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अत्तजेट्टक 127
अत्तदत्थ अत्तजेट्ठक त्रि., ब. स. [आत्मज्येष्ठक], स्वयं को अथवा आत्मप्रकृति वाले रूप में, - रुपं अत्ततो समनुपस्सति, म. अपनी आन्तरिक चेतना को ही श्रेष्ठ अथवा महत्त्वपूर्ण नि. 1.381; स. नि. 2(1).3; फस्सपरेतो रोगं वदति अत्ततो, मानने वाला - अत्तानं जेट्टकं कत्वा निब्बत्तितं गुणजातं उदा. 105; सङ्घारे परतो पस्स, दुक्खतो मा च अत्ततो, स. अत्ताधिपतेय्यं, अ. नि. अट्ठ. 2.128.
नि. 1(1).218. अत्तज्झासय पु., तत्पु. स., [आत्माध्याशय] 1. अपना स्वयं अत्तत्तनियगाह पु., [आत्मात्मीयग्राह], 'मैं' और 'मेरे' जैसी का दृढ़ निश्चय, अपना संकल्प, अपनी इच्छा, अपना मिथ्या-धारणाओं में विश्वास, आत्मा एवं आत्मीय दृष्टियों के मानसिक अभिप्राय - अपुच्छितेन अत्तज्झासयवसेन कथिता प्रति मन का अभिनिवेश - सब्बसवतसभागेकसङ्गहतो अपुच्छितगाथा, खु. पा. अट्ठ. 100; द्वयतानुपस्सनादीनहि अत्तत्तनियगाहवत्थुस्स ..., विसुद्धि. 2.106. अत्तज्झासयतो उप्पत्ति, ..., सु. नि. अट्ठ. 1.39; 2. त्रि., अत्तत्थ पु., तत्पु. स., [आत्मार्थ], अपना हित, अपना अपने दृढ़ निश्चय अथवा अपनी इच्छा के कारण उद्भूत कल्याण, अपना स्वार्थ, अपना प्रयोजन - सो वत भिक्खु - एत्थ च अत्तज्झासयो परज्झासयो पुच्छावसिको, आविलेन चित्तेन अत्तत्थं वा अस्सति परत्थं वा अस्सति अट्टप्पत्तिकोति चत्तारो सुत्तनिक्खेपा वेदितब्बा, उदा. अट्ठ. उभयत्थं वा अस्सति, अ. नि. 1(1).12; अत्तत्थं वा ... 24, परज्झासय का विलो..
अलमेव अप्पमादेन सम्पादेतुं, स. नि. 1(2).27; परत्थ तथा अत्त त्रि., [आत्मज्ञ], स्वयं अपने आप को जानने उभयत्थ के साथ प्रयुक्त; - काम त्रि., आत्मकल्याण की वाला/वाली - एत्तकोम्हि सीलेन, समाधिना, पञआया ति कामना वाला - तस्मा अओपि अत्तत्थकामो कुलपुत्तो, एवं अत्तानं जानातीति अत्तञ्च दी. नि. अट्ठ. 3.202; विसुद्धि 1.37; - पटिपत्ति स्त्री., आत्मकल्याण की प्राप्ति धम्मञ्जू च होति अत्थञ्चू च अत्तञ्चू च, अ. नि. 2(2).2463; - अच्चन्तलामकायापि अत्तत्थपटिपत्तिया, सद्धम्मो. 28; - - ञ्जता स्त्री॰, भाव. [आत्मज्ञता] - अत्तत्रुता परिपुच्छा स्त्री., आत्महित-विषयक प्रश्न, द्रष्ट. पटिपुच्छा पुब्बेकतपुञ्जताय पदहानं, नेत्ति. 26.
के अन्त.. अत्तट्ठपञ/अत्तत्थपञ त्रि., ब. स. [आत्मार्थप्रज्ञ], स्वार्थी अत्तत्थिय त्रि., अत्तत्थ से व्यु. [आत्मार्थिक], स्वार्थी मनोवृत्ति मनोवृत्ति वाला, केवल अपने हित पर ध्यान रखने वाला, वाला, केवल अपने हित के विषय में ही सोचने वाला - दूसरों के कल्याण के बारे न सोचने वाला - अत्तनि ठिता अत्तत्थियं तं न कदा भविस्सति, थेरगा. 1100, पाठा. एतेसं पञ्जा, अत्तानं येव ओलोकेन्ति, न अञन्ति अत्तट्ठप, अत्यत्थियं. सु. नि. अट्ठ 1.104; अत्तनो अत्थाय पा, परं अनोलोकेत्वा अत्तदण्ड 1. त्रि., अत्त + दण्ड का ब. स. [आत्मदण्ड], अत्तनियेव वा ठिता एतेसं पाति अत्तत्थपञ्जा, जा. अट्ठ. दण्ड को धारण किया हुआ, दण्ड को ग्रहण करने वाला 3.438; अट्ठ. में दो रूपों में व्याख्यातः - 1. अत्त + अत्थ हिंसक प्रकृति का व्यक्ति, दण्डधारी - अत्तदण्डेसु निब्बुतं, (अट्ठ) अपने हित के लिए, 2. अत्त + ट्ठ (ठित), अपने में ध. प. 406; स. नि. 1(1).273; अत्तदण्डेसु निब्बुताति ही स्थित.
परविहेठनत्थं गहितदण्डेसु सत्तेसु. स. नि. अट्ठ. 1.308; 2. अत्तट्ठम त्रि., ब. स. [आत्माष्टम], अन्य सात लोगों के साथ पु./नपुं., कर्म. स., धारण किया गया दण्ड, व्यक्ति की स्वयं आठवें के रूप में विद्यमान, वह समूह अथवा वर्ग, हिंसक अथवा द्वेषपरक आत्मचेतना - अत्तदण्डा भयं जातं. जिसमें स्वयं आठवें के रूप में हो - रेवतत्थेरं अत्तट्ठमं सु. नि. 941; अत्तदण्डा भयं जातन्ति ... अत्तनो दुच्चरितकारणा निमन्तेसि. वि. व. अट्ठ. 123; - क त्रि., ऊपर के ही अर्थ जातं, महानि. अट्ठ. 344. में - अत्तट्ठमकस्स पिण्डपातं दत्वा, मि. प. 269. अत्तदत्थ' पु.. [आत्मार्थ], अपना स्वयं का हित, अपना अत्तता स्त्री॰, भाव. [आत्मता], अपनापन, अपने समान ही कल्याण, अपनी मुक्ति - पञ्च कामगुणे हित्वा, दूसरों को मानने की मनोवृत्ति, आत्मसमता - सब्बत्ततायाति अत्तदत्थमचारिसुंसु. नि. 286; मन्तज्झनब्रह्मविहार - भावनादिं सब्बेसु ... अत्तताय, विसुद्धि. 1.298.
अत्तनो अत्थं अकंसु, सु. नि. अट्ठ. 2.45; अत्तदत्थं परत्थेन, अत्ततो 'अत्त' से व्यु., प. वि., प्रतिरू. निपा., प्रायः अनुपस्सति, बहुनापि न हापये, ध. प. 166; न सो पस्सति अत्तदत्थं माति, अनुविलोकेति, चिन्तेति जैसे क्रि. स. के साथ परत्थं जा. अट्ठ. 2.83;; (अट्ठ. में अत्तदत्थं के लिए "अत्तत्थं'). प्रयुक्त [आत्मतः]. आत्मा के रूप में, आत्मा के समान, - टि. यह अत्तत्थ का भ्रष्ट रूप तथा मदत्थ, एतदत्थ के
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