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अतिविम्हितमानस
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अतिसक्क अतिविम्हितमानस त्रि., [अतिविस्मितमानस].. अत्यधिक अमच्चो अब्भन्तरिको अतिविस्सासिको ... सहायो, जा. आश्चर्यचकित मन वाला, विशेष रूप से आश्चर्यान्वित मन अट्ट, 1.94. वाला-चीवरं पारुपन्ते ते अतिविम्हितमानसो, म. वं अतिविस्सुत त्रि., [अतिविश्रुत], अत्यधिक विख्यात, बहुत 14.49.
अधिक प्रसिद्ध - पुण्णो सुनापरन्तो व खन्तिया अतिविस्सुतो, अतिविय निपा., [अतीव, अत्यधिक, अतिशय रूप में, सद्धम्मो. 473. अतिरेक रूप में - अतिरोचति अम्हेहीति अत्तना मादिसेहि अतिवीरिय नपुं.. [अतिवीर्य], अत्यधिक दृढ़ पराक्रम, अतिविय विरोचति, पे. व. अट्ठ. 122; न केवलं रागोव अत्यधिक शौर्य - बोधिसत्तो अतिवीरियं करोन्तो निरवसेसतो दोसमोहमानादयो सब्बकिलेसा तथारूपं चित्तं अतिविय आहारं उपरुन्धि, मि. प. 230. विज्झन्तियेव, ध. प. अट्ठ. 1.71, पाठा. अतिरिव, अतीव; क. अतिदुट्ठि स्त्री., [अतिवृष्टि], अत्यधिक वर्षा - तत्थ क्रियारूपों के पूर्व में प्रयुक्त - सूरियस्स तापो अतिविय अतिवुट्टिकाले थले सस्सं सम्पज्जति, जा. अट्ठ. 4.342. तपति, मि. प. 255; ख. विशे से पूर्व में प्रयुक्त - तदा अतिवुद्ध त्रि., [अतिवृद्ध], अत्यधिक बूढ़ा, अत्यधिक वृद्ध - कोसलराजा अतिविय धम्मिको राजा ति अत्वा .... जा. मासे जेट्ठोतिवुद्धातिप्पसत्थेसु च तीसु सो, अभि. प. 918. अट्ठ. 1.255; अयं मे अतिविय उपकारो ति तं पटिबाहितुं अतिवेग पु., [अतिवेग], अत्यधिक वेग, अतिशय वेग, विशेष असक्कोन्तो ..., ध. प. अट्ठ. 1.290; ग. तुळनासूचक विशे. तेजी - यथा, महाराज, पुरिसो अद्धानं अतिवेगेन गच्छेय्य, से पूर्व आए हुए, तृतीयान्त एवं पञ्चम्यन्त नामपदों से पूर्व मि. प. 230. में प्रयुक्त - इमे द्वे पिण्डपाता समसमफला ... अतिविय अतिवेठयन्ति अति + Vवेठ का वर्त., प्र. पु., ब. व. अओहि पिण्डपातेहि महप्फलतरा, मि. प. 110; दी. नि. [अतिवेष्टयन्ति], बदले में लपेट लेते हैं, प्रतिकार के रूप 2.103.
में दांव में बांध लेते हैं - रत्तचित्तमतिवेठयन्ति नं. अतिविरोचित्थ अति + वि + रुच का अद्य. म. पु., ब. सालमालुवलताव कानने, जा. अट्ठ. 5.450, व., अत्यधिक मात्रा में संशोभित हुआ - स्त्तकम्बलेन पलिवेठेत्वा अतिवेलं निपा., क्रि. वि. [अतिवेल]. निर्धारित सीमा का पीठे ठपिता रत्तसुवण्णघनपटिमा विय अतिविरोचित्थ, उदा. उल्लंघन करके, असामयिक रूप में, अनुपयुक्त समय में, अट्ठ. 336.
आवश्यकता से अधिक रूप में- ते अतिवेलं हस्सखिड्डारतिअतिविस स्त्री., [अतिविष], एक औषधीय जड़ी-बूटी का धम्मसमापन्ना विहरन्ति, दी. नि. 1.17; भिक्खनीहि नाम, सोंठ - मूलबीजं नाम ... अतिविसा, दी. नि. अट्ठ. सद्धि अतिवेलं संसट्टो विहरति, म. नि. 1.174; यो वे काले 1.75; अनुजानामि, भिक्खवे, मूलानि भेसज्जानि- हलिदि, असम्पत्ते, अतिवेलं पभासति, जा. अट्ठ. 3.88; - चारी त्रि., सिङ्गिवेरं वचं, वचत्थं, अतिविसं.... महाव. 276; पाचि. 53. [अतिवेलचारिन्], निर्धारित समय के बाद भी विचरने वाला अतिविसाल त्रि.. [अतिविशाल, अत्यधिक चौड़ा, बहुत - काले पविस्स नागदत्त, दिवा च आगन्वा अतिवेलचारी, फैला हुआ, अतिविस्तृत - अतिविसाले चङ्कमे चङ्कमन्तस्स स. नि. 1(1).232; - भाणी त्रि., असमय में बोलने वाला चित्तं विधावति, जा. अट्ट, 1.10; - ता स्त्री॰, भाव. - तक्कारिये सोममिमं पतामि, न किरेव साधु अतिवेलभाणी, [अतिविशालता], अतीव विशाल होने की स्थिति - एकग्गतं जा. अट्ठ. 4.222; - सायी त्रि.. [अतिवेलशायिन]. प्रातःकाल न लभतीति अतिविसालता पञ्चमो दोसो, जा. अट्ठ. 1.10. में बहुत देर तक सोने वाला - सम्मूळहचित्तो अतिवेलसायी, अतिविसट्ठवाक्य त्रि., ब. स., प्रवाहमय वचनों को बोलनेवाला तस्सा पुण्णं कुम्भमिमं किणाथ, जा. अट्ठ. 5.15; - लानुरक्खी - बिन्दुस्सरो नातिविसट्ठवाक्यो, जा. अट्ठ. 5.194; पाठा. त्रि., [अतिवेलानुरक्षी], अत्यधिक सावधान, विशेष रूप से नातिविस्सट्ट...
सचेष्ट - न च अतिवेलानुरक्खी पत्तस्मिं, म. नि. 2.347. अतिविस्सत्थ त्रि., [अतिविश्वस्त], बहुत भरोसेमन्द, अत्यन्त अतिस पु., एक व्यक्ति का नाम - अतिसो च भारद्वाजो च विश्वसनीय - मातापितूसु विय अतिविस्सत्था मनुस्सा अहेसु अतिसभारद्वाज, मो. व्या. 3.23. सु. नि. अट्ठ. 2.46.
अतिसक्क पु०. [अतिशक्र], शक्र से अधिक श्रेष्ठ (भगवान अतिविस्सासिक त्रि., [अतिविश्वासिक], अत्यधिक निकटवर्ती, बुद्ध)-सक्कानं अतिसक्को, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).56; अ. अतिशय विश्वासी - सो किर रओ सब्बत्थसाधको नि. अट्ठ. 1.90.
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