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अत्तसञ्ञा
अत्तसज्ञा स्त्री० [आत्मसंज्ञा], अज्ञान के कारण धर्मों में अनित्यता की अनुपश्यना न होने के कारण धर्मों को आत्मा के रूप में जानना या देखना, वास्तविक सत्ता के विषय में मिथ्या धारणा अनिच्चस- दुक्खसअसमनुपस्सनलक्खणा अत्तसज्ञा नेति. 25. अत्तसन्निय्यातन नपुं [आत्मसन्निर्यातन] अपने को पूरी तरह से लगा देना या समर्पित कर देना, आत्मपरित्याग - तत्थ अत्तसन्निय्यातनं नाम अज्जादि कत्वा अहं अत्तानं बुद्धस्स निय्यादेमि, धम्मस्स सङ्घस्साति एवं बुद्धादीनं अत्तपरिव्यजनं दी. नि. अ. 1.187 म. नि. अट्ट (मू.प.) 1 (1). 141, तुल. अत्तनिय्यातन. अत्तसन्निस्सित त्रि.. [आत्मसम्मिश्रित] अपने से सम्बन्धित अपने पर आश्रित अत्तसन्निस्सिता अतिथ तथैव परनिस्सिता, उत्स. वि. 483 विलो. परनिस्सित. अत्तसम त्रि. [आत्मसम], अपने समान, अपने जैसा, अत्यन्त घनिष्ठ साथी, जो अपने जैसा प्रिय होनत्थि अत्तसमं पेमं स.नि. 1 (1). 8; ततुत्तरं अत्तसमोंपि होति, जा० अट्ठ. 1.349; अत्तना समे निन्नानाकरणेपि पुग्गलेति, जा. अनु. 3.89. अत्तसमानता स्त्री. [आत्मसमानता] अपने से समानता, अपना ही जैसा मानना अत्तसमानताय तेसु विरोधं विनेन्तो f. 31.2.192. अत्तसमुद्वान त्रि.. [आत्मसमुत्थान] अपने से उत्पन्न, अपने भीतर से ऊपर उठकर आने वाला सल्लं अत्तसमुद्वानं भवनेत्तिप्पभावित थेरगा. 767. अत्तसम्पत्ति स्त्री० [आत्मसम्पत्ति], अपनी सम्पत्ति, निजी धन-दौलत अत्तसम्पत्तिनिगूहन लक्खणता अत्तसम्पत्तिग्गहणलक्खणता वा वेदितब्बा, ध. स. अट्ठ
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401.
अत्तसम्पदा त्रि.. [आत्मसम्पदा ] अपने आप में परिपूर्णता चित्त की सम्पूर्णता अरियरस अद्वह्निकस्स मग्गस्स उप्पादाय एवं पुब्बङ्गम यदिदं - अत्तसम्पदा स. नि. 3 (1).28. अत्तसम्भव त्रि. [आत्मसम्भव], अपने से उत्पन्न, अपना स्वयं का अस्तित्व, आत्मभाव - अत्तनाहि कतं पापं, अत्तजं अत्तसम्भवं ध. प. 161 तं विदित्वा महमत्तसम्भव, थेरगा. 260, अत्तसम्भवं अत्तनि सम्भूतं अत्तायत्तं ... थेरगा. अड. 1.409; अभिन्दि कवचमिवत्त- सम्भवन्ति, उदा. 143. अत्तसम्भूतत्र [आत्मसम्भूत] अपने आप से उत्पन्न, अपने से उत्पन्न, अपने व्यक्तित्व के अन्दर में उदितस्नेहजा अत्तसम्भूता निग्रोधस्सेव खन्धजा, सु. नि. 274.
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अत्तहेतु
अत्तसम्मापणिधान नपुं. अपना किया हुआ सम्यक् संकल्प, अपने द्वारा किया गया पक्का शुभ इरादा अत्तसम्मापणिधानं सीलानं पदद्वान् नेति 26: अत्तसम्मापणिधानं हिरिया च विपस्सनाय च साधारणं पदद्वानं, नेति. 42. अत्तसम्मापणिधि स्त्री, उपरिवत पतिरूपदेसवासो च.. अत्तसम्मापणिधि च एतं मङ्गलमुत्तमं सु. नि. 283: इक कच्चो अत्तानं दुस्सील सीले पतिद्वापेति, अस्सद्ध सद्धासम्पदाय, पतिद्वापेति, अयं वुच्चति अतसम्मापणिधी ति सु. नि. अड. 2.15.
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अत्तसरण त्रि. ब. स. [आत्मशरण] अपने लिये स्वयं अपने को शरणस्थल बनाने वाला, दूसरे का आश्रय न लेने वाला - अत्तदीपा, भिक्खवे, विहरथ अत्तसरणा अनज्ञसरणा, दी.
नि.
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3.42.
अत्तसारसार पु०, आत्मसार नामक तथाकथित सार-तत्त्व निरयलोको असारो निस्सारो सारापगतो ... अत्तसारसारेन वा निच्चेन वा महानि. 303. अत्तसिनेह पु.. [आत्मस्नेह]. स्वार्थपरता, अपने से स्नेह, स्वार्थी मनोवृत्ति - यस्मा सन्तासो अत्तसिनेहेन होति, अत्तसिनेहो च तण्हालेपो सु. नि. अड. 1.100. अत्तसुख नपुं तत्पु. स. [आत्मसुख] अपना सुख, अपने द्वारा अनुभूत सुख अत्तसुखरस हेतु जा. अ. 1.348; न पण्डिता अतसुखस्स हेतु पापानि कम्मानि समाचरन्ति जा.
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अट्ठ. 6.204.
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अत्त-सुज्ञता स्त्री अत्त-सुज्ञ का भाव [आत्मशून्यता ]. तीन शून्यताओं में से एक, किसी भी वस्तु में आत्मा जैसे धर्म का न पाया जाना, आत्मा के स्वभाव की केसे शून्यता ताव अत्तसुञता अत्तनिय सुञ्ञता, निव्यभावसुज्ञताति तिस्सो सुञ्ञता होन्ति विभ. अड्ड. 247, अत्तसुद्धि स्त्री तत्पु स [आत्मशुद्धि] अपनी शुद्धि, आत्मशुद्धि - अत्तसुद्धिअभिलासेन सीलब्बतपरामासदिट्ठि गण्हापेन्ति, उदा. अड. 287.
अत्तहित नपुं. [आत्महित] अपना हित अपना कल्याणअत्तहिताय पटिपन्नो होति नो परहिताय दी. नि. 3.185; अत्तहितपरहितसब्बलोकउभयहितमेव चिन्तयमानो चिन्तेति, अ. नि. 1 (2).207.
अत्तहेतु अ. [आत्महेतु] स्वयं अपने लिये अपनी भलाई के लिये - न अत्तहेतु न परस्स हेतु, ध. प. 84; अत्तहेतु परहेतु, धन हेतु च यो नरो. सु. नि. 122; इति अतहेतु वा परहेतु वा भासिता होति., अ. नि. 1 (1).151.
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