________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अजानितब्ब
62
अजिनचम्म अजानितब्ब त्रि., [अज्ञातव्य], न जानने योग्य - ब नपुं... समय विद्यमान एक ब्राह्मण का नाम - अजितो नाम
प्र. वि., ए. व. - अथो अविज्ञातमजानितब्ब, महानि. 265. नामेन, अहोसिं ब्राह्मणो तदा, अप. 1.260; 8. एक प्रत्येकबुद्ध अजामिग पु.. [अजामृग]. अज, बकरा, छाग - वामेन सूकरो का नाम - अजितो नाम सम्बुद्धो, हिमवन्ते वसी तदा होति, दक्खिणेन अजामिगो, विभ. अट्ठ. 466.
थेरगा. अट्ठ. 1.71; - पह पु., अजित द्वारा पूछा गया अजिका स्त्री., [अजिका]. बकरी - कं द्वि. वि., ए. व. - प्रश्न, स. नि 1(2).42; द्रष्ट. आगे; - माणवपुच्छा स्त्री., अल्पवयस्का अजा, बकरी छागी-तं अजिकं कत्वा अत्तना अजितमाणव के द्वारा किया गया प्रश्न, सु. नि. के एक सुत्त अजो हुत्वा, जा. अट्ठ. 3.244; अजिकञ्च अजञ्च हन्त्वा का नाम, सु. नि. 231-32; चूळनि. 5-6; सु. नि. अट्ठ. 2. येनकामं पलेति, जा. अट्ठ. 5.232; - का प्र. वि., ए. व. - 276-277; - सुत्त नपुं., अजितमाणवपुच्छा के लिये सु. नि. अजिका चरमाना चोरा हरन्ति, जा. अट्ठ. 1.235; - क्खायित अट्ठ. में प्रयुक्त शीर्षक सु. नि. अट्ठ. 2.276-277. त्रि., बकरियों के द्वारा खाया हुआ, कुतरा हुआ, नष्ट किया अजिन' नपुं.. [अजिन], मृग का चमड़ा, मृगचर्म, कुरंगमृग हुआ - अपरानिपि पञ्च पंसुकूलानि - गोखायिक का चर्म, सामान्यतः अजिन मृगचर्म का प्रयोग तापसों के अजक्खायिक परि. 253, पाठा. अजिकाक्खायित; - खीर द्वारा किया जाता है - चम्मं तु अजिनं प्यथ, अभि. प. 442; नपुं., बकरी का दूध - खीरं नाम गोखीरं वा अजिकाखीरं अजिनं दन्तभण्डञ्च, जा. अट्ठ. 5.377; अजिनन्ति वा महिंसखीरं वा, पाचि. 122; - गोपक पु., बकरी पालने अजिनमिगचम्म, तदे... वाला - का प्र.वि., ए.व.- अजिकगोपका चोरे गहिस्सामाति अजिन पु., एक स्थविर का नाम, थेरगा. की 129-30 एकमन्तं निलीना अट्ठसु, जा. अट्ट, 1.235; पाठा. गाथाओं का प्रणेता. अजिकागोपका; - सप्पि नपुं., बकरी के दूध से बना हुआ अजिनं जिनाति के वर्त. कृ. का निषे. जिनाति के अन्त. घी - सप्पि नाम गोसप्पि वा अजिकासप्पि वा महिंससप्पि वा, द्रष्ट.. पारा. 376.
अजिनक्खिप पु./नपुं.. केवल द्वि. वि., ए. व. में प्राप्त, अजिण्ण त्रि., जिण्ण का निषे. [अजीर्ण], नहीं पचा हुआ तापसों द्वारा परिधान के रूप में प्रयुक्त कृष्णमृग का चर्म, भोजन, समास के पू. प. के रूप में ही प्रयुक्त; - ण्णसङ्का जो अखण्डित, परन्तु बीच में फटा रहता है - अजिनम्पि स्त्री., अपच हो जाने की आशंका - तुम्हे गच्छथ, मह रेति, अजिनक्खिपम्पि धारेति, दी. नि. 1.150; अजिनन्ति अजिण्णासङ्का अत्थी ति, जा. अट्ठ. 2.301.
अजिनमिगचम्म, अजिनक्खिपन्ति तदेव मज्झे फालितक अजित पु., [अजित], 1. बुद्ध के समकालीन छ: धर्माचार्यों दी. नि. अट्ठ. 1.265; - निवत्थ त्रि., बीच से फटे हुए में से एक का नाम, जिसका उपनाम या कुलनाम केसकम्बल अजिनमृगचर्म को धारण करने वाला - त्थो पु., प्र. वि., या केसकम्बली था - अयं देव, अजितो केसकम्बलो सङ्घी ए. व.- महन्तेन जटण्डुवेन अजिनक्खिपनिवत्थो जिण्णो चेव गणी च गणाचरियो च, दी. नि. 1.43; अजितोति तस्स .... येन ते भिक्खू तेनुपसङ्कमि, स. नि. 1(1).139; नाम, केसकम्बलं धारेतीति केसकम्बलो, इति नामद्वयं अजिनक्खिपनिवत्थोति सखुरं अजिनचम्म एकं निवत्थो एक संसन्दित्वा अजितो केसकम्बलोति वुच्चति, दी. नि. अट्ठ. पारुतो, स. नि. अट्ट, 1.160; - टि. यह बौद्ध भिक्षुओं के 1.121; 2. बावरी के बहिन के पुत्र का नाम - अजितो पठमं लिये अनुज्ञात नहीं था. अन्य सम्प्रदाय के तापसों के द्वारा पहं, तत्थ पुच्छि तथागतं, सु. नि. 1037; 3. द्वितीय इसे धारण किया जाता था, अतः इसे तित्थियधज भी कहा बौद्धसङ्गीतिकालीन एक भिक्षु का नाम - अजितो नाम जाता था, महाव. 398. भिक्खु दसवस्सो सङ्घस्स पातिमोक्खुद्देसको होति, चूळव. अजिनचम्म नपुं.. [अजिनचर्म], कृष्णमृग का चर्म - म्मं द्वि. 475; म. वं. 4.51; 4. लिच्छवियों के एक सेनापति का नाम वि., ए. व. - अत्तनो निसीदनं अजिनचम्म महन्तं कत्वा - अजितोपि नाम लिच्छवीनं सेनापति, दी. नि. 3.10; 5. पसारेत्वा, जा. अट्ठ. 5.307; - म्मेन तृ. वि., ए. व. - कि एक परिव्राजक या तापस का नाम - अजितो परिब्बाजको, सखुरेन अजिनचम्मेन, ध. प. अट्ठ. 2.372; - धर त्रि., अ. नि. 3(2).196; 6. बुद्ध-सोभित के समय के एक ब्राह्मण- मृगचर्म को धारण करनेवाला - चम्मवासीति बोधिसत्त्व का नाम - तदा बोधिसत्तो अजितो नाम अजिनचम्मधरो, जा. अट्ठ. 7.293; - परिक्खट त्रि., ब्राह्मणो हुत्वा .... जा. अट्ट.1.45; 7. सिखि-बुद्ध के अजिनचर्म से समलंकृत, अजिनचर्म से विभूषित,
For Private and Personal Use Only