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अट्टीयति / अट्टियति
भय, भूत, मकस., वेदन, हिमसिसिर के अन्त. द्रष्ट., पाठा. अद्दित, अद्धित, अट्ठित.
अट्टीयति/ अट्टियति अट्ट का ना० धा०, वर्त., प्र. पु. ए. व., (सामान्यतया हरायति, जिगुच्छति के पूर्व में प्रयुक्त) पीड़ित होता है, दुःखित होता है, व्याकुल होता है न च तेन पथवी अट्टीयति वा हरायति वा म. नि. 2.93 - यामि उ. पु. ए. व. इद्विपाटिहारिये आदीनवं सम्पस्समानो इद्धिपाटिहारियेन अट्टीयामि हरायामि जिगुच्छामि दी. नि. 1.197; अट्टीयामि हरायामि, नग्गा निक्खमितुं बहि, पे. व. 59 यथ अनु., म. पु. ब. व. इति किर तुम्हे भिक्खवे, दिब्बेन आयुना अट्टीयथ हरायथ जिगुच्छथ, अ.नि. 1 (1) 137 येय्याथ विधि. म. पु. ब. क. ननु तुम्हे भिक्खवे एवं पुद्रा अट्टीयेय्याथ हरायेय्याथ तदेव, तुम्हेहि कायदुच्चरितेन अद्वीयितव्यं हरायितव्यं तदे. मानो वर्त कृ. पु. प्र. वि. ए. व. छन्नो ब्रह्मदण्डेन अट्टीयमानो चूळव. 461; भिक्खुभावं अट्टीयमानो ... गिहिभावं पत्थयमानो, पारा. 26, पाठा. अट्ठीयति, अड्डीयति, तुल. अद्दीयति. अट्टीयन नपुं., अट्टीयति से व्यु., क्रि० ना०, त्रास, व्याकुलाहट, बेचैनी अहिकुणपादीहि विय अत्तनो कार्यन अहीयनं ध.
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प. अट्ठ. 1.348.
अट्ठ' त्रि.. [अष्टन्, अष्टौ] आठ ये पुग्गला असतं पसल्या सु. नि. 229: अट्ठ कहापणे दापेसि, जा. अड. 4. 125 अद्ध नाम किं? सङ्घस्स अट्ठसलाकभतं दापेति वि. व. अट्ठ. 60; स. उ. प. में अड्ड, सत्त के अन्त. द्रष्ट.; उसम त्रि, आठ उसभ (1 उसभ = 140 हाथ) लम्बाई वाला भा स्त्री. प्र. वि., ए. व. सा दीघतो अट्ठउसभा अहोसि, जा० अट्ठ. 4. 19 - हंस त्रि०, ब० स० [ अष्टास्र ], आठ पहलों वाला, आठ कोनों वाला, अष्टभुजसो पु. प्र. कि. ए. व. मणि वेळुरियो सुभो जातिमा अहंसो सुपरिकम्मकर्ताो दी. नि. 167; म. नि. 2.218 साब. व.
अहंसा सुकता थम्भा, जा. अट्ठ. 6.152; रूपं चतुन्नं महाभूतानं उपादाय ... चतुरंसं छळस अहंस, सोळसंस, ध. स. 177 क पु. / नपुं. [ अष्टक]. आठ का वर्ग, आठ का समूह का प्र. वि., ब. व. अट्ठ अटुका, नव नवका, दस दसका, म. नि. 3.50 कवग्गिक क्र. सु. नि. के अट्ठकवग्ग के अन्तर्गत् आने वाला कानि नपुं. प्र. वि., ब. व. सब्वानेव अनुकवग्गिकानि सरेन अभासि महाद 270; उदा. 136 भत्त नपुं, आठ के समूह में रहने वालों का भाजन - तं द्वि. वि., ए. व. - सङ्घस्स अट्ठकभत्तं निबद्ध
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अट्ठकथा
दापेसि, ध. प. अ. 2.58; स. उ. प. में द्रष्ट, अड्ड, अन्तर, अहेतुक, इन्द्रिय, कुसदायक, गुह, दुत, परम, सब्ब., सुद्ध; - कर पु., [ अष्टक], क. वेदमन्त्रद्रष्टा, दस ऋषियों में एक ऋषि का नाम अट्ठको वामको वामदेवो चाङ्गीरसो भगु... वेस्सामितो ति मन्तानं कत्तारो इसयो इमे अभि. प. 109 अह्नको वामको ... कस्सपो भगु दी. नि. 1. 91; म. नि. 2.388; ख. पु०, एक प्राचीन राजा का नाम कालिङ्गो, अट्ठको, भीमरथोति तयो राजानो, जा. अट्ठ 5.130; वेस्सामित्तो अट्टको सिवीति छ राजानो, जा. 31.7.141.
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अ' पु०, अत्थ की ही दूसरी वर्तनी, प्रायः स. प. के अन्त प्रयुक्त [अर्थ], अर्थ, तात्पर्य प्रयोजन अविज्जाय सङ्घारानं पच्चयट्ठो, म. नि. अट्ठ (मू०प.) 1 (1).54, द्रष्ट. अत्थ द्वेन तु. वि., ए. व. तात्पर्य के रूप में, अर्थ के रूप में अयं असभावो नाम भिज्जनकक्षेन अथावरट्रेन कुलालभाजनसदिसो ध. प. अड्ड. 1.180 धुतगुणं विसुद्धिकामानं पतिद्वानहेन मि. प. 320 स. उ. प. में अत्त, अप्प, इन्द, एक. कह, नान, परम, पीळन, मह, सङ्घत, सच्छिक के अन्त द्रष्ट तुल. अट्ठकथा, अट्टिक, अद्वि..
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अट्ठकथा स्त्री॰ [अर्थकथा], शा. अ. अर्थवाद, अर्थकथन अर्थात् व्याख्या, ला. अ. पालि-त्रिपिटक पर बुद्धदत्त, बुद्धघोष और धम्मपाल के द्वारा लिखी गई व्याख्याएं - थं द्वि. वि., ए. व. - अट्टकथिका अट्ठकथं ... साकच्छन्ति, खु. पा. अड. 122; उसभाति आदीनि तीणि पदानि अट्ठकथं आरोपेत्वा ...... जा. अ. 1.330; - यं सप्त. वि., ए. व. तं व्यञ्जनं अट्ठकथायं नत्थि, जा० अट्ठ. 1.466; स. उ. प. में अन्ध (क), आगम, कुरुन्दी., खन्धक, पञ्चप्पकरण., परित महा., महापच्चरी सङ्क्षेप, सीहल., साइ, के अन्त द्रष्ट, तुल, अत्थवण्णना टि. पालि-त्रिपिटक पर लिखी गयी व्याख्याओं के लिए सामान्य नाम परम्परानुसार इनका संगायन प्रथम सङ्गीति में तथा अनुगायन द्वितीय एवं तृतीय सङ्गीतियों में हुआ; महेन्द्र द्वारा श्रीलङ्का ले जायी गयी तथा प्राचीन सिहंली भाषा में रूपान्तरण किया गया; बुद्धदत्त, बुद्धघोष तथा धम्मपाल द्वारा श्रीलङ्का की महाविहारीयपरम्परा का अनुसरण करते हुए तथा महाअट्ठकथा एवं कुरुन्दी, पच्चरी, अन्धकट्ठकथा, पण्णवार एवं सीहलगकथा जैसी सिंहली भाषा की अट्ठकथाओं के आधार पर पालि में रूपान्तरण किया गया थाचरिय पु. [ अर्थकथाचार्य],
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