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अत्तप्पसंसक
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अत्तप्यसंसक त्रि. [आत्मप्रशंसक अपनी प्रशंसा स्वयं करने वाला, डींग हांकने वाला, अपने बारे में बहुत बढ़चढ़कर बोलने वाला अत्तप्पसंसकोति अत्तानं पसंसनसीलो अत्तुक्कंसको पोसो, जा. अड. 2. 126.
अत्तब्याबाध पु. तत्पु, स. [ आत्मब्याबाध], अपनी बाधा, अपनी दुर्दशा अथवा अपना कष्ट, क. चेतेति, के साथ प्रयुक्त नेव तरिंम समये अत्तव्याबाधायपि चेतेति न परव्यावाधायपि चेतेति न उभयव्याबाधायपि चेतेति म.नि. 1.124; स. नि. 2 (2).320; अ० नि० 1 ( 1 ). 183 184; 186; ख. संवत्तति के साथ तयोमे भिक्खवे, धम्मा अत्तब्याबाधायपि
परब्याबाधायति उभयव्याबाधायपि संवत्तन्ति अ. नि. 1 (1). 137; सो च खो अत्तब्याबाधायपि संवत्तति, म.नि. 1.163; - टि. सदा च. वि., ए. व. में ही तथा परब्या. एवं उभयब्या के साथ ही प्रयुक्त.
अत्तभर [आत्मभर ] केवल अपना ही भरण-पोषण करने वाला, अपनी ही आवश्यकताओं को पूरा करने वाला, दूसरे का पोषण न करने वाला - पिण्डपातिकस्स भिक्खुनो अत्तभरस्स अनज्ञपोसिनो उदा. 101: अत्तभरस्साति
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चतूहि पच्चयेहि अत्तानमेव भरन्तस्स, उदा. अट्ठ. 162. अत्तभाव पु. भाव. [आत्मभाव] 1. शरीर का लाभ अस्तित्व
अत्तभावेन वा अत्तनियभावेन वाति अत्थो खु. पा. अड. 142 2. शरीर व्यक्ति की विशिष्ट एवं यथार्थ प्रकृति का अस्तित्व, प्राणी, जीव, जीव का शारीरिक स्वरूप, आत्मा के लोकसम्मत विविध स्वरूप सरीरं वपु गतं था तभावो, वोन्दि, विग्गहो अभि. प. 151; सतं दब्बात्तभावेसु अभि. प. 816, सुखुमत्ता, भिक्खवे, अत्तभावस्स.., स. नि. 3 ( 2 ).504
पटिलाभ पु०, [आत्मप्रतिलाभ], प्राणी के रूप में या शरीर- ग्रहण के रूप में पुनर्जन्म की प्राप्ति, नूतन शरीर का प्रतिलाभ तरस एवरूपो अत्तभावप्यटिलाभो होति चूळव 321; चत्तारो मे,... अत्तभावपटिलाभा, अ. नि. 1 (2). 184; तथाभूतो अयं अत्तभावपटिलाभो अ. नि. 1 ( 2 ) . 218 परम्परा स्त्री० [आत्मभावपरम्परा ]. पुनर्जन्मों में शरीर- ग्रहण करने की परम्परा, बार बार शरीर धारण करना, पुनर्जन्म-परम्परा
परम्पि गन्त्याति आचरियपरम्परा अत्तभावपरम्पराति अ. नि. अड. 2.153 - परियापन्न त्रि [आत्मभावपर्यापन्न ], शरीर के एक भाग के रूप में विद्यमान, शरीर की स्थिति को प्राप्त यं सोतं चतुन्नं महाभूतान. अत्तभावपरिया पन्नो... विभ. 78 : -- परियाय पु., [आत्मभावपर्याय] आत्मभाव, शरीर अत्तभावपरियाये अत्तनि सम्भूता
अत्तमन
सु. नि. अड. 2.36 वत्थु नपुं. आत्मभाव या शरीर के रूप में मिथ्या रूप में गृहीत पांच स्कन्धों में कोई एक चतूसु अत्तभाववत्थूसु, रूपं अत्ततो समनुपस्सति, रूपवन्तं वा अत्तानं, अत्तनि वा रूपं, रूपस्मिं वा अत्तानं, नेत्ति. 71; टि. रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार एवं विज्ञान, इन पांच स्कन्धों में चार प्रकार से आत्मभाव का विपर्यस्त दर्शन अत्तभाव वत्थु में विपरीतग्राह है। वस्तुतः पांच उपादान स्कन्ध ही अत्तभाव - वत्थु हैं - अत्तभाववत्थूसूति पञ्चसु उपादानक्खन्धे ते हि आहितो अहं मानो एत्थाति अत्ता, अत्ताति भवति एत्थ बुद्धि योहारो चाति अत्तभावो, सो एव सुभादीनं विपल्लासस्स च अधिद्वानभावतो वत्थु चाति, अत्तभाववत्थति दुच्चति नेत्ति, अड. 266-67 सन्निस्सय त्रि.. [आत्मभाव सन्निश्रय] आत्मा की मिथ्या धारणा पर आधारित रहने वाला तत्थेते पापका अकुसला धम्मा उप्पज्जन्ति अतभावसन्निस्सया महानि. 10 वामिनिब्बत्ति स्त्री. [आत्मभाव अभिनिर्वृ शि] पुनर्जन्म पुनप्पु नअत्तभावाभिनिब्बत्तिया महानि. 78; अत्तभावाभिनिब्बत्तियाति अतभावानं अभिनिव्यत्तिया महानि अट्ठ. 125.
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अत्तमावी, अत्तभाव से व्यु [आत्म-भाविन्] आत्मभाव से युक्त, शरीर वाला, शरीरधारी एतदग्गं भिक्खदे अतभावीन यदिदं राहु असुरिन्दों, अ. नि. 1 ( 2 ) 20 अत्तभावीनन्ति अत्तभाववन्तान, अ. नि. अड. 2.253.
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अत्तमज्झा स्त्री. ब. स. [आप्तमध्या ]. क्षीण कटिप्रदेश वाली नारी सबत्तमज्याति सब्बा अत्तमज्झा, पाणिना गहितप्यमाणमज्झति अत्थो, अट्ठकथायं पन सुमज्झाति पाठो, जा० अट्ट 5.164.
अत्तमन त्रि. व्य. अनिश्चित [आप्तमनस् दौ. सं. आत्तमनस्]. आनन्द युक्त मन वाला, संतुष्ट मन वाला उत्साही, मंगलकारी - अत्तमनो पमुदितो उदग्गो पीतिसोमनस्सजातो. सु. नि. (पृ.) 159; अत्तमना ते भिक्खू भगवतो भासितं अभिनन्दुन्ति, दी. नि. 1.41 अतमना ते भिक्खुति अत्तमना सकमना, बुद्धगताय पीतिया उदग्गचित्ता हुत्वाति, दी. नि. अ 1.110 ता स्त्री अत्तमन से व्यू. भाव प्रसन्नता, आनन्दमयता, मन की नियंत्रित या संयमित अवस्था हासों समनता पीति वित्ति तुट्टि च नारियं अभि. प. 87 लभेथेव अत्तमनतं, लभेथ चेतो पसाद, म. नि. 1.162; अ० नि. 2 (1) 218; अनभिरद्धस्स हि मनो दुक्खपदद्वानत्ता अत्तनो मनो नाम न होति अभिरद्धस्स पन सुखपदट्ठानत्ता अत्तनो
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