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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अतोहब्म 125 अत्तकाम पेसिता, जा. अट्ट, 5.394; ख. प्रायः तुल. विशे. से पूर्व में व. [आत्मना] - अत्तनाहि कतं पापं, अत्तना संकिलिस्सति, इससे अथवा उससे अधिक अर्थ में प्रयुक्त - अतो दुल्लभतराहं ध. प. 165, 379; - अत्तनो च./ष. वि., ए. व. [आत्मनः] म. नि. 3.208. - आकङ्घन्त विरागमत्तनो, ध. प. 343; मच्छो मरणमत्तनो, अतोहब्म त्रि., तोट्टब्भ का निषे. [अतोष्टव्य], न सन्तुष्टि जा. अट्ठ. 6.242; - अत्तनि सप्त. वि., ए. व. [आत्मनि देने योग्य, सन्तुष्ट न कराये जाने योग्य, प्रसन्न न कराने - अत्तनि वा, ... सति अत्तनियं मे ति अस्सा ति, म. नि. 1. योग्य - धनियं अतोडभेन तस्समानं अञआपदेसेनेव परिभासति. 191; ग. बुद्ध के समय में उपनिषदों आदि द्वारा परिकल्पित सु. नि. अट्ठ. 1.27, पाठा. अतुट्ठब्बेन.. नित्य, शुद्ध, बुद्ध एवं अविनाशी आत्मतत्त्व - रूपी अत्ता अत्त' पु.. [अर्थ], अत्थ के स्थान पर अप., आगे द्रष्ट... होति अरोगो परं मरणा असञी ति...., दी. नि. 1.27; अयं अत्त त्रि., [आत्त, आ + दा + क्त अथवा आप्त, आप् + अत्ता रूपी ... कायस्स भेदा उच्छिज्जति, दी. नि. 1.29; क्त], प्राप्त किया हुआ, गृहीत - अत्ता निरत्ता न हि तस्स मनोमयं ... अत्तानं पच्चेमि सब्बङ्गपच्चङ्गिं अहीनिन्द्रियन्ति, अत्थि, सु. नि. 793; अत्तं पहाय अनुपादियानो, सु. नि. 806%; दी. नि. 1.166; घ. अन्तरात्मा की आवाज, अपनी अन्तरात्मा अत्ता वापि निरत्ता वा, न तस्मिं उपलब्भति, स. नि. 864%; अथवा मन की आवाज - अत्तापि अत्तानं उपवदति, अ. नि. निरत्त का विलो.; - टि. सु. नि. अट्ठ. तथा महानि. ने अत्त 1(1).74; तं. ... अत्ता सीलतो उपवदति, स. नि. 2(1).109; (आप्त, गृहीत, प्राप्त) एवं अत्त (आत्मा) के मध्य विद्यमान अत्ता ते पुरिस जानाति, सच्चं वा यदि वा मुसा, अ. नि. श्लेष पर आधारित इस शब्द की विविध व्याख्या की है। 1(1).174; ङ. अपना प्रतिबिम्ब - ... जायेय्य अत्ता, मि. प. सम्भव है कुछ स्थलों में प्राप्त एवं गृहीत अर्थ वाले 'अत्त' 54; अत्ता च मे सो सरणं गती च, जा. अट्ठ. 7.176; - कत तथा आत्मार्थक 'अत्त' के मध्य परस्पर-व्यामिश्रण की स्थिति त्रि, तत्पु. स. [आत्मकृत], 1. स्वयं अपने द्वारा किया हुआ उत्पन्न हो गई हो. अत्तञ्जह, अत्तदण्ड एवं अत्तदान जैसे - मजे अत्तकतं वेर, जा. अट्ठ. 7.27; अत्तकतं वेरन्ति समस्त पदों में इस प्रकार के संभ्रम की स्थिति सुस्पष्ट है. अत्तना कतं पापं, तदे. 