________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
106
अतिण्ण
अतिचिरं अतिचिरं निपा. क्रि. वि. [अतिचिरं], बहुत देरी करके, अधिक विलम्ब करके - अतिचिरं सम्म, सत्तमासा, चूळव.
318.
अतिचिरनिवास पु., बहुत अधिक अवधि वाला निवास, लम्बे समय तक एक साथ रहना - तस्स ते अतिचिरनिवासेन सा सति पमुट्ठा, म. नि. 1.412; पाठा. अतिचिरनिवास. अतिचिरायति अतिचिरं से व्यु.. ना. धा.. वर्त, प्र. पु.. ए.. व. [अतिचिरायति], अत्यधिक विलम्ब करता है, अतिशय देरी करता है - अतिचिरायति मे पियसामिको, जा. अट्ठ. 4.414; - यन्ते पु., वर्त. कृ., सप्त. वि., ए. व. - तस्मिं अतिचिरायन्ते सरं विचिनापेत्वा दीपालोकेन परिसम्भन्तरानिपि ओलोकेत्वा अदिस्वा गतो भविस्सतीति पक्कामि, ध. प. अट्ठ. 1.202. अतिच्च निपा. अति + Vइ का पू. का. कृ. [अतीत्य]. 1. पार करके, सीमा का अतिक्रमण करके, विजय प्राप्त करके, आरूढ़ होकर - संसारमतिच्च ... केवली, सो, सु. नि. अट्ठ. 2.137; तं सङ्गमतिच्च अरूपसञी, चतुयोगातिगतो न जातु मेती ति, उदा. 153; 2. और भी आगे जाकर, और भी अधिक - यो चेपि अतिच्च जीवति, अथ खो सो जरसापि मिय्यति, सु. नि. 810; कत्वा पापं पुन पटिच्छादनतो अतिच्च आसरन्ति एताय सत्ताति अच्चासरा, विभ. अट्ठ 465. अतिच्छता/अत्रिच्छता अति + इच्छा का भाव., स्त्री. [अतीच्छता, अत्यधिक इच्छापरायणता, प्रबल आसक्तिमयी मनोवृत्ति - इतरीतरचीवरपिण्डपातसेना-सनगिलानप्पच्चयभेसज्जपरिक्खारेहि पञ्चहि वा कामगुणेहि असन्तुस्स भिय्योकम्यता ... अयं वुच्चति अत्रिच्छता, विभ. 401-2; अत्तनो लाभं अतिच्च इच्छनभावो अतिच्छता, विभ. अट्ठ. 444. अतिच्छत्त नपुं.. [अतिच्छत्र], विशिष्ट रङ्गरूप अथवा अतिरिक्त प्रमाण वाला छाता, विशेष प्रकार का छत्र - बहूसु छत्तेसु चेव धजेसु च यं अतिरेकप्पमाणं विसेसवण्णसण्ठानञ्च छत्तं तं अतिच्छत्तन्ति वुच्चति, ध. स. अट्ठ. 4; स. उ. प. में द्रष्ट. छत्तातिच्छत्त के अन्त.. अतिच्छा स्त्री., तिच्छा का निषे. अथवा अति + इच्छा = [अतीच्छा, अतृप्स्या, अतृप्त्या], अत्यधिक तृष्णा, दृढ़ आसक्ति और अधिक पाने की लालसा, असन्तुष्टि - अथ त्वं यथालद्धेन असन्तट्ठो, अत्र उत्तरितरं लभिस्सामी ति एवं लद्धं लद्ध अतिक्कमनलोभसङ्घाताय अतिच्छाय समन्नागतत्ता अतिच्छो
जा. अट्ठ. 4.5
अतिच्छापेहि अतिच्छति का प्रेर., अनु., म. पु., ए. व., आगे कदम बढ़ाने अथवा आगे बढ़ने को उत्प्रेरित करो - वन्दित्वा अतिच्छापेही ति, जा. अट्ठ. 3.407. अतिछात त्रि., बहुत अधिक भूखा - अतिछातोस्मीति कम्म
न करोति, दी. नि. 3.139. अतिछेक त्रि., [अतिछेक], अधिक निपुण, अतीव प्रवीण, अतीव दक्ष, अतिशय चतुर - यथा हि अतिछेको मधुकरो असुकस्मिं रुक्खे पुष्फ पुष्फितन्ति ञत्वा..., विसुद्धि 1.132; तेसे तेसु वादेसु च अतिछेको, सा. वं. 28. अतिजगती स्त्री., एक विशेष छन्द का नाम, जिसके अन्तर्गत प्रहर्षिणी तथा रुचिरा आदि प्रभेद आते है - अतिजगति म्ना ज-रा गो तिदसयतिप्पहासिनी सा .... वुत्तो. 87-88. अतिजच्चता स्त्री॰, भाव. [अतिजातिता], अत्यधिक उच्चगुणसम्पन्नता, अत्यधिक कल्याणकारी होने की दशा - अगदो अतिजच्चताय पीळाय समुग्घातको रोगानं अन्तकरो, मि. प. 258. अतिजव त्रि., [अतिजवन], अत्यधिक वेग वाला, महान् वेग वाला, शीघ्रगामी - महाजवन्ति अतिजवं सीघगामि, वि. क. अट्ठ. 212. अतिजात त्रि., [अतिजात], बुद्ध, धर्म एवं संघ के प्रति श्रद्धा रखने में अपने माता-पिता से आगे रहने वाला, उच्चकुलोत्पन्न व्यक्ति से भी अधिक उत्तम, अपने पूर्वजों की तुलना में अधिक आगे बढ़ा हुआ - तयो मे, भिक्खवे, पुत्ता ... अतिजातो अनुजातो अवजातोति, इतिवु. 47; अभिजातोति अतिजातो सुद्धजातो, जा. अट्ठ. 4.287, विलो. अनुजात, अवजात. अतिजातिता स्त्री., भाव., उत्तम प्रकृति से युक्त होने की
अवस्था - सीहो अतिजातिताय विगतभयो, मि. प. 258. अतिजिघच्छपीळित त्रि., [अतिजिघत्सापीळित], अत्यधिक भूखा - आहारहेतूति अतिजिघच्छपिलितोपि यो पापं लामककम्मं न करोति, जा. अट्ठ. 7.148. अतिजोतिता स्त्री., अतिजोति का भाव., अत्यधिक गरमी -
अग्गि अतिजोतिताय डहति, मि. प. 258. अतिण्ण त्रि., तिण्ण का निषे. [अतीर्ण], वह, जिसने अभी तक भवसागर पार नहीं किया है - अतिण्णंयेव याचस्स अपारं तात नाविक, जा. अट्ठ. 3.202; - पुब्ब त्रि., ब. स., वह, जिसे पहले पार नहीं किया गया है - ये दुत्तरं ओघमिमं तरन्ति, अतिण्णपुब्बं अपुनभवाया ति, सु. नि. 275;
For Private and Personal Use Only