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अच
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अञतो
अगोचरा त्वम्पि अञगोचरो, जा. अट्ठ. 2.300; - जन देव., वेदना., सिप्प के अन्त. द्रष्ट.; - त्थेर पु., विभिन्न पु.. [अन्यजन]. पृथक्जन, साधारण लोग, दूसरे लोग, स्थविर - छ कनिट्ठभातरो अञ्जतरत्थेरा अहेसुजा. अट्ठ, अज्ञजन, अशिष्टजन, अभद्र लोग - नेन तृ. वि., ए. व. - 2.8; - त्थेरित्थिवत्थु नपुं.. ध. प. अट्ठ. की एक कथा का मिस्सो अञजनेन वेदगू उदा. 176; (अत्तनो हिताहितं न शीर्षक, ध. प. अट्ठ. 1.359-60; -- त्थेरुपासकवत्थु नपुं., जानातीति अजओ ... तेन अऊन जनेन मिस्सो उपरिवत्, ध. प. अट्ठ. 2.151-53, - कुटुम्बिकावत्थु सहचरणमत्तेन मिस्सो) उदा. अट्ठ. 345; - जाति स्त्री., नपुं.. उपरिवत्, ध. प. अट्ठ. 2.161-62; - कुलदारिकवत्थु कर्म. स. [अन्यजाति], दूसरी योनि, दूसरा जन्म - जातो नपुं.. उपरिवत्, ध. प. अट्ठ. 2.150-151; - कुलपुत्तवत्थु वा अञजातिया, अप. 2.21; - जातिक त्रि., [अन्यजातिक], नपुं, उपरिवत्, ध. प. अट्ठ. 2.202-3; - पुरिसवत्थु नपुं.. दूसरे प्रकार की योनि में जन्म लेने वाला, दूसरे प्रकार की उपरिवत्, ध. प. अट्ठ. 1.251-60; - ब्राह्मणवत्थु नपुं.. मानसिक प्रकृति अथवा स्वभाव वाला - का पु., प्र. वि., ब. उपरिवत्, ध. प. अट्ठ. 2.166-67; 2.196-97; - मिक्खुवत्थु व. - ये ते किलेसा अञजातिका अञविहितका, महानि. नपुं.. उपरिवत्, ध. प. अट्ठ. 1.159-160, 1.164-169; - 193; अञजातिकाति अञसभावा, महानि. अट्ठ.283; - मनुस्सवत्थु नपुं.. उपरिवत्, र. वा. 1.31-32. जोज क्रि. वि., [अन्यान्यं], आपस में, परस्पर में, एक अञ त्रि., [अज्ञ], अज्ञ, मूर्ख - ओ पु.. प्र. वि., ए. व. दूसरे को- अञोज़ मुसला हन्वा सम्पत्ता यमसाधनं जा. - अत्तनो हिताहितं न जानातीति अओ, अविद्वा बालोति अट्ठ. 5.259; - तत्था निपा., अञ + तत्था, दूसरे प्रकार अत्थो, उदा. अट्ठ. 345, द्रष्ट, अञ-जन. से, दूसरी तरह से - एवं यतत्था अञतत्था.... सद्द. अञतित्थिय 1. त्रि., [बौ. सं. अन्यतीर्थिक], बौद्धेतर 3.805; तुल. क. व्या. 400; - तम त्रि., ष./सप्त. वि. धार्मिक सम्प्रदायों से सम्बद्ध, विमुक्ति के बौद्धेतर मार्ग का वाले नामपदों के साथ प्रयुक्त, [अन्यतम], अनेकों के बीच अनुयायी - या पु., प्र. वि., ब. व. - अतिथिया में कोई एक - अञतर अञतमसद्दा अनियमत्था, सद्द. समणब्राह्मणपरिब्बाजका, स. नि. 2(2).303; अतित्थिया 1.266; तुल. रू. सि. 207; क. व्या. 