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अतिसक्करी
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अतिसल्लेख
अतिसक्करी स्त्री., [अतिशक्वरी/अतिशक्करी], वह छन्द, अतिसयेन अलङ्कता, पे. व. अट्ठ. 75; अतिसयेन महद्धनोति जिस के प्रत्येक चरण में पन्द्रह मात्राएं होती हैं तथा जिसके महद्धनतरो, उदा. अट्ठ. 81; - टि. अट्ठ. के व्याख्यानों में ससिकला, मणिगुणनिकर, मालिनी और पभद्दक ये चार तुलनात्मक श्रेष्ठता का बोधक; - तो प. वि. के अर्थ में प्रभेद होते हैं, वुत्तो. 92-95.
निपा., क्रि. वि. [अतिशयतः], अतिशय अथवा अधिक मात्रा अतिसङ्केप पु. [अतिसंक्षेप], अत्यधिक संक्षेप - एत्थ अतिसङ्केपेन में - अतिसयतो वा सीलं अस्स अत्थीति सीलवा.... उदा. वुत्तं .... सु. नि. अट्ठ. 2.62.
अट्ठ. 180; - यत्थ पु., कर्म स., [अतिशयार्थ], महत्त्वपूर्ण अतिसज्जन नपुं.. [अतिसर्जन], दिशानिर्देश, अनुशासन, विषय, महत्त्व की बात - मा नो इमं अतिसयत्थं अजे शिक्षण, उपदेश - दिसअतिसज्जने, अतिसज्जनं पवोधनं जानिसूति, ध, प, अट्ठ. 2.227; - निरोध पु., कर्म. स., भवनेन, सद्द. 2.453.
[अतिशयनिरोध], पूरी तरह से समाप्ति या उच्छेद - अतिसञ्चार पु., [अतिसञ्चार], इधर-उधर अधिक घूमना अतिसयनिरोधो हि नेसं पठमज्झानादिसु ..., विसुद्धि. या चक्कर लगाना - अतिसञ्चारेन न चिरं जीवति, मि. प. 1.159; - निरोधत्त नपुं., भाव., [अतिशयनिरोधत्व]. 258, पाठा. अतिसञ्चरणेन.
अत्यधिक निरोध-प्राप्ति की अवस्था - ... एवं झानेस्वेव अतिसणिकं निपा., क्रि. वि., अत्यन्त मन्द गति से, अत्यन्त निरोधो वुत्तोति? अतिसयनिरोधत्ता, विसुद्धि. 1.159; - भरित मन्थर गति से - नातिसणिकं गच्छति, म. नि. 2.346. त्रि., [अतिशयभरित], अत्यधिक भरा हुआ - अतिसयभरिता अतिसण्ह त्रि., [अतिश्लक्षण]. अतीव सूक्ष्म, अत्यन्त बारीक उदकभाजना, म. नि. अट्ट (मू.प.) 1(1).278, पाठा. - सोपि नो अतिसण्हं बहु अभिधम्ममेव कथेसि.ध. प. अट्ठ. अतिभरिता; - विसुद्ध त्रि., कर्म. स., [अतिशयविशुद्ध]. 2.189.
अत्यधिक स्वच्छ, बहुत अधिक साफ-सुथरा - अतिसन्त त्रि., [अतिशान्त], अत्यधिक शान्त - नास्मसे अतिसयविसुद्धाहि विज्जाहि, सु. नि. अट्ठ. 2.148.
अत्तत्थपञम्हि, अतिसन्तेपि नास्मसे, जा. अट्ठ. 4.50. अतिसयति अति + /सी का वर्त, प्र. पु., ए. व., [अतिशेते, अतिसन्तिके निपा., क्रि. वि., अत्यन्त समीप में अत्यन्त अतिसेति के अन्त. द्रष्ट... पास में - महामेघवनुय्यानं नातिदूरातिसन्तिके, म. वं. अतिसरति अति + सर का वर्त., प्र. पु., ए. व., [अतिसरति], 15.8.
शा. अ. अत्यधिक दूर चला जाता है, पार कर जाता है, अतिसमण पु., [अतिश्रमण], श्रमणों के बीच सर्वश्रेष्ठ (बुद्ध) तेजी से दौड़ता है; ला. अ. उल्लंघन करता है, उपेक्षा - समणानं अतिसमणो भवेय्य, मि. प. 258.
करता है, पापकर्म करता है, विनय-विपरीत आचरण करता अतिसम्बाध त्रि., [अतिसम्बाध], बहुत संकुचित, अत्यधिक है - अच्चसारी/अच्चसरा अद्य.. प्र. पु., ए. व. - यो नियन्त्रित - चक्कवाळ अतिसम्बाधं, ध. प. अट्ठ. 1.176; वि. नाच्चसारी न पच्चसारी, सु. नि. 8-13; एत्थ यो नाच्चसारीति व. अट्ठ. 53. अतिसम्बाधे ओकासे चतुकोटेन चतुसङ्कटितेनेव यो नातिधावि, सु. नि. अट्ठ. 1.19; - तत्रेको भिक्खु अच्चसरा, हुत्वा अच्छितब्ब, जा. अट्ठ. 3.213.
स. नि. 1(1).276; - रो अद्य., म. पु., ए. व. - तत्थ अतिसम्मुखं/अतिसम्मुखा अ., क्रि. वि., [अतिसम्मुखं], अतिसरोति अतिसरीतिपि अतिसरो, जा. अट्ठ. 4.6; - अत्यन्त समीप में, एकदम आमने-सामने - छ निसज्जदोसे अच्चसरिं अद्य., उ. पु., ए. व. - मूळ्हो अच्चसरि वने, वज्जेत्वा सेय्यथिदं- अतिदूर ... अतिसम्मुखं अतिपच्छाति, जा. अट्ठ. 5.64; अच्चसरिन्ति ... अतिक्कमित्वा ... पाविसिं, पारा. अट्ठ. 1.94; अतिसम्मुखा निसिन्नो सचे दवकामो जा. अट्ठ. 5.68; - रिस्सति भवि०, प्र. पु., ए. व. - होति, पारा. अट्ट, 1.94; विलो. अतिपच्छा.
अतिसरिस्सतीतिपि अतिसरो, जा. अट्ठ. 4.6; - सित्वा पू. अतिसम्मूळ्ह त्रि., अति + सं + (मुह का भू. क. कृ. का. कृ. - अतिसित्वा अञ्जुन वदन्ति सुद्धि, सु. नि. [अतिसम्मूढ], अत्यधिक मोहग्रस्त, प्रगाढ़, अज्ञान से भरा 914. - मोमूहोति अतिसम्मूळ्हो, दी. नि. अट्ठ. 1.100. अतिसल्लेख पु., अति + सं+लिख से व्यु., [-संलेख?], अतिसय पु., [अतिशय], अधिकता, उत्कर्ष, उन्नति - अत्यन्त कठोर तप, प्रबल अनासक्तिभाव, कठोर ब्रह्मचर्यउक्कसो त्वतिसयोथ, अभि. प. 761; विसेसमज्झगाति अाहि वास - अमोहेन ... धुतङ्गेसु अतिसल्लेख-मुखेन पवत्तं.. अ. अतिसयं अधिगता, वि. व. अट्ठ. 111; समलङ्कततराति सम्मानि . अट्ठ. 1.130; - वुत्ति स्त्री., कर्म. स., अत्यन्त कठोर तप
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