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अतिसेति
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अतिसेति अति + √सी का वर्त. प्र. पु. ए. व. [ अतिशेते]. अतिशय भाव को प्राप्त कर लेता है, अन्यों की तुलना में उत्कृष्ट रहता है, दूसरों से आगे निकल जाता हैअधिगण्हातीति अधिभवित्वा गण्हाति अज्झोत्थरति अतिसेति, अ. नि. अ. 3.16 सयित्वा पू. का. कृ. सब्बरतनानि अतिक्कमित्या अतिसयित्वा अज्झोत्थरित्वा तिद्वति. मि. प. 305 पाठा. अभिभवित्वा अतिसेवन्तस्स अति + √सेव का वर्त० कृ०, पु०, च० / ष० वि., ए. व., [ अतिसेवन्तस्य ], अत्यधिक सेवन करने वाले का या के लिये अत्यन्त लिप्त व्यक्ति का या के लिये बाल अच्चुपसेवतोति वाल अप्पज्ञ अतिसेवन्तस्स जा. अट्ठ. 3.464.
अतिस्सर त्र कर्म. स. [ अतीश्वर] अत्यधिक सक्षम, बहुत अधिक सशक्त अथवा समर्थ, स्वेच्छाचारी, दबंग एते
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अतिस्सरा भविस्सन्ति, जा. अट्ठ. 4.432. अतिहट त्रि, अति + √हर का भू० क० कृ० [ अतिहृत], अत्यधिक दूर तक ले जाया गया या पहुंचाया गया नासक्खतिहटो पोसो जा. अड. 3.427 पाठा. अतिगतो. अतिहट्ट त्रि, अति + √हस का भू० क० कृ० [अतिसृष्ट], अत्यधिक प्रसन्न, बहुत अधिक आनन्दित - तं सुत्वा अतिहट्टो सो... म. वं. 15.17; सद्धम्मो 323. अतिहत्थयति अति + हत्थि का ना. धा., वर्त. प्र. पु. ए. व [ अतिहस्तीयति], हाथी द्वारा पार करता है, लांघता है, हाथी से आक्रमण करता है हत्थिना अतिक्कमति मग्गं अतिहत्थयति क. व्या. 3.2.8: मो. व्या. 5.12; सद. 3.823. अतिहरति अति + √हर का वर्त. प्र. पु. ए. व. एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर पहुंचाते हैं, ले जाते हैं या प्राप्त कराते हैं न्ति ब. व नगरं अतिहरन्ति द्वारट्टाने, पाचि. 360; - रि अद्य., प्र. पु. ए. व. माणविकाय सन्तिकं अतिहरि जा. अड. 1.281 पाठा, अभिहरि रित्वा पू का कृ • अभिहरित्वा दस्सेसि जा. अनु. 5.342, पाठा, अभिहरित्वा - रापेय्य प्रेर, विधि - सीघं सीघं अतिहरापेय्य, अ. नि. 1 (1) 275: रापेय्यासि म.फु. ए. व... धञ्ञ अतिहरापेय्यासि, मि. प. 69; - य्याथ ब. व. अट्टालकं कारापेय्याथ, धञ्ञ अतिहरापेव्याधाति. मि. प. 89 रापेसुं प्रेर, अद्य., प्र. पु. ब. क. मानो अपुत्तकं सापतेय्यं.. अतिहरापेसु पारा. 18: पाठा. अतिहारापेसुं - रापेत्वा प्रेर०, पू. का. कृ. - अतिहरापेत्वा आयतिम्पि वस्सं एवमेव कातब्बं... चूळव. 317; सीघं सीघं, अतिहरापेत्वा अ. नि. 1 ( 1 ) 275 पाठा. अतिहारापेत्वा
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अतीत
अतिहित अति +धा का भू. क. कृ.. [ अतिहित], कहीं से लाकर रख दिया गया अतिहिता वीहि, थेरगा. 381; अतिहिता वीहीति वीहयो कोट्टागारं अतिनेत्वा ठपिता थेरगा. अट्ठ. 2.75.
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अतिहीन त्रि., कर्म. स. [ अतिहीन ], अत्यधिक तुच्छ, घटिया, धोखेबाज समं जीविकं कप्पेति नाच्चोगाळ्हं नातिहीनं अ. नि. 3 (1).110.
अतिहीळयानो अति + √हील का वर्त. कृ. आत्मने. [रहेड़,
.सं.], अत्यधिक अवज्ञा, निन्दा अथवा तिरस्कार कर रहा सके निकेतं अतिहीळयानो, जा. अड्ड. 4. 295; अतिहीळयानोति अतिमञ्ञन्तो निन्दन्तो गरहन्तो, जा. अट्ठ.
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4.295.
अतिहेद्वा निपा. क्रि. वि., अत्यधिक नीचे की ओर द्वारं अतिहेड्डा दीघजातिका कोटेन्ति दी. नि. अ. 1.204, विलो. अतिउपरि.
अतीत त्रि. / नपुं. अति + √इ का भू. क. कृ.. [ अतीत ] 1. क. क्रि. प्रचलित शा. अ. वह, जो बीत चुका है या पीछे जा चुका है, इस समय विद्यमान नहीं है- खणातीता हि सोचन्ति ध प 315; अतीतयोब्बनो पोसो, सु. नि. 110; एवं रूपो अहोसिं अतीमद्धानन्ति, स. नि. 2 (1).80; 1.ख. नपुं. भूतकाल, व्यतीत हो चुका कालखण्ड या क्षण, भूतकाल से सम्बन्धित कोई बात अतीतं नानुसोचन्ति स. नि. 1 (1).6; अतीतं नानुसोचामि जा० अट्ठ 6.31; 1.ग. भूतकाल के अर्थ में प्रायः अनागत अथवा पच्चुप्पन्न के साथ विप. के रूप में प्रयुक्त अतीतेसु अनागतेसु चापि सु. नि. 375; प्रायः तीनों का प्रयोग स. प. में अतीतानागतपच्चुप्पन्न के निर्धारित क्रम में प्राप्त अतीतानागतपच्चुप्पन्ने अत्थे चिन्तेतुं दी. नि. 1. 122; कभी-कभी अतीत पच्चुप्पन्न और अनागत
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परिवर्तित क्रम में भी प्रयोग अतीतं पच्चुप्यन्न अनागतञ्च अत्तनो पवत्तिं दस्सेन्तो..., पे. व. अट्ठ. 89; 2. क. ला. अ. त्रि., पूरी तरह से मुक्त हो चुका, अभिभूत कर चुका, पार कर चुका - सङ्गा जातिजराभयातीतं, थेरगा. 413; 2. ख. त्रि वह जिसका अतिक्रमण कर लिया गया है या जिसे पार कर लिया गया है अतीतेसूति पवत्तिं पत्वा अतिक्कन्तेसु पञ्चक्खन्धेसु सु. नि. अड. 2.88 3. मुहावरे के रूप में उल्लंघक या अतिक्रामक के आशय में प्रयुक्त एक धम्मं अतीतस्स, घ. प. 176 तंस पु. कर्म. स. [अतीतांश ]. ता हुआ भाग अथवा खण्ड, वह विशिष्ट भाग, जो पहले ही व्यतीत हो चुका है - अतीतंसेन सङ्ग्रहिता, ध. स. 1044;
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