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अत्तन्तप
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अत्तप्पयोग
अत्तन्तप त्रि., [आत्मतप], आत्म-उत्पीड़क, स्वयं को कष्ट देने वाला, उत्पीड़ित करने वाला - इधावुसो, एकच्चो पुग्गलो अत्तन्तपो होति अत्तपरितापना - नुयोगमनुयुत्तो, दी. नि. 3.185; म. नि. 2.4; अ. नि. 1(2).235; पु. प. 165, परन्तप का विलो... अत्तपक्खिय त्रि., [आत्मपक्षीय], अपने पक्ष वाला, अपने समर्थन में रहने वाला - अत्तपक्खियेस असारत्तो, सु. नि. अट्ठ. 2.192; परपक्खिय का विलो... अत्तपच्चक्ख त्रि., ब. स. [आत्मप्रत्यक्ष], स्वयं अपने द्वारा देखा गया, अनुभव किया गया, अपने द्वारा सुनिश्चित किया गया - न सद्धोति सामं सयं अभिजातं अत्तपच्चक्खं धम्म ..., महानि. 171; अत्तपच्चक्खं धम्मन्ति अत्तना पटिविज्झितं पच्चवेक्खितं धम्म, महानि. अट्ठ. 273; सब्बानि किच्चानि अत्तपच्चक्खेनेव कातब्बानि, जा. अट्ठ. 5.108; - तो प. वि. के अर्थ में क्रि. वि. - सामं विदू अत्तपच्चक्खतोव जानित्वा .... जा. अट्ठ. 5.121; अत्तपच्चक्खतो व ञत्वाव, ध. प. अट्ठ. 2.232; - ता स्त्री॰, भाव., अपने द्वारा प्रत्यक्ष किये जाने की दशा, निर्वाण की साक्षात् क्रिया - निब्बानस्स सच्छिकिरियायाति ... अत्तपच्चक्खतायाति वुत्तं होति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).247; - वचन नपुं.. स्वयं अपने निजी वचन - इदहि बुद्धस्स भगवतो अत्तपच्चक्खवचनं न होति, पारा. अट्ठ. 14. अत्तपच्चत्थिक त्रि., [आत्मप्रत्यर्थिक], आत्मपक्ष एवं विरोधी पक्ष - उभिन्नं अत्तपच्चत्थिकानं कथं सुत्वा, जा. अट्ठ. 5.114. अत्तपञ्चदसम त्रि., ब. स. [आत्मपञ्चदशम], चौदह दूसरे लोगों के साथ पन्द्रहवें के रूप में विद्यमान स्वयं, पन्द्रह लोगों का ऐसा समूह, जिसमें चौदह दूसरे लोग हों तथा पन्द्रहवां सदस्य स्वयं हो - देसनावसाने कुक्कुटमित्तो ...
अत्तपञ्चदसमो सोतापत्तिफले पतिद्वहि, ध. प. अट्ठ. 2.16. अत्तपटिलाम पु., तत्पु. स. [आत्मप्रतिलाभ]. अपने लौकिक अस्तित्व की प्राप्ति, व्यक्तिगत अस्तित्व का एक स्वरूप - तयो खो मे पोट्टपाद, अत्तपटिलाभा - ओळारिको ...... मनोमयो ... अरूपो ..., दी. नि. 1.173; - टि. भगवान् बुद्ध ने अपने समय में प्रचलित तीन प्रकार की आत्मासम्बन्धी धारणाओं (अत्त-पटिलाभ) अथवा स्वरूपों का उल्लेख किया है, 1. ओळारिक अथवा स्थूल भौतिक शरीर को ही व्यक्तित्व मानने वाला विचार, 2. मनोमय अर्थात् सम्पूर्ण इन्द्रिय-संपन्न मानसिक शरीर को ही तथा 3. अरूप संज्ञा
को ही, उन्होंने इन तीनों के प्रहाण का उपाय भी कहा है। द्रष्ट. दी. नि. 1, पोट्ठपादसुत्त. अत्तपरिच्चागी त्रि., [आत्मपरित्यागिन्], स्वयं अपने को त्याग कर देने वाला, शरीर और जीवन के प्रति पूरी तरह से निरपेक्ष - अत्तपरिच्चागीति काये च जीविते च निरपेक्खो हुत्वा ... अत्तानं परिच्चजन्तो, जा. अट्ठ. 2.327. अत्तपरितापन नपुं. [आत्मपरितापन], आत्म-उत्पीड़न, अपने को अत्यधिक कष्ट देने का मार्ग अथवा कर्म - इधावुसो, एकच्चो पुग्गलो अत्तन्तपो होति अत्तपरितापनानुयोगमनुयुत्तो, दी. नि. 3.185; तुल. अत्तन्तपो. अत्तपरित्ता स्त्री., [आत्मपरित्राण], अपना परित्राण, अपनी सुरक्षा, एक प्रकार का मन्त्र - अत्तगुत्तिया अत्तरक्खाय अत्तपरित्ताय ..., अ.नि. 1(2).84; अत्तगुत्तिया अत्तरक्खाय अत्तपरित्तं कातुं ..., चूळव. 227. अत्तपरित्ताण नपुं.. [आत्मपरित्राण, जीवन का परित्राण अथवा रक्षा - अत्तपरियायन्ति अत्तनो परित्ताणम्पि च कातुं ...., जा. अट्ठ. 5.364. अत्तपरिनिब्बापन नपुं.. [आत्मपरिनिर्वापन], पूर्णरूप से आत्म-विमुक्ति, अपनी पूर्ण मुक्ति - अत्तपरिनिब्बापनत्थाय सुत्तन्तं ... विनयं ... अभिधम्म परियापुणाति, महानि. 174; - नत्थ पु., [आत्मपरिनिर्वापनार्थ]. अपनी विमुक्ति का प्रयोजन - अत्तपरिनिब्बापनत्थो यथत्थो, पटि. म. 166. अत्तपरिभव पु., [आत्मपरिभव], आत्म-तिरस्कार, आत्मअवमानना, अपने प्रति हीनता का भाव - यो एवरूपो ओमानो, ओमञना-अत्तपरिभवो- अयं वुच्चति.हीनोहमस्मीति मानो, विभ. 406; अत्तपरिभवोति ... अत्तानं परिभवित्वा मञ्जना, विभ. अट्ठ. 458. अत्तपरियाय पु.. [आत्मपर्याय], अपना परित्राण, अपना रक्षण - अत्तपरियायन्ति अत्तनो परित्ताणम्पि च कातुं
सक्कोतीति, जा. अट्ठ. 5.364. अत्तपीतिरत त्रि., ब. स. [आत्मप्रीतिरत], अपने आनन्दों मे डूबा हुआ, अपने लिये आमोद-प्रमोद जुटा रहा- अत्तपीतिरतो राजा, मिगो कूटेव ओहितो, जा. अट्ठ. 6.264; अत्तपीतिरतोति अत्तनो किलेसपीतिया अभिरतो हुत्वा, तदे.. अत्तप्पयोग पु., [आत्मप्रयोग], अपना स्वयं का प्रयोग, अपने द्वारा उठाया गया कदम - सचे अत्तप्पयोगेन, ओहितो हंसपक्खिनं, जा. अट्ठ. 5.359; ... अत्तनो पयोगेन अत्तनो अत्थाय ..., तदे..
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