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अज्झत्त
अज्जुनपुष्फिय
66 अज्जुनपुफिय पु., एक स्थविर का नाम - आयस्मा
अज्जुनपुफियो थेरो इमा गाथायो अभासित्थ, अप. 2.95. अज्जेकदिवसं निपा., केवल आज के ही दिन - त्वं पन अज्जेकदिवसं यत्थ कत्थचि वसाहीति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).170. अज्जेकरत्तिं निपा., केवल आज रात भर के लिए - पाटिभोग मे उपासका गहेत्वा अज्जेकरत्तिं जीवितं देथाति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).243. अज्जेतरहि निपा., आजकल, इस समय - अज्जेतरहिपि तं
लोके क्त्ततीति, मि. प. 152. अज्जेति अज्ज (चुरादि) वर्त. प्र. पु.. ए. व.. 1. साफ करता है, धा. पा. 464; सद्द. 1.2: 2. अर्जित करता है, धा. मं. 125. अज्झक्ख पु.. [अध्यक्ष], प्रमुख, प्रधान, मुखिया - अज्झक्खो
अधिकतो चेव, अभि. प. 343. अज्झत्तं निपा., क्रि. वि. [अध्यात्म], आन्तरिक रूप में, भीतरी तौर पर, प्रायः इसका प्रयोग सत्त्व के विशे के रूप में प्राप्त, विसुद्धि. में इसका व्याख्यान अव्ययी. स. से निष्पन्न अधित्थि जैसे स. प. के समान, अट्ठ में प्रायः विशे. के रूप में व्याख्यात; 1. सत्त्व के विशे. के रूप में - अलमिदं अज्झत्तं नहानं भविस्सति, यदिदं भगवति पसादोति. स. नि. 3(2).453; यं अज्झत्तं पच्चत्तं कक्खळं खरिंगतं उपादिन्नं .... म. नि. 1.245; 2. अव्ययी. स. के अधि जैसे अव्ययपदों के समान क्रि. वि. के रूप में प्रयुक्त - चोदकेन, भिक्खवे, भिक्खुना ... पञ्च धम्मे अज्झत्तं उपट्टापेत्वा परो चोदेतब्बो, अ. नि. 3(2).65, अज्झत्तञ्च बहिद्धा च, काये छन्दं विराजये. सु. नि. 205. अज्झत्त' त्रि., अज्झत्तं के स्थान पर तथा उसी के अर्थ में कहीं कहीं प्रयुक्त, [अध्यात्म]. आन्तरिक, भीतरी, चित्त से सम्बद्ध - ता' पु.. प्र. वि., ब. व. - अज्झत्ता धम्मा, बहिद्धा धम्मा, अज्झत्तबहिद्धा धम्मा, ध, स. (प्र.)4; अत्तानं अधिकार कत्वा पवत्ताति अज्झत्ता, अज्झत्तसद्दो पनायं गोचरज्झत्ते नियकज्झत्ते अज्झत्तज्झत्ते विसयज्झत्तेति चतूसु अत्थेसु दिस्सति, ध. स. अट्ठ. 93; - त्ता' स्त्री., प्र. वि., ब. व. -
सब्बाव पञा सिया अज्झत्ता .... विभ. 374. अज्झत्त अभि. प. में इसका व्याख्यान सत्त्व. के रूप में प्राप्त, आन्तरिक धर्म - ससन्ताने च विसये गोचरेज्झत्तमुच्चते. अभि. प. 1040; -चिन्ती त्रि., [अध्यात्मचिन्ती]. आन्तरिक धर्मों को आलम्बन बनाने वाला - न्ती पु., प्र. वि., ए. व.
