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अट्टानियकथा
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अट्ठि
अहेतुकरूप में - कुद्धो हि अढवत्थुकं सोळसवत्थुक कत्वा के अनुकरण पर विरचित - अट्ठापदकता केसा, नेत्ता अट्ठानेन अकारणेन अत्तनो राजभावस्स अननुरूपं .... अञ्जनमक्खिता, म. नि. 2.262; अट्ठापदकताति रसोदकेन बलवदुक्खानि उदीरये, जा. अट्ठ. 3.391; - नारह त्रि०, मक्खित्वा नलाटपरियन्ते आवत्तनपरिवत्ते कत्वा स्थित न रहने योग्य, न टिकने योग्य, टिकने या जारी न अद्वपदकरचनाय रचिता, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.214. रखने योग्य - तेसं तं कम्म अधम्मिकं कुप्पं अट्ठानारह । अट्ठारस संख्यावाचक विशे. [अष्टदश], 1. अठारह - महाव. 139; ठानारहेन वा अट्ठानारहेन वा. तदे. 408 - अट्ठारसअक्खोभणिसङ्काय सेनाय सद्धिं निक्खमि, जा. अट्ठ. कुसलता स्त्री॰, भाव., अनुपयुक्तताओं, अपराधों अथवा 6.224; अट्ठारससु कोटीस एकोपि पुरिसो वा इत्थी वा भिक्खं असंभाव्यताओं को ठीक से समझने की क्षमता, दी. नि. तथा गहेत्वा अनिक्खन्तो नाम नत्थि, ध. प. अट्ट, 1.274; 2. इसकी अट्ठ. में इस शब्द के निम्नलिखित दो प्रकार के अठारहवां - अट्ठारसकप्पसते, यं दानमददिं तदा, अप. व्याख्यान उपलब्ध 1. कौन सा धर्म किस आपत्ति का कारण 1.144; - क्खत्तुं निपा., अठारह बार - अट्ठारसञ्च खत्तुं नहीं हो सकता, यह विनिश्चित करने की क्षमता - ... सह सो, देवराजा भविस्सति, अप. 1.91; तुल, अट्ठक्खत्तुं - म कम्मवाचाय आपत्तीहि वुढानपरिच्छेदजानना पा, दी. नि. त्रि., अठारस से व्यु., [अष्टादशम], अठारहवां- मलवग्गो अट्ठ. 3.146 तथा ध. स. 1337; 2. किसी एक धर्म की किसी अट्ठारसमो निहितो, ध. प. (पृ.) 45; - मनोपविचार त्रि., अन्य धर्म के उदय में अकारणता - ... एवं वह, जो अठारह प्रकार से वस्तुओं या धर्मों का अनुचिन्तन ठानपरिच्छिन्दनसमत्था पञ्जा ..... दी. नि. अट्ठ, 3.147; करता है - ... पुरिसो छ फस्सायतनो अट्ठारसमनोपविचारो तथा म. नि. 3.127; ठानकुसलता च अट्ठानकुसलता च. चतुराधिट्टानो ..., म. नि. 3.288; - रतनुब्बेध त्रि., दी. नि. 3.169; तुल. ठानाट्ठानकुसलता, ध. स. अट्ठ. 416; अट्ठारह हाथों की ऊंचाई वाला - ... अट्ठारसरतनुब्बेधं - गाथा स्त्री., [-गाथा]. सु. नि. के खग्गविसाणसुत्त की व्यामप्पभापरिक्खेपं ..., म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).314; - 54वीं गाथा जिसमें सांसारिक आसक्तियों में लिप्त व्यक्ति के वस्स त्रि., ब. स., अठारह वर्षों की आयुवाला, अष्टादशवर्षीय लिए सामयिक विमुक्ति का स्पर्शमात्र तक असम्भव कहा - सोहं अट्ठारसवस्सो पब्बजिं अनगारियं अप. 1.56; - गया है - अट्ठान तं सङ्गणिकारतस्स, यं फस्सये सामयिक विध त्रि.. 1. अठारह प्रकारों वाला - अट्ठारसविधं खज्जक विमुत्तिं, सु. नि. 54; - जातक नपुं., चार सौ पच्चीसवें जा. अट्ठ. 1.185; 2. अठारह प्रकार के विभाजनों अथवा जातक का शीर्षक, जा. अट्ठ. 3.418-422; - परिकप्प पु., प्रत्ययों से युक्त - इमिना इमस्स अट्ठारसविधेन असम्भव स्थितियों या धर्मों की परिकल्पना, अनुपयुक्त कायानुपस्सनासतिपट्टानभावकस्स भिक्खुनो इरियापथो कथितो परिकल्पना - इति महासत्तो इमिना अट्ठानपरिकप्पेन एकादस होति, अ. नि. अट्ठ. 1.370; - हत्थुब्बेध त्रि., अठारह हाथों गाथा अभासि, जा. अट्ठ. 3.422; - पाळि स्त्री., अ. नि. के की ऊंचाई वाला - अट्ठारसहत्थुब्बेधेन यन्तयुत्तद्वारेन एक सुत्त का नाम, अ. नि. 1(1).38-39; - मनवकासता समन्नागतं. जा. अट्ठ. 6.258. स्त्री॰, भाव., अहेतुकता असम्भाव्यता - किं कारणं? अट्ठाह नपुं.. [अष्टाह], आठ दिनों का समुच्चय - सालिं अट्ठानमनवकासताय, मि. प. 199; - वग्ग पु.. [-वर्ग]. अ. आहासि सकिदेव अट्टाहाय, दी. नि. 3.66; - पटिच्छन्न नि. के अट्ठानपाळि-नामक खण्ड का ही दूसरा नाम, अ. नि. त्रि., आठ दिनों तक छिपाया हुआ - एका आपत्ति 1(1).38-39; - सो निपा., अहेतुकता के कारण, अनुपयुक्तता अट्ठाहप्पटिच्छन्ना, चूळव. 127. के कारण, अप्रतिरूपता के कारण - अट्ठानसो अप्पतिरूपमत्तनो, अट्ठि' स्त्री., [अष्टि], समवृत्त छन्द का एक भेद - न-ज-भपरस्स दुक्खानि भुसं उदीरये, जा. अट्ठ. 3.390.
ज-रा यदा भवति वाणिनी गयत्ता, वुत्तो. 96; - टि. इसमें अट्ठानियकथा स्त्री., कभी पूरी न होने वाली बात, निरर्थक सोलह वर्ण होते हैं। इसके उसभगतिविलसिता, ललना, प्रलाप, बकवास - पियपक्खे पठमवाचा अट्ठानियकथा नाम, चन्दलेखा, चन्दनिका (वाणिनी) तथा चित्तभागा (नाराच, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.80.
पश्चचामर) आदि पांच भेद हैं. अट्ठापद नपुं.. [अष्टपद], द्यूतक्रीड़ा या चौसर आदि की अट्ठिः नपुं.. [अस्थि], 1. हड्डी - पण्डके अद्वि धात्वत्थी, अभि. खेलपट्टिका, कृमिविशेष, मकड़ी, अट्ठपद एवं अट्ठपाद के प. 278; सीहस्स ... अट्टि गले लग्गि, जा. अट्ठ. 3.22; अन्त. ऊपर द्रष्ट; - कत त्रि., [अष्टपदीकृत], खेलपट्टिका कामं तचो च न्हारु च अट्टि च अवसिस्सतु, म. नि. 2.1563;
" स्त्रीला चल पाया
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