2. नपुं., अपने द्वारा किया हुआ - अत्त' त्रि., [आप्त, आप् + क्त], परिपूर्ण, भरपूर, भरा हुआ अत्तकतेन पन ते, ... पतन्ति, मि. प. 164, परकत का विप.; - अत्ताहिपि परिपुण्णाहि परिभासाहि .... दी. नि. 3.154; - कम्मफलूपग त्रि., [आत्मकर्म-फलोपग], अपने कर्मों के अत्तभावं उपनेत्वा कुत्ताहि परिपुण्णब्यञ्जनाहि.... दी. नि.. फलों को भोगने वाला - अत्तकम्मफलूपगोति अत्तनो कम्मफलेन अट्ठ. 3.136. उपगतो जा. अट्ठ. 5.267; - म्मापराध पु.. तत्पु. स. अत्त' नपुं.. [अत्त, अद् + क्त अथवा अत्र], भोजन, अन्न, [आत्मकर्मापराध], अपने कर्मों का अपराध अथवा दोष - वह, जो खाया जाए - इदादीहि तत्रण, क. व्या. 658. अत्तकम्मापराधोति अत्तनो कम्मदोसो, जा. अट्ठ. 4.401. अत्त नपुं॰, भाव., [अत्त्व, अ + त्वल ], अकार-वर्ण या स्वर अत्तकाम' त्रि., ब. स. [अर्थ-काम], अपने हित अथवा की अवस्था, अकारत्व - पञ्चादीनमत्तं, क. व्या. 90. कल्याण की कामना करने वाला, परमार्थ-धर्म या निर्वाण की अत्त' त्रि., [आत्म्य], अपने से स्वयं से या आत्मा कामना करने वाला - यत्थ अत्तकामा कुलपुत्ता सिक्खन्ति, से सम्बन्धित, अपना, आत्मीय - अत्तरूपायाति अत्तनो अ. नि. 1(1).263; ... अत्तकामाति अत्तनो हितकामा, अ. नि. अनुरूपाय .... दी. नि. अट्ठ. 3.41. अट्ठ. 2.208; अत्तकामा हि कुलपुत्ता सासने पब्बजित्वा, म. अत्त' पु. [आत्मन्], आत्मा, विविध अर्थ क. स्वयं, जीव, नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).268. स्वभाव, शरीर, पुरुष, व्यु. रू.; - अत्ता प्र. वि., ए. व. अत्तकाम- पु., तत्पु. स. [आत्म-काम]. अपने भीतर की [आत्मा] - जीवो तु पुरिसो अत्ता, अभि. प. 92; चित्ते काये अथवा चित्त की कामवृत्ति अथवा काम भावना, अपना अभिप्राय, सभावे च सो अत्ता परमत्तनि, अभि. प. 861; ख. स्वयं, अपना प्रयोजन - अत्तकामन्ति अत्तनो कामं अत्तनो हेतू आप, निज, इस अर्थ में संकेतवाचक सर्व के रूप में तीनों अत्तनो अधिप्पायं, पारा. 197; - ता भाव., स्त्री. पुरुषों का संकेतक तथा केवल पु. के ए. व. में ही प्रयुक्त; [आत्मकामता], अपने चित्त में कामवृत्ति की अवस्था - - अत्तानं/अत्तं द्वि. वि., ए. व. [आत्मानं] - अत्तन्ति विग्गहं उत्तरिञ्चेव, दुवल्लं अत्तकामता, उत्त. वि. 299; - अत्तानं, जा. अट्ठ. 6.243; यं वा तुम्हे इत्थिं गवेसेय्याथ, यं पारिचरिया स्त्री., तत्पु. [आत्मकाम-परिचर्या], अपने लिये वा अत्तानं .... महाव. 28; - अत्तना/अत्तेन तृ. वि., ए. कामभोगों का सेवन, कामभोगों में लिप्त रहते हुए जीवन For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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