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अञ्ञवादी
अज्ञवादी त्रि. [अन्यवादिन्] बौद्धेतर सिद्धान्त का प्रतिपादक -दिनं पु.. द्वि. वि. ए. व. इतो बहिद्धा पुथु अज्ञवादिन, थेरगा. 86.
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अञ्ञविहित / अञ्ञाविहित त्रि., [ अन्यविहित], दूसरे विचारों में जूबा हुआ, दूसरे के विचारों में निमग्न, दूसरी चीजों के बारे में विचार करने वाला अन्यमनस्क स पु०, ष. वि., ए. व. तस्स अञ्ञविहितस्स एको सुनखो ते आदाय पलायि, जा. अट्ठ 6.76; ता स्त्री. प्र. वि., ए. व. अञ्ञविहिता सन्तिट्ठति वा सल्लपति वा, उम्मत्तिकाय, आदिकम्मिकायाति पाचि 367.
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अज्ञसत्थारुद्देस पु०, अन्य शास्ता का ग्रहण या स्वीकरण, छः प्रकार के गम्भीर अपराधों में से एक सेन तृ. वि., ए. व. अज्ञसत्थारुडेसेन सह छ ठानानि न करोति. खु. पा. अट्ट, 150 ≠ अपगतकोतुहलमङ्गलिको जीवितहेतुपि न अज्ञ सत्थारं उद्दिसति, मि. प. 106.
अञ्ञसत्थु पु०, कर्म. स. [ अन्यशास्तृ], दूसरा शास्ता या मार्गदर्शक रहि. वि. ए. व. भवन्तरेपि हि अरियसावको
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अज्ञसत्धारं उद्दिसतीति म. नि. अड. (मू.प.) 1 (1).144. अञ्ञसमान त्रि. [अन्यसमान]. शा. अ. दूसरे के समान, ला. अ. भिन्न-भिन्न प्रकार के चित्तों में समान रूप से प्राप्त स्पर्श आदि तेरह चैतसिक, जिनमें सात सब्बचित्तसाधारण तथा शेष छः प्रकीर्णक हैं ना पु०, प्र. वि., ब.व.
तेरसञ्ञसमाना च, चुद्दसाकुसला तथा अभि. ध. स. 9. अज्ञसित त्र [अन्याश्रित] किसी अन्य पर निर्भर या आश्रित, किसी दूसरे पर अवलम्बित तं पु. द्वि. वि. ए. व. वदन्ति ते अज्ञसितं कथज्जं सु. नि. 831 ता पु.. प्र. वि०, ब० व अञ्ञसिता कथोज्जन्ति ते अञ्ञमञ सत्धारादि निस्सिता कलहं वदन्ति, सु, नि, अड. 2.332. अज्ञा स्त्री. [आज्ञा] अर्हत्वफल के क्षण में प्राप्य सम्यकज्ञान अञ्ञा तु अरहत्तं च, अभि. प. 436; ञाय तृ. बि. ए. व. अञ्ञाय निब्बुता धीरा तिष्णा लोके विसत्तिक, स० नि० 1 (1).28; - ञ्ञा प्र. वि., ए. व. - दिट्ठेव धम्मे अञ्ञा, सु. नि. (पृ.) 190; दिद्वेव धम्मे अञ्ञाति अरिमयेव अत्तभावे अरहतं सु. नि. अड. 2.200 तुल.
आणा.