180; - तर त्रि., सर्व परिबाजका अत्तनि समनुपरसेप्युं दी. नि. 3.85, अञतित्थिया, की तरह शब्दरूप, ष. वि. या सप्त. वि. वाले नाम के साथ भिक्खवे, परिब्बाजका अन्धा अचक्खुका; अत्थं न जानन्ति, प्रयुक्त, [अन्यतर], 1. दो में से कोई एक व्यक्ति या वस्तु उदा. 146; 2. सत्त्व., बौद्धेतर धर्माचार्य - महि, भन्ते, - रं नपुं., द्वि. वि., ए. व. - द्विन्नमञ्जतरं ञत्वा, मुत्तो अतित्थिया सावकं लभित्वा केवलकप्पं वेसालिं पटाक गच्छेय्य पब्बतं. जा. अट्ठ. 4.226; - स्स पु., ष. वि., ए. व. परिहरेय्यु, अ. नि. 3(1).30; - यानं पु., ष. वि., ब. क. - - जयो, महाराज, पराजयो च, आयूहतं अञ्जतरस्स होति. समणो हि, भन्ते, गोतमो मायावी आवट्टनिं मायं जानाति जा. अट्ठ. 7.175; 2. बहुत से लोगों के बीच में कोई एक याय अअतिथियानं सावके आवद्देतीति, म. नि. 2.43; सुनिश्चित व्यक्ति या वस्तु, क. प. वि. में अन्त होने वाले तुल. तित्थिय, नानातित्थिया, पुथुतित्थिया; - पुब्ब त्रि., ब. पदों के साथ - अविहेठयं अञतरम्पि तेसं. सु. नि. 35; स., वह, जो बौद्धधर्म में दीक्षित होने से पूर्व अन्य धर्मों का अनिकामयं अञतरम्प तेसं. सु. नि. 212; - रो पु.. प्र. अनुयायी था और जिसके लिए उपसम्पदा से पूर्व परिवास वि., ए. व. - सोहं सतं अञतरोस्मि हंस, जा. अट्ठ. 3.435; का नियम प्रज्ञप्त था - ब्बो पु., प्र. वि., ए. व. - तेन खो ख. सत्त्व के विशे के रूप में - स्मिं सप्त. वि., ए. व. पन समयेन यो सो अतिथियपुब्बो ... तंयेव तित्थायतनं - अञ्जतरस्मिं रुक्खमूले ससीसं पारुतं निसिन्न, सु. नि. सङ्कमि, महाव. 87; यो खो, सभिय, अञतिथियपुब्बो इमस्मि (पृ.) 149; अथ खो अञतरो हुहुङ्कजातिको ब्राह्मणो येन । धम्मविनये आकङ्क्षति पब्बज्जं. सु. नि. (पृ.) 164; - पुब्बकथा भगवा तेनुपसङ्कमि, महाव. 3; इमस्साहं अञ्जतरं सामअङ्गन्ति स्त्री., महाव. की एक कथा का शीर्षक, महाव. 87-90; - वदामि, इतिवु. 74; 3. अन्य, सर्वथा भिन्न, कोई दूसरा - सरण नपुं.. बौद्धेतर धार्मिक-सम्प्रदायों का आश्रयग्रहण - इतरोतरा एको अओ, अभि. प. 717; अथ खो अञ्जतरो णं द्वि. वि., ए. व. - अतिथियसरणं भिन्दित्वा बुद्ध भिक्खु येन तरो भिक्खु तेनुपसङ्कमि स. नि. 2(2).191; सरणं अगमंसु. जा. अट्ठ. 1.104. अथ खो अञतरो सत्तो ... सझं ब्रह्मविमानं उपपज्जति, अञतो प. वि., प्रतिरू. निपा. [अन्यतः], क. किसी अन्य दी. नि. 1.15; स. उ. प. में आमिस., काय., आत., थेरगा., कारण से, किसी भी दूसरे तरीके से - न ब्राह्मणो अञतो
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