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अट्ठपरिक्खारधर
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अट्ठपरिक्खारघर त्रि., आठ प्रकार के परिष्कारों अर्थात् मूलभूत जीवनसाधनों से सम्पन्न, परिक्खार के अन्त. द्रष्ट. - तावदेवस्स गिहिलिङ्ग अन्तरधायि अद्वपरिक्खारधरो
सद्विवस्सिकमहाथेरो विय अहोसि, ध. प. अट्ठ. 1.284. अट्ठपरिवट्ट त्रि., [अष्टपरिवर्त], आठ प्रकार के परिवों से युक्त, आठ प्रकार के विशिष्ट लक्षणों से अन्वित - यावकीवं च मे, भिक्खवे, एवं अट्ठपरिवर्ल्ड अधिदेवाणदस्सनं न सुविसुद्ध अहोसि, अ. नि. 3(1).128; - टि. दिव्यचक्षुज्ञान आदि आठ प्रकार के विशिष्ट ज्ञान ही अट्ठपरिवट्ट शब्द द्वारा संसूचित हैं, द्रष्ट., अ. नि. अट्ठ. 3.241-242. अट्ठपाद त्रि., ब. स. [अष्टपाद]. 1. न., आठ पैरों वाला। जीव-जन्तु - पीठञ्च सब्बसोवण्णं, अट्ठपादं मनोरम, जा. अट्ठ. 5.373; 2. पु., मृग की एक जातिविशेष, शरभमृग - अट्ठपादा च मोरा च, भस्सरा च कुकुत्थका, जा. अट्ठ. 7.306; अट्ठपादाति सरभा मिगा, जा. अट्ठ. 7.307; 3. पु., एक विशेष प्रकार की मकड़ी, अट्ठापद के अन्त. द्रष्ट.. अट्ठपितधुर त्रि., ब. स. [आस्थापितधुर], वह, जिसने भारवहन करना अस्वीकार न किया हो, वह, जिसने अभी तक भार न उतार फेंका हो, सुदृढ़ वीर्यवाला - अनिक्खित्तधुरोति
अट्ठपितधुरो पग्गहितवीरियो, अ. नि. अट्ठ. 3.141. अट्ठम त्रि., [अष्टम], आठवां, अष्टम - एवं छट्ठमो सत्तमो अट्ठमो नवमो दसमो, क. व्या. 375; इति हेतं विजानाम, अट्ठमो सो पराभवो, सु. नि. 107; - क पु.. [अष्टमक], विशुद्धि की आठवीं अवस्था में प्रविष्ट व्यक्ति, आठ प्रकार के आर्यपुद्गलों में अधम स्थिति में आपन्न व्यक्ति - यानि अट्ठमकस्स इन्द्रियानि, इमे उप्पन्ना कुसला धम्मा, नेत्ति. 18; अट्ठमकस्स सोतापन्नस्स च कामरागब्यापादा साधारणा ..., नेत्ति. 42; अट्ठमक स्साति सोतापत्तिफलसच्छिकिरियाय पटिपन्नस्स, नेत्ति. अट्ठ. 239; - कथा स्त्री., कथा. की एक कथा का शीर्षक, कथा. 204-207; - स्स इन्द्रिय-कथा स्त्री., कथा. के तीसरे वर्ग की एक कथा का शीर्षक, कथा. 207-210. अट्ठमङ्गल नपुं.. [अष्टमङ्गल], आठ माङ्गलिक वस्तुएं, आठ प्रकार के मंगल - कञ्चनचित्तसन्निभन्ति, कञ्चनमयेन सत्तरतनविचित्तेन अट्ठमङ्गलेन समन्नागतं, जा. अट्ठ. 5.405. अट्ठमास नपुं.. [अष्टमास], आठ महीने - अट्ठमासे असम्पत्ते, अरहत्तमपापुणिं, अप. 2.192, पाठा. अडमास.
अट्ठवत्थुक अट्ठमासिक त्रि., [अष्टमासिक], आठ महीना पुराना, आठ महीने वाला - मासिको पि चवति मरति अन्तरधायति ... अट्ठमासिको पि..., महानि. 86.. अट्ठमी स्त्री., [अष्टमी], 1. किसी भी संख्या में आठवीं - अनिच्चतायेव अट्ठमीति, स. नि. 2(2).309; 2. चान्द्रमास के प्रत्येक पक्ष की आठवीं तिथि - ततो च पक्खस्सुपवस्सुपोसथं, चातुद्दसिं पञ्चदसिञ्च अट्ठमि, सु. नि. 404; चातुद्दसिं पञ्चदसिं, या च पक्खस्स अट्ठमी, थेरीगा. 31; 3. आलपन-विभक्ति के रूप में निरुत्तिपिटक की निर्वचन-परम्परा के अनुसार आठवीं विभक्ति - आमन्तणवचने अट्ठमी विभत्ति भवति, सद्द. 1.60... अट्ठमुख त्रि., ब. स. [अष्टमुख], शा. अ. आठमुखों वाला, ला. अ. आठ मुख्य बिन्दुओं से युक्त वादपद्धति - चतूसु पहेसु द्विन्न पञ्चकानं वसेन अट्ठमुखा वादयुत्ति, ध. स. अट्ठ. 5. अट्ठयोजन त्रि., [अष्टयोजन], आठयोजन की दूरी तक फैला हुआ, द्रष्ट. योजन के अन्त.. अद्वरतन त्रि., ब. स. [अष्टरत्न], आठ हाथों की लम्बाई की मापवाला - मुखवट्टितो पट्ठाय अट्टरतनं, अ. नि. अट्ठ. 3.268; - निक त्रि., उपरिवत् - तिवित्थतं दसपरिणाहं अट्ठरतनिकं सकट्ठानमुपगतं दिस्वा, मि. प. 286; - नुब्बेध त्रि., [अष्टरत्नोद्वेध], आठ हाथों की ऊंचाई वाला - यथा, महाराज, तिधा पभिन्नो सब्बसेतो.... अट्ठरतनब्बेधो ... पासादिको दस्सनीयो उपोसथो नागराजा, मि. प. 262. अट्ठलोकधम्म पु.. (सामान्यतया ब. व. में प्राप्त), लाभ, सत्कार आदि आठ प्रकार की सांसारिक उपलब्धियां - अट्ठलोकधम्मपदन्तिपि वदन्तियेव, जा. अट्ठ. 3.146; - वात पु., लौकिक उपलब्धियों रूपी आठ प्रकार के झञ्झावात - गिरिराजवरसम, महाराज, धुतगुणं विसुद्धिकामानं अट्ठलोकधम्मवातेहि अकम्पियढेन, मि. प. 321; - म्मातिक्कम पु., आठ प्रकार की लौकिक उपलब्धियों का अतिक्रमण - अट्ठलोकधम्मातिक्कमा, उदा. अट्ठ. 273. अट्ठवङ्क त्रि., [अष्टावक्र], शा. अ. आठ स्थानों से वक्र, ला. अ. अष्टकोणीय (विशेष रूप से वैरोचननामक रत्न के लक्षण के रूप में प्रयुक्त) - अट्ठव मणिरतनं उळार, सक्को ते अददा पितामहस्स, जा. अट्ठ 6.217. अट्ठवत्थुक त्रि., ब. स. [अष्टवस्तुक], आठ वस्तुओं पर आधारित अथवा उनसे सम्बद्ध - अट्टवत्थुकाय कवाय अवितिण्णभावेन अवितिण्णकल मच्चं सोधेन्तीति, ध. प.
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