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अजाति
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अझाविमोक्ख ..., ध. स. 145; - विन्द्रिय नपुं.. [बौ. सं. आज्ञातावीन्द्रिय], अञआधिकारवचनारम्भ पु., किसी नए विषय की व्याख्या
सम्यक् ज्ञान प्राप्त अर्हत् की इन्द्रिय, अभिधर्म-परिगणित का आरम्भ, नई बात को कहने का प्रारम्भ - म्भे सप्त. वि., बाईस प्रकार की इन्द्रियों के बीच बीसवीं इन्द्रिय - यं प्र. ए. व. - अथ इति निपातो अाधिकारवचनारम्भे, सु. नि. वि., ए.व.- तीणिन्द्रियानि-अनजातञ्जस्सामीतिन्द्रियं, अट्ठ. 1.110. अअिन्द्रियं, अञाताविन्द्रियं दी. नि. 3.175; स. नि. अापटिवेध पु., [बौ. सं. आज्ञाप्रतिवेध]. पूर्ण-ज्ञान अथवा 3(2).280; इतिवु. 39; पु. प. 104; ध. स. 553; नेत्ति. 45. अर्हत्व के ज्ञान का प्रतिलाभ, अर्हत्व फल की प्राप्ति - धो अजाति पु., जाति का निषे. [अज्ञाति], वह, जो अपना प्र. वि., ए. व. - इमस्मिं धम्मविनये अनुपुब्बसिक्खा कुटुम्बीजन नहीं है, अपना भाई-बन्धु नहीं है, अकुटुम्ब, अनुपुब्बकिरिया अनुपुब्बपटिपदा न आयतकेनेव अबन्धु - तीहि तृ. वि., ब. व. - भिक्खुना नाम आतीहिपि अञआपटिवेधो, चूळव. 395; इति खो, भिक्खवे, यावता अज्ञातीहिपि दिन्नके चत्तारो पच्चये पच्चवेक्खित्वाव परिभोगो सम्मासमापत्ति तावता अञआपटिवेधो, अ. नि. 3(1).233. कातब्बो, जा. अट्ठ. 1.370; - का स्त्री., आतिका का निषे. अञापदेस पु., कर्म. स. अञ + अपदेस [अन्यापदेश], [अज्ञातिका], वह, जिसके पास कुटुम्बजन के रूप में कोई दूसरा बहाना, दूसरी पद्धति, अन्य उपदेश-प्रकार - सेन त. नारी न हो, द्रष्ट. अातक के अन्त..
वि., ए. व. - धनियं अतुट्ठब्बेन तुस्समानं अञआपदेसेनेव अातु पु.. [आज्ञात], वह, जिसने यथार्थ को अथवा धर्मों परिभासति, ओवदति, अनुसासति, सु. नि. अट्ठ. 1.27. की धर्मता को ठीक से जान लिया है, गम्भीर रूप से ज्ञान अज्ञापेक्ख त्रि., ब. स. अआ + अपेक्ख, [आज्ञापेक्ष], पा लेने वाला - ता प्र. वि., ए. व. - अजाता विहरिस्सामि, सुस्पष्ट ज्ञान पाने की इच्छा रखने वाला, ज्ञानार्थी - क्खो दी. नि. 2.211; - तारो ब. व. - के च धम्मस्स अञआतारो, पु., प्र. वि., ए. व. - यं किञ्चि मं सुभद्दो पुच्छिस्सति, सब्ब म. नि. 2.394; देसस्सु भगवा धम्म अातारो भविस्सन्तीति, तं अञआपेक्खोव पुच्छिस्सति, नो विहेसापेक्खो, दी. नि. दी. नि. 2.31; अ. नि. 1(1).158; - काम त्रि., [बौ. सं. 2.113; - क्खा ब. व. - ये केचि अञआपेक्खा चतुसच्चं आज्ञातुकाम], अच्छी तरह से या पूर्ण रूप से जानने की । धम्म सुणन्ति, ते जातिया परिमुच्चन्ति, मि. प. 304. इच्छा रखने वाला - मो पु.. प्र. वि., ए. व. - अआतुकामो अाफल त्रि., ब. स. [आज्ञाफल]. पूर्ण-ज्ञान की प्राप्ति परं पहं पुच्छति, अ. नि. 2(1),178; अआतुकामो परिपुच्छिता कराने वाला या वाली, सम्यक ज्ञान की प्राप्ति का फल अहु, दी. नि. 3.118.
दिलाने वाला या वाली - लो पु०, प्र. वि., ए. व. - अञातुञ्छ पु., अजाति + उञ्छ [अज्ञात्युञ्छ]. अपरिचित समाधि अञआफलो वुत्तो भगवता, अ.नि. 3(1).235. अथवा अकुटुम्बी-जनों से प्राप्त भिक्षा, पिण्डपात अथवा अाराधना स्त्री., अञा + आराधना [आज्ञाराधना], आहार - उछेन तृ. वि., ए. व. - अातुञ्छेन यापेन्तं, अर्हत्वफल का साक्षात्कार, सम्यक-ज्ञान अथवा अर्हत्व-फलकामेसु अनपेक्खिनं, स. नि. 1(2).255.
चित्त की प्राप्ति - नं द्वि. वि., ए. व. - नाहं, भिक्खवे, अञादि त्रि., [अन्यादृश], दूसरों के समान, भिन्न प्रकृति आदिकेनेव अाराधनं वदामि, अपि च, भिक्खवे अनुपुबसिक्खा वाला - दि पु., प्र. वि., ए. व. - अओ विय दिस्सतीति अनुपुब्बकिरिया अनुपुब्बपटिपदा अआराधना होति. म. नि. अादि, अादिक्खो, अआदिसो, मो. व्या. 5.44; तुल. 2.155; अञआराधनं अरहत्ते पतिट्टानं ..., म. नि. अट्ठ. क. व्या. 644.
(उप.प.) 3.137. अञआदिस त्रि., [अन्यादृश], अन्य सदृश, दूसरे जैसा, भिन्न अञआविमुत्त त्रि., [आज्ञाविमुक्त], सम्यक-ज्ञान अथवा अर्हत्व प्रकृति वाला, कुछ अलग ढङ्ग का - सो पु., प्र. वि., ए. व. फल के क्षण में प्राप्य ज्ञान द्वारा विमुक्ति को प्राप्त व्यक्ति - - तादिसोव सो भवं गोतमो, नो अादिसो, म. नि. 2.343; स्स पु, ष. वि., ए. व. - ततो अञआविमुत्तस्स, आणं वे दी. नि. 1.93; अयं सीहो वण्णादीहि अम्हेहि समानो, सद्दो होति तादिनो, इतिवु. 39; 75; तुल. सम्मद आविमुत्त. पनस्स अआदिसो, जा. अट्ठ. 2.89; - ता स्त्री., अन्यादृशता, अजाविमोक्ख पु.. [आज्ञाविमोक्ष], अर्हत्व की स्थिति में भिन्नता, परिवर्तित स्वरूपता - तं द्वि. वि., ए. व. - आस्रवक्षयज्ञान द्वारा प्राप्त विमोक्ष - क्खं द्वि. वि., ए. व. - तस्स पुरिमभावतो अादिसतं दस्सेतुं वुत्तं, पे. व. अट्ठ. अञआविमोक्खं पहि, अविज्जाय पभेदनं. स. नि. 210.
1111; 1113.
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