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अत्थ
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अत्थकरण
अरणीयं गन्तब ... तस्मा अत्थोति वुच्चति, विभ. अट्ट पदं महन्तं अत्थं दीपेति, ध. प. अट्ट, 1.130; 2.ग. पु., 365; ख. अस से व्यु. - सत्थं वत्थं, अत्थो, क. व्या. 662; धम्म अर्थात् व्यावहारिक आचरण के विप. के रूप में धर्म नपुं. में अतिसीमित प्रयोग - किं किच्चं अत्थं जा. अट्ठ. का सैद्धान्तिक अर्थ या अभिप्राय - अत्थन्ति भासितत्थं, 3.476; शा. अ. 1.क. तात्पर्य, किसी शब्द का मूल धम्मन्ति पाळिधम्म, सु. नि. अट्ठ. 2.61; अत्थमआयाति अभिप्राय - पयोजने सद्दाभिधेय्ये वुद्धियं धने वत्थुम्हि कारणे पाळिअत्थमआय, धम्ममआयाति पाळिमआय, सु. नि. नासे हिते, अभि. प. 785; तत्थ अप्पमादोति पदं महन्तं अत्थं अट्ठ. 2.296. दीपेति, ध. प. अट्ठ. 1.130; 1.ख. पु., किसी विशिष्ट शब्द, अत्थ' पु., [अस्त, अस्यन्ते सूर्यकिरणा यत्र अस् + क्त, वाक्य, कथन अथवा अनुच्छेद के यथार्थ अभिप्राय के 1. शा. अ. पश्चिमी पर्वत अथवा वह स्थान, जहां सूर्य डूब स्पष्टीकरण हेतु प्रायः ति अत्थो', रूप में शब्द अथवा वाक्य जाता है या अस्त हो जाता है - मंदारो परसेलोत्थो, अभि. के अन्त में प्रयुक्त, अट्ठ, में 'इति अत्थो' के अन्त. आए वचन प. 6063; अत्थो ... पच्छिमपब्बते, अभि. प. 785; क. में व्याख्येय अंश की सुस्पष्ट व्याख्या तथा नैरुक्तिक अधिकतर ग्रन्थों में एति, गच्छति जैसे क्रि. रू. के साथ द्वि. निर्वचन जैसे नए तथ्य रहते हैं - यदिमे सक्याति यं इमे वि. में 'अत्यं' रूप में ही प्रयुक्त - पभङ्करो यत्थ च अत्थमेति, सक्या न ब्राह्मणे सक्करोन्ति ... .तं तेसं ... सब् न युत्तं, अ. नि. 1(2).58; ... अत्थङ्गते सूरिये ओतरन्तानं अन्धकारो नानुलोमन्ति अत्थो, दी. नि. अट्ठ. 1.207; तत्थ कुसलूपदेसेति अहोसि, जा. अट्ठ. 3.383; ख. ला. अ. विनाश, उपशमन, कुसलानं उपदेसे, पच्चेकबुद्धानं ओवदेति अत्थो, जा. अट्ठ. निरोध, अभाव, नास्तित्त्व, निर्वाण - अत्थो ... नासे हिते 1.449; 1.ग. पु., प्रयोजन, उद्देश्य, अभीप्सित, फल, लक्ष्य पच्छिमपब्बते, अभि. प. 785; अत्थं अदस्सने, अभि. प. - अत्थं समेच्चाति अत्थं... पापुणित्वा, स. नि. अट्ठ. 1.156; ____1154; अत्थं पलेतीति ... परिनिब्बायति, चूळनि. 98; ... तस्स ... अत्थो परिपूरतीति, जा. अट्ठ. 3.121; अत्थो भतिया अत्थङ्गतस्स अनुपादिसेसाय निब्बानधातुया परिनिबुतस्स न विज्जति, सु. नि. 25; को अत्थो सुपितेन वो, सु. नि. .... चूळनि. 