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अत्ताण/अताण
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अत्तायनता
अत्ताण/अताण 1. त्रि., ब. स., [अत्राण]. वह, जिसके अत्तानुगतमेवाति दस्सेन्तो .... पे. व. अट्ठ. 91, पाठा. लिये कोई शरण स्थल, कोई आश्रय अथवा कोई भी सहारा अत्थानुगत. या सुरक्षा-साधन न हो, बेसहारा - हति निच्चमत्ताणो, अत्तानुदिट्ठि स्त्री., कर्म. स. [आत्मानुष्टि], 'नित्य, शाश्वत
थेरगा. 449; अत्ताणो लोको अनभिस्सरोति, म. नि. 2.265; आत्मा है', इस प्रकार की मिथ्या अवधारणा, अपने अस्तित्व ३. पटि. म. 115; अताणोम्हि असरणो, जा. अट्ठ. 1.210; ... के स्वरूप के विषय में भ्रमात्मक ज्ञान, सत्काय-दृष्टि -
अत्ताणा असरणा असरणीभूता ..., मि. प. 149; 2. नपुं.. अत्तानुदिहिँ ऊहच्च, सु. नि. 1125; अत्तानुदिष्टिं ऊहच्चाति कर्म. स., अरक्षण, असुरक्षा - देवेसुपि अत्ताणं, निब्बानसुखा सक्कायदिलुि उद्धरित्वा, सु. नि. अट्ठ. 2.294; अत्तानुदिट्ठिया परं नत्थि, थेरीगा. 478; - तो अ., प. वि., प्रतिरू. निपा., पहानाय अनत्तसा भावेतब्बा, अ. नि. 2(2).146; [अत्राणतः], अशरण रूप में, असुरक्षित रूप में - ... अत्तानुदिट्ठीति अत्तानं अनुगता वीसतिवत्थुका सक्कायदिद्धि, अताणतो अलेणतो असरणतो.... महानि. 38; अताणतो अ. नि. अट्ठ. 3.145; - सुत्त नपुं.. स. नि. के दिट्ठि-वग्ग .... उपासितब्ब, मि. प. 392.
का सातवां सुत्त, स. नि. 2(1).170-171. अत्तादान नपुं, अत्त + आदान, [आत्मादान], अपनी इच्छा अत्तानुपेक्खी त्रि., अत्त + अनुपेक्खी, [आत्मानुपेक्षी], अपनी से किसी भिक्षु द्वारा संघ के समक्ष अधिकरण-विषय को स्वयं उपेक्षा न करने वाला, अपने आप पर नियन्त्रण रखने वाला, प्रस्तुत करना - अत्तादानं आदातुकामेन, भन्ते, भिक्खुना अपने कृत एवं अकृत को ठीक से जानने वाला- अत्तानुपेक्खी कतमङ्गसमन्नागतं अत्तादानं आदातब्बन्ति, चूळव. 407; च होति, नो परानुपेक्खी, अ. नि. 2(1).124; अत्तानुपेक्खीति ... यं अधिकरणं अत्तना आदियति, तं अत्तादानन्ति वुच्चति, अत्तनोव कताकतं जाननवसेन अत्तानं अनुपेक्खिता, अ. नि. चूळव. अट्ठ. 124; - वग्ग पु., वि. पि. के उपालिपञ्चक अट्ठ. 3.44. के पांचवें अध्याय का शीर्षक, परि. 351-358; - टि. संघ अत्तानुयोग/अत्तानुयोगी 1.पु., [आत्मानुयोग], अपने की शुद्धि के लिये भिक्षु स्वयं से सम्बद्ध अधिकरण-विषय को । प्रति लगाव; 2. त्रि., [आत्मानुयोगिन], अपने पर मन की संघ के समक्ष प्रस्तुत करता है। इसी को विनय (प्रातिमोक्ष- एकाग्रता रखने वाला, अपने पर मन को लगा देने वाला विधान) में 'अत्तादान' कहा गया है। भगवान् बुद्ध ने पांच - अत्थं हित्वा पियग्गाही, पिहेतत्तानुयोगिनं, ध. प. 209; परिस्थितियों में ही 'अत्तादान' के लिये अनुमोदन दिया है, ..... पच्छा ये अत्तानुयोग अनुयुत्ता सीलादीनि सम्पादेत्वा द्रष्ट. चूळव. 408-409; तुल. परि. 354-355.
.... सक्कारं लभन्ति, ध. प. अट्ठ. 2.160. अत्ताधिपतेय्य त्रि., अत्त + आधिपतेय्य, [आत्माधिपत्य], अत्तानुरक्खी त्रि., [आत्मानुरक्षिन], अपनी रक्षा या देखभाल क. अपने को अपना स्वयं का स्वामी बनाने वाला, अपनी स्वयं करने वाला - अत्तानुरक्खी भव मा अडव्हि, जा. अट्ठ. आन्तरिक चेतना से नियन्त्रित होकर पाप न करने वाला, 4.261. स्वयं के नियन्त्रण में रहने वाला - अत्ताधिपतेय्या हिरी, जा. अत्तानुवाद पु., तत्पु. स., [आत्मानुवाद]. आत्म-निन्दा, अट्ठ. 1.134, ख. भाव., नपु., अपनी आधिपत्यता, अपना आत्म-पश्चात्ताप; - भय नपुं., आत्मनिन्दा का भय, अपनी प्रभुत्व - ... अत्ताधिपतेय्यं, लोकाधिपतेय्यं, धम्माधिपतेय्यं निन्दा होने का भय - चत्तारिमानि, भिक्खवे, भयानि, .... ..., दी. नि. 3.176; अत्तानं अधिपत्तिं, जेट्टकं कत्वा पापस्स अत्तानुवादभयं, परानुवादभयं दण्डभयं दुग्गतिभयं, अ. नि. अकरणं अत्ताधिपतेय्यं नाम, दी. नि. अट्ठ. 3.170; इदं 1(2).139; अत्तानुवादभयं, परानुवादभयं, दण्डभयं, दुग्गतिभयं वुच्चति, भिक्खवे, अत्ताधिपतेय्यं, अ. नि. 1(1).172. इमानि चत्तारि भयानि, विभ. 440; अत्तानुवादभयादिकस्स अत्ताधीन त्रि., तत्पु. स., [आत्माधीन], क. स्वतन्त्र, केवल .... जा. अट्ठ. 3.211. अपने ही अधीन, अपराधीन - अत्ताधीनो अपराधीनो भुजिस्सो, अत्तायत्त त्रि., तत्पु. स., [आत्मायत्त], स्वयं अपने ऊपर येनकामंगमो, दी. नि. 1.64; म. नि. 1.348; ख. अधीन निर्भर, अन्य पर निर्भर न रहने वाला - अत्तसम्भवं अत्तनि रहने वाला, अधीनस्थ, वशवर्ती - ... अनुगामिकं अत्ताधीनं सम्भूतं अत्तायत्तं इस्सरादिवसेन अपरायत्तं, थेरगा. अट्ठ. राजादीनं असाधारणं, सु. नि. अट्ठ. 2.40.
1.409. अत्तानुगत त्रि., [आत्मानुगत], अपने से सम्बद्ध, अपने अत्तायनता स्त्री॰, भाव. [अत्राणता], सुरक्षा अथवा सहायता साथ जुड़ा हुआ, अपना - तयिदं नामं तदा मय्ह न दे सकने वाली अवस्था - अत्तायनताय चेव
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