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अतिरच्छानगामी
अतिरेक अतिरच्छानगामी त्रि., [अतिरश्चीनगामी], तिर्यक योनि में मानना - अनतिरिते अतिरित्तसञआया ति, मि. प. 248; - पुनर्जन्म ग्रहण न करने वाला प्राणी- सब्बे सोतसमापन्ना, सञी त्रि., अनतिरिक्त भोजन को अतिरिक्त भोजन अतिरच्छानगामिनो, स. नि. 1(1).181.
माननेवाला - अनतिरिते अतिरित्तसञ्जी खादनीयं वा भोजनीयं अतिरतनमार पु., [अतिरत्नभार], रत्नों का अत्यधिक भार वा खादति वा भुञ्जति वा, आपत्ति पाचित्तियरस, पाचि. या वज़न - किं नु खो, महाराज, अतिरतनभारेन सकट । 114; स. उ. प. के रूप में अकता., अन., कता., गिलाना. भिज्जतीति, मि. प. 224.
एवं सुगता. के अन्त. द्रष्ट; - टि. भोजन के साथ प्रयुक्त अतिरत त्रि., [अतिरात्र], बीती हुई रात का परवर्ती समय होने पर यह विनय का एक पारिभाषिक शब्द बन जाता है. - अतिक्कन्तो रत्तिं अतिरत्तो, मो. व्या. 345.
भिक्षसङ्ग को प्राप्त भोजन के अवशिष्ट भाग को अतिरिक्तभोजन अतिरत्तिं सप्त. वि., प्रतिरू. निपा., बहुत रात ढल जाने पर, कहा गया है, अनुमोदित अवस्थाओं में पवारित भिक्षु इस प्रातःकाल से कुछ पूर्व - अयं अतिरत्तिं वा वस्सति अतिपभाते भोजन को ग्रहण कर सकता है, ऐसा भिक्षु अनतिरिक्त वा, जा. अट्ठ. 1.418; 2.254.
भोजन ग्रहण नहीं कर सकता है, पाचि. संख्या 35. अतिरमणीय त्रि., [अतिरमणीय], अत्यन्त सुन्दर - खं खयं अतिरुचिर त्रि., [अतिरुचिर], अत्यन्त दर्शनीय, अतीव अतिरमणीयं राजक्खयं सद्द. 2.327.
सुन्दर, अतिशय प्रासादिक - अतिरुचिरसुवग्गु दस्सनेय्यं अतिरसकपूव पु., कर्म, स. [अतिरसकपूप], अत्यन्त रस पटिलभति दहरो सुसु कुमारो, दी. नि. 3.114. भरा पुआ - अथेकदिवसं तस्मिं घरे अतिरसकपूवे पचिंस, अतिरूपिनी स्त्री., अत्यन्त सुन्दरी, अधिक लावण्यमयी - जा. अट्ठ. 5.279.
दिस्वा तमेवं चिन्तेसिं अहोयमभिरूपिनी, अप. 2.217, पाठा. अतिरस्स त्रि., कर्म. स. [अतिहस्व], अत्यन्त छोटा - अभिरूपिनी. नातिदीघा नातिरस्सा, नालोमा नातिलोमसा, जा. अट्ठ. अतिरेक त्रि., [अतिरेक], अधिक, और भी अधिक, विशिष्ट, 6.287; हीनं नाम लिङ्ग अतिदीघं, अतिरस्स, पाचि. 9. अन्य की अपेक्षा अधिक, परित्यक्त, छोड़ा हुआ - नात्तनो अतिराग पु.. [अतिराग]. अत्यधिक आसक्ति, सुदृढ़ लगाव समकं कञ्चि, अतिरेकं च मञ्जिसं, थेरगा. 424; अहि -- अतिरागेन उम्मत्तको होति, मि. प. 258.
ब्राह्मणेहि अतिरेकं कत्वा पस्सति, जा. अठ्ठ. 3.166; यथा हि अतिराज पु.. [अतिराजन्], राजाधिराज, बहुत बड़ा राजा - तुलं गहेत्वा ठितो अतिरेकं चे होति, हरति, ऊनं चे होति, राजूनं अतिराजा भवेय्य, मि. प. 258; आम, जम्बुक, पक्खिपति, ध. प. अट्ठ. 2.228; - कद्धमास पु., आधे महीने महाराजूनम्पि अतिराजा ति, ध. प. अट्ठ. 1.283; - कुमार से भी अधिक वाला समय - अतिरेकद्धमासे सेसे गिम्हाने पु., राजाधिराज का पुत्र, विशिष्ट शक्ति एवं महिमा से कत्वा परिदहितं निस्सग्गियं, पारा. 378; - करण नपुं., सम्पन्न राजकुमार - अतिरेकतरो चेव विसेसवन्ततरो च [अतिरेककरण], अतिरिक्त कर देना, अतिशय या विशिष्ट राजकुमारो सो अतिराजकुमारो ति वुच्चति, ध. स. अट्ठ.4. कर देना - अत्तनो करणतो अतिरेक करणं अकरीति अत्थो, अतिरिच्चति अति + रिच का वर्तः, प्र. पु., ए. व., दूसरे जा. अट्ट, 1.413; - चतुमासनिविट्ठ त्रि., चार महीनों से की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ होता है, दूसरे को पारकर आगे बढ़ भी अधिक समय के लिये बसा हुआ - योपि सत्थो जाता है - इच्छाविघातं दुक्खं कि नरकं नातिरिच्चति, अतिरेकचतुमासनिविट्ठो सोपि वुच्चति गामो, पारा. 52; - सद्धम्मो. 126; - च्वेय्य विधि., प्र. पु., ए. व. - किं नु खो चीवर अननुमोदित या अननुज्ञात चीवर - अतिरेकचीवरं नातिरिच्चेय्य मनुस्से जम्बुदीपके, सद्धम्मो. 23.
नाम अनधिद्वितं अविकप्पितं, पारा. 303; - तर त्रि., अतिरित्त त्रि., अति + रिच का भू. क. कृ. [अतिरिक्त], अतिशयार्थ-वाचक पञ्चम्यन्त के साथ प्रयुक्त विशे. अवशिष्ट, शेष, बचा हुआ, बाकी, अधिक - अतिरित्तो [अतिरेकतर], और भी अधिक विशिष्ट अथवा उत्तम - तथाधिको, अभि. प. 712; अनुजानामि, भिक्खवे, गिलानस्स दानतो अतिरेकतरं पुअन्ति, जा. अट्ठ. 7.215; चतूहि च अगिलानस्स च अतिरित्तं भुजितुं, पाचि. 113; - भत्त । समुद्देहि अतिरेकतरेन अस्सुना भवितब्बन्ति इदं, ध. प. अट्ठ. नपुं., भिक्षुसङ्घ को प्राप्त भोजन का अतिरिक्त भाग - अस्थि 1.304; - तरपञ त्रि., ब. स. [अतिरेकतरप्रज्ञ], अन्य की किञ्चि भिक्खुसङ्घस्स अतिरित्तभत्तान्ति, ध. प. अट्ठ. 2.152; प्रज्ञा की अपेक्षा अधिक उत्तम प्रज्ञा वाला - तेहि किर - सज्ञा स्त्री., किसी भी भोजन को अतिरिक्त भोजन पण्डितेहि अतिरेकतरपा पञ्चालरओ माता, जा. अट्ठ.
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