Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
माषा
SHORSELEGAURIGALURSECRECEREMOCK
के अजीव आदि पदार्थोंकी न भी जानकारी हो तो भी उनका श्रद्धान हो सकता है और यथार्थ श्रद्धानसे जो है
फल होना चाहिये वह भी हो सकता है ? इसतरह निसर्गज सम्पग्दर्शनके होने कोई वाधा नहीं है सो
ठीक नहीं। मणिका दीखना प्रत्यक्ष है । अत्यंत परोक्ष नहीं । इसलिये प्रत्यक्षसे देखकर वह मणिको ६ ग्रहण करता है और माणिसे विपरीत पदार्थको ग्रहण नहीं करता अथवा मणिके विपर्यय विशेषको तो ६ वह नहीं जानता है । इसरीतिसे मणिका स्वरूप न भी जानने पर प्रत्यक्षमें दीखनेके कारण उसका हूँ ग्रहण हो सकता है परन्तु जीव अजीव आदि पदार्थों का स्वरूप अत्यन्त परोक्