99; अत्थं गच्छन्तीति ... अत्थं विनासं 333; 1.घ. पु., कल्याण, लाभ, हित, समृद्धि, सर्वोत्तम, नत्थभावं गच्छन्तीति अत्थो, ध. प. अट्ठ. 2.188. भलाई - अत्थं जहिस्सति, जा. अट्ठ. 3.288; यत्थ लभेथ अत्थ नपुं., [अस्त्र, अस् + ष्ट्रन], फेंक कर चलाया जाने अत्थं, जा. अट्ठ. 3.177; अत्थं विन्दति पण्डितो, जा. अट्ठ. वाला हथियार, अस्त्र, वह आयुध, जिसका प्रक्षेपण होता हो, 5.116; ... अत्थं विन्दति, वुद्धिं पापुणाति, जा. अट्ठ. 5.117- केवल स. प. में इस्सत्थक आदि रूपों में प्राप्त तथा वहीं 18; अत्थाय वत मे बुद्धो, सु. नि. 193; 1.ङ. पु., बात, द्रष्ट.. वस्तु, पदार्थ, प्रश्न में आया हुआ विषय, विवादविषय, अत्थ [स्थ], क्रि. रू. अस्, वर्त., म. पु., ब. व. 'अत्थि के अवसर, काम, व्यापार, कारण - इममत्थं धनियो अभासथ, अन्त. द्रष्ट.. सु. नि. 30; पुच्छामि तं, कस्सप, एतमत्थं, महाव. 41; अथ अत्थ त्रि., [आर्थ], किसी वस्तु, पदार्थ अथवा धन से खो ते भिक्खू भगवतो एतमत्थं आरोचेसु, महाव. 60; 1.च. सम्बन्ध रखने वाला, अर्थ से सम्बन्धित, अर्थ पर आश्रित, पु., धन, समृद्धि, सम्पदा, सुखद भौतिक वस्तु - अत्था नु धनी, समृद्ध, निपुण, दक्ष - किं किच्चमत्थं इधमत्थि तुम्ह, ते सम्पचुरा न सन्ति, स. नि. 1(1).131; सद्द. 1.71; 1.छ. जा. अट्ठ. 3.476. पु., जटिल मामला, आवश्यक काम, उलझा हुआ प्रश्न - अत्थकथा त्रि., ष. तत्पु. [अर्थकथा], अर्थयुक्त कथन, यो च अत्थेसु जातेसु, सहायो होति सो सखा, दी. नि. 3. उद्देश्य युक्त बातचीत, व्याख्या - अत्यन्तरो अत्थकथं निसामयि, 139; अत्थेसु जातेसूति तथारूपेसु किच्चेसु समुप्पन्नेसु. दी. दी. नि. 3.118; अत्थन्तरोति ... अत्थयुत्तं कथं निसामयि, नि. अट्ठ. 3.118; कस्स त्वं, महाराज, अटुं धारेय्यासि, मि. दी. नि. अट्ठ. 3.104. प. 46, पाठा. अटुं; 2.ला. अ. क. पु., व्यञ्जन अथवा अत्थकर त्रि., [अर्थकर], हितकारक, उपयोगी, उद्देश्य विस्तृत व्याख्यान का विप., संक्षिप्त या सारगर्भित कथन- प्राप्ति में सहायक, स. उ. प. के रूप में द्रष्ट.. ... अत्थं येव मे ब्रूहि, अत्थेनेव मे अत्थो, किं काहसि व्यञ्जनं अत्थकरण नपुं., अत्थ + करण, हितसाधन, भलाई या सेवा बहु, महाव. 45; 2.ख. पु., सत्य एवं यथार्थ से भरी बात या करना - यञ्चेतं सामिकस्स अत्थकरणं नाम, जा. अट्ठ.7. तथ्य - मन्ता अत्थं च भासति, सु. नि. 159; तत्थ अप्पमादोति 182; - णिक त्रि., अर्थसिद्धि अथवा कार्य करने में निपुण,
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