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अज्ञाकोण्डज्ञ / अज्ञातकोण्डज्ञ पु.. [बौ. स. आज्ञातकौण्डिन्य] 1. सर्वप्रथम अर्हत्व प्राप्त करने वाले एक स्थविर - शिष्य का नाम पञ्चवर्गीय भिक्षुओं में से एक, पूर्वकाल में कौण्डिन्य के नाम से विख्यात रस ष. वि.,
अञ्ञाण
ए. व. - इति हिदं आयस्मतो कोण्डञ्ञस्स अञ्ञासिकोण्डञ त्वेव नामं अहोसि महाव, 16 स.नि. 3 ( 2 ) 487 2 केवल कोण्ड नाम से भी प्रसिद्ध कोण्डञहं भगवा, कोण्डञहं, सुगता ति स. नि. 1 ( 1 ) 224 3(2).487: थेरगा. की गाथा संख्या 673-688 गाथाओं का रचयिता ते सु अञ्ञासिकोण्डञ्ञत्थेरो अट्ठारसहि ब्रह्मकोटीहि सद्धिं सोतापसिफले पतिद्वासि जा. अट्ट. 1.90 अप. 1.45: घ. स.
अट्ठ. 82; द्रष्ट, अञ्ञासिकोण्डञ्ञ. अज्ञचित्त नपुं. [आज्ञाचित्त] अर्हत्वफललक्षण में प्राप्त सम्यक् ज्ञान के लिये तत्पर चित्तत्तं द्वि. वि. ए. व. अञ्ञाचित्तं उपटुपेन्तीति अञ्ञाय आजाननत्थाय चित्तं न उपहन्ति दी. नि. अड. 1.298 पाठा. अञ्ञ चित्तं अञ्ञाण' त्रि, निषे०, ब० स० [ अज्ञान], न जानने वाला, अज्ञानी, मूर्ख, अविद्याग्रस्त णेन पु. तृ. वि. ए. व. - बालिसेन अञ्ञाणेन पुरिसेन न सका जानितुं जा. अड. 3. 236 णो पु. प्र. वि. ए. व.
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बालो अहोसि अञ्ञाणो, जा. अ. 3.200, मनुस्स पु.. [ अज्ञानमनुष्य ] अज्ञानी मनुष्य स्सा प्र. वि. ब. व. - इमे अञ्ञाणमनुस्सा पाणातिपातं करोन्ता नन्दन्ति तुस्सन्ति, जा. अट्ठ. 3.255. अञ्ञाण नपुं., ञाण का निषे, तत्पु० स० [अज्ञान ], अविद्या, मोह, ज्ञान का अभाव, ज्ञानाभाव - मोहोविज्जा तथाञ्ञाणं, अभि. प. 168 यं अजाणं अदस्सनं अनभिसमयो अननुबोधो असम्बोधो अप्पटिवेधो... पु. ए. 127 - णाभिभूत त्रि.. [अज्ञानाभिभूत], अज्ञान से ग्रस्त प्रमादग्रस्त प्रमादापन्न
तो पु. प्र. वि., ए. व. सो अज्ञाणाभिभूतो नेव बुद्ध उपहहि न असीति महाथेरे ध. प. अ. 2.151 णुपेक्खा स्त्री. [अज्ञानोपेक्षा], अज्ञानता के कारण उत्पन्न उपेक्षाभाव
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उप्पज्जति उपेक्खा ति एत्थ उपेक्खा नाम अञ्ञाणुपेक्खा, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.196 - क नपुं०, अज्ञान, मूर्खता, मोह केन तृ. वि. ए. व. अञ्ञाणकेन आपन्नोति,
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पाचि. 194; न च तस्स भिक्खुनो अञ्ञाणकेन मुत्ति अत्थि, पाचि 193: करण त्रि. [ अज्ञानकरण] अज्ञान उत्पन्न करने वाले, अविद्याजनक णा पु. प्र. वि. ब. क. पञ्चिमे, भिक्खवे, नीवरणा अन्धकरणा अचक्खुकरणा अञ्ञाणकरण, स. नि. 3(1)118: एवं अञ्ञाणकरणा किलेसा नाम, जा. अट्ठ. 1.293; चरिया स्त्री॰ [अज्ञानचर्या ], राग द्वेष एवं मोह भरे चित्त वाली जीवनवृत्ति, पटि म में वर्णित 28 प्रकार की चर्यायों में से एक अञ्ञाणचरिया ति केनट्टेन अञ्ञाणचरिया? सरागा चरतीति अञ्ञाणचरिया,