकामिनी], हित करने की इच्छा रखने वाली हितैषिणी, भला चाहने वाली देवता अत्थकामिनी, सु. नि. 992. अत्थकारण नपुं. [ अर्थकारण] लाभ प्राप्ति या स्वार्थ के कारण- अत्थवसन्ति अत्थानिसंसं अत्थकारणं, स० नि० अ० 1.235; सेवति अत्थकारणा दी. नि. 3.141. अत्थकाले सप्त. वि. प्रतिरू निपा. [ अर्थकाले] आवश्यकता
के समय में, जरूरत आ पड़ने पर किसी प्रयोजन - विशेष के उत्पन्न होने पर अत्यकालेति कस्सचिदेव अत्थस्स कारणस्स उप्पन्नकाले, जा. अड. 4.69. अत्यकित्त्व नपुं, कर्म. स. [ अर्थकृत्य]. सार्थक कार्य, उद्देश्यपूर्ण काम, कर्तव्य कर्म अत्थेनाति अत्यकिच्चेन वि. व. अ. 121; तुल०, किं किच्चमत्थं इधमत्थि तुम्ह, जा. अट्ठ. 3.476.
***
136
अत्थकुसल क्रि सप्त तत्पु, [ अर्थकुशल]. क. अपने कल्याण- साधन में प्रवीण, दक्ष, कुशल करणीयं अत्यकुरालेन् सु. नि. 143 यो अत्तानं सम्मा पयोजेति पातिमोक्खसंवरं
इन्द्रियसंवर.... प्रेरेति यो वा पातिमोक्खसंवरं सम्पजज्ञञ्च सोघेति, अयम्पि अत्थकुसलो....सु. नि.
***
...
अत्थङ्गम / अत्थङ्गमन
अट्ठ. 1.158; सेट्ठिनो पुत्तो जातिया सत्तवस्सो पञ्ञवा अत्थकुसलो, जा, अड. 1.350; ख. त्रिपिटक के वचनों का अर्थ करने में कुशल व्याख्या में प्रवीण भिक्खु अत्थकुसलो च होति. धम्मकुसलो. च व्यञ्जनकुशलो छ निरुत्तिकुसलो च पुब्बापरकुसलो च, अ. नि. 2 ( 1 ). 186 अयं - दुच्चति अत्थकुसलो धम्मकुसलो नेत्ति. 19. अत्थक्खायी त्रि. अत्थ' + अक्खायी, [अर्थाख्यायी] हित एवं कल्याण को बतलाने वाला अच्छा मित्र हितकारक बात कहने वाला साथी कल्याणमित्र- अत्थक्खायी मित्तो सुहदो वेदितब्बो, दी. नि. 3.142; अत्थक्खायी च यो मित्तो, दी. नि. 3.143; अत्थक्खायी च या नारी, अप. 2.265. अत्थगत / अत्थंगत त्रि., [ अस्तङ्गत], नष्ट हो चुका, अदृश्य हो चुका, डूब चुका (सूर्य आदि) सूरियोपि अत्थङ्गतो, अन्धकारो जातो जा. अड. 1.284 अत्यन्ते सूरियेति पाचि. 79; पे. व. अट्ठ. 47; ... विधूपिता अत्थगता न सन्ति, सु. नि. 476, 479; अत्थगताति अत्यङ्गता, सु. नि. अट्ट. 2.123; राजधीतापि अत्थङ्गते, सुरिये जा. अड. 5.87; ख. ला. अ. अदृश्य हो चुका, समाप्त हो चुका, विनष्टअत्थङ्गतो सो न प्रमाणमेति इतिवु, 43 ... इनम्हि लोके विनीता होन्ति पटिविनीता सन्ता... अत्यता विभ. 219
1
- तं नपुं. भाव. अत्थंगत से व्यु [ अस्तङ्गतत्व] विलुप्त, अदृश्य अथवा विनष्ट हो जाने की अवस्था तेस निरुद्धत्ता अत्यङ्गतत्ता... खु. पा. अड. 148 सिक्खापद नपुं., कर्म, स., 22वें पाचित्तिय का शीर्षक, पाचि. 78-80;
टि. सूर्यास्त के उपरान्त भी भिक्षुणियों को शिक्षापद प्रदान करने वाले भिक्षु को लगने वाले एक पाचित्तिय अपराध को अत्थङ्गतसिक्खापद कहा गया है. अत्थगवेसक त्रि., अत्थर + गवेसक [अर्थगवेषक ], अर्थ या तात्पर्य की खोज करने वाला, किसी शब्द, कथन अथवा वचन के अर्थ को खोजने वाला तुम्हे पन नो अत्थगवेसका व्यञ्जन गवेसका गच्छथ म. नि. अड. 3.442 (रो.). अत्थगहण नपुं., अत्थर + गहण [ अर्थग्रहण ], अर्थ की समझ या ज्ञान-विजूनं अत्थगहणे कोसल्लूप्पादनत्थं
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
For Private and Personal Use Only
सद्द. 2.318.
अत्थङ्ग पु०, अत्थ + ग [ अस्तङ्गम], समाप्ति, निरोध, विनाश - उप्पादे दारुणे विस्वा, सासनत्थाङ्गसूचके, अप. 2.121. अत्थङ्गम / अत्थङ्गमन पु०, [ अस्तगमन ], क. शा. अ. डूब जाना, अदृश्य हो जाना, नष्ट हो जाना ओक्कमनन्ति अत्यङ्गमनं दी. नि. अड. 1.84 ते याव सूरियत्यङ्गमना