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अट्ठवस्सिक
अट्ठान अट्ठ. 2.44; अट्ठवत्थुकेन हि अविज्जान्धकारेन ओनद्धा, ध. धम्मपरियायं देसेस्सामि. स. नि. 2(2).225; - परियायवग्ग प. अट्ठ. 2.57; अयम्पि पाराजिका होति असंवासा पु., स. नि. के एक वर्ग का शीर्षक, स. नि. 2(2).224-232; अट्ठवत्थुका ति, पाचि. 297; - हेतु पु., आठ प्रकार की - भेद त्रि., ब. स., एक सौ आठ उपविभागों वाला - वस्तुओं का कारण - अपराधकारकस्स अट्ठवत्थुकहेतु अद्वेव, अट्ठसतभेदेन तोहानिस्सयेन द्वासट्ठिभेदेन दिद्विनिस्सयेन च जा. अट्ठ. 3.391.
.... सु. नि. अट्ठ. 2.87; - सहस्सविभव त्रि., वह, जिसके अद्ववस्सिक त्रि.. [अष्टवार्षिक]. आठ वर्षों वाला, अष्टवर्षीय पास आठ लाख तक की सम्पत्ति हो - सावत्थियं किरेको - अद्ववस्सिकोपि ... चवति मरति अन्तरधायति ब्राह्मणो अट्ठसतसहस्सविभवो, ध. प. अट्ठ. 2.286; - सुत्त विप्पलुज्जतीति, महानि. 87.
नपुं., स. नि. के एक सुत्त का शीर्षक, स. नि. 2(2).225-26. अट्ठवाचिक त्रि., [अष्टवाचिक], शा. अ. आठ प्रकार की अट्ठसत्ततिवस्स त्रि., ब. स. [अष्टसप्ततिवर्ष], अठहत्तर वचन-विज्ञप्तियों से युक्त, ला. अ. भिक्षुणियों की उपसम्पदा वर्षों की आयुवाला - अट्ठसत्ततिवस्साहं, पच्छिमो वत्तते वयो, - अट्ठवाचिका उपसम्पदा, परि. 265; अट्ठवाचिका भिक्खुनीनं अप. 2.254. उपसम्पदा उभतोअत्तिचतुत्थत्ता, वजिर. टी. 513; - टि. अट्ठसद्द-जातक नपुं., जा. कथानकों में से एक जातक का भिक्षुणियों की उपसम्पदा में दो बार ज्ञप्तिचतुर्थकर्म निर्धारित शीर्षक, जा. अट्ठ. 3.379-85. है, अतः भिक्षुणियों की उपसम्पदा को अट्ठवाचिका उपसम्पदा अट्ठसमापत्तियान नपुं., आठ प्रकार की आध्यात्मिक कहा गया है.
उपलब्धियों को प्राप्त कराने वाला वाहन या साधन - अट्ठविध त्रि., [अष्टविध], आठ प्रकार का, आठ तरह का, देवलोकयानसञ्जितं अट्ठसमापत्तियानं अभिरुव्ह, सु. नि. अष्टविध, आठ तरह वाला - लाभो अलाभो यसो अयसो अट्ठ 1.148. निन्दा पसंसा सुखं दुक्खन्ति अयहि अट्ठविधो लोकधम्मो. अट्ठसहस्स नपुं.. [अष्टसहस्र], 1. आठ हजार - ततो जा. अट्ठ. 2.159; अट्ठविधेन रूपक्खन्धो, विभ. 163; अट्ठसहस्सनागासरं ओतरित्वा .... जा. अट्ठ. 5.35;2. नपुं.. अट्ठविधेन रूपसङ्गहो, ध. स. 590.
श्रीलङ्का के एक क्षेत्र विशेष का नाम - देसं अट्ठसहस्सव्हं अट्ठवीसति स्त्री., [अष्टाविंशति], अट्ठाईस - कतमे दत्वान वसितुं तहिं, म. वं. 61-24; - पाद त्रि., ब. स. अट्ठवीसति? मि. प. 141; अट्ठवीसति वस्सानि रज्जं कारेसि [अष्ठसहस्रपाद], आठ हजार पैरों, जटाओं या प्रशाखाओं खत्तियो, म. वं. 34.37; नक्खत्तपदकोविदोति अट्ठवीसतिया (बरोहों) से युक्त (वटवृक्ष) - तत्थहसा मेघसमानवण्णं, नक्खत्तकोट्ठासेसु छेको, जा. अट्ठ. 6.308; -- क्खत्तुं निपा., निग्रोधराजं अट्ठसहस्सपाद, जा. अट्ठ. 5.42. क्रि. वि. अट्ठाईस बार - अट्ठवीसतिक्खत्तुञ्च, चक्कवत्ती अट्ठहत्थ त्रि., ब. स. [अष्टहस्त], आठ हाथ की लम्बाई अहोसहं, अप. 1.33.
वाला - एकं सत्तहत्थं एक अट्ठहत्थान्ति द्वे वस्सावासिकसाटके अट्ठवीससत नपुं.. [अष्टाविंशतिशत], एक सौ अट्ठाईस - लभित्वा .... ध. प. अट्ठ. 1.171. अट्ठावीससतं पदानि सा. सं. 13.
अट्ठान नपुं., ठान का निषे. [अस्थान], 1. अनुपयुक्त विषय अट्ठसट्ठि स्त्री., [अष्टाषष्टि], अड़सठ - सटिकम्हि निपातम्हि, अथवा क्षेत्र, अनुपयुक्त स्थल, अनुपयुक्त काल - अट्ठाने मोग्गल्लानो महिद्धिको, एकोव थेरगाथायो, अट्ठसट्टि भवन्ति पदेसे मता मद्दी, जा. अट्ठ. 7.343; 2. असंभाव्यता, असम्भव ताति, थेरगा. (पृ.) 295; महाभिक्खुसङ्को पटिवसति होना (यदि उत्तरवर्ती उपवाक्य में 'य' तथा 'विधि' के अट्ठसद्धिभिक्खुसतसहस्सं दी. नि. 2.35; कम्मानि आरभाषेत्वा क्रियारूप हों) - अट्टानं तं सङ्गणिकारितस्स, यं फस्सये लेणानि अट्ठसट्टियो, म. वं. 16-12.
सामयिक विमुत्तिं सु. नि. 54; अट्ठानमेतं, आनन्द, अनवकासो अट्ठसत नपुं., [अष्टाशत]. 1. एक सौ आठ - अट्ठसतम्पि यं तथागतो ... पाराजिकं सिक्खापदं पञ्जत्तं समूहनेय्याति, मया वेदना वुत्ता परियायेन, स. नि. 2(2).226; ये पुग्गला पारा. 25; अट्ठानमेतं अनवकासोति उभयम्पेत अट्ठसतं पसत्था, सु. नि. 229; 2 आठ सौ - वेदानं पारङ्गते कारणपटिक्खेपवचनं, पारा. अट्ठ. 1.178; 3. (केवल सप्त. अट्ठसतब्राह्मणे निमन्तेत्वा, जा. अट्ठ. 1.66; - परियाय पु., वि., ए. व. में 'अट्ठाने' रूप में), अनुपयुक्त व्यक्ति के बारे [पर्याय], एक सौ आठ संख्या तक विस्तृत वेदनाओं से में - ... अट्ठाने कोपं बन्धित्वा .... जा. अट्ठ. 4.185; 4. सम्बन्धित धर्मोपदेश की पद्धति - अट्ठसतपरियायं वो, भिक्खवे. (अट्ठानेन रूप में), बिना किसी उपयुक्त कारण के, अकारण,
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