- अज्झत्तचिन्ती सतिमा, ओघं तरति दुत्तरं सु. नि. 176, अज्झत्तचिन्ती न मनो बहिद्धा, निच्छारये सङ्गहितत्तभावो. सु. नि. 390, - तज्झत्त त्रि., अत्यन्त दृढ़ता के साथ आन्तरिक धर्मों को चित्त का आलम्बन बनाने वाला - अज्झत्त सद्दो पनायं गोचरज्झते नियकज्झत्ते अज्झत्तज्झत्ते विसयज्झत्तेति चतूसु अत्थेसु दिस्सति, ध, स. अट्ठ. 93, विलो. गोचरज्झत्त; -तिक नपुं.. अज्झत्त से प्रारम्भ होने वाली ध. स. की एक तिकमातिका - अज्झत्तत्तिके एवं पवत्तमाना मयं अत्ताति गहणं, ध. स. अट्ठ. 92; - पुच्छा स्त्री., [अध्यात्मपृच्छा]. अध्यात्मविषयक प्रश्न, आन्तरिक आलम्बनों से सम्बद्ध प्रश्न - अपरापि तिस्सो पुच्छा अज्झत्तपुच्छा बहिद्धापुच्छा अज्झत्तबहिद्धापुच्छा, महानि. 251; - बन्धन त्रि.. [अध्यात्मबन्धन], आन्तरिक बन्धन अर्थात् दसविध चित्तबन्धन - नो पु.. प्र. वि., ए. व. - अज्झत्तसंयोजनोति अज्झत्तबन्धनो, पु. प. अट्ठ. 53; - बहिद्ध त्रि०, अंशतः भीतरी और अंशतः बाहरी - अस्थि अज्झत्तो, अस्थि बहिद्धो, अत्थि अज्झत्तबहिद्धो, विभ. 18; - बहिद्धारम्मण त्रि., चित्त के आभ्यन्तरिक आलम्बन एवं बाह्यालम्बन - अस्थि अज्झत्तबहिद्धारम्मणो, विभ. 18; - बहिद्धापुच्छा स्त्री., आन्तरिक एवं बाह्य धर्मों से सम्बद्ध प्रश्न - अपरापि तिस्सो पुच्छा- अज्झत्तपुच्छा बहिद्धापुच्छा अज्झत्तबहिद्धा पुच्छा, महानि. 251; - बहिद्धारूप नपुं.. आध्यात्मिक एवं बाह्य रूप - अज्झत्तबहिद्धारूपे ति तदुभये, पारा. 150, - बहिद्धावत्थुक त्रि., आन्तरिक एवं बाह्य धर्मों को मन के चिन्तन का आधार बनाने वाला- केसु नपुं.. सप्त. वि.. ब. क. - इमिना अज्झत्तबहिद्धावत्थुकेसु कसिणेसु झानपटिलाभो दस्सितो, ध. स. अट्ठ. 235; - बाहिर त्रि.. भीतर और बाहर - रा पु.. प्र. वि., ब. व. - अनिच्चं दुक्खं अनत्ता च, तयो अज्झत्तबाहिरा, स. नि. 2(2).6; - भातिक पु.. सहोदर भ्राता, अपना सगा भाई- अयं पन थेरस्स अज्झतभातिको, अ. नि. अट्ठ. 1.176; - रत त्रि., [अध्यात्मरत]. अन्तर्मुख होकर आध्यात्मिक साधनापरायण, समाधिस्थ, समाधि में संलीन - तो पु., प्र. वि., ए. व. - अज्झत्तरतो समाहितो. उदा. 143; अज्झत्तरतो समाहितो, एको सन्तुसितो तमाहु भिक्खं ध. प. 362; अज्झत्तरतोति गोचरज्झत्तसङ्घाताय कम्मट्ठानभावनाय रतो. ध. प. अट्ठ. 2.333; - ववत्थान नपुं.. [अध्यात्मव्यवस्थान]. आत्मिक धर्मो पर अनुचिन्तन, आभ्यन्तरिक धर्मविषयक विवेक-ने सप्त. वि., ए. व. - कथं अज्झत्तववत्थाने पञ्जा वत्थनानते जाणं पटि. म. 69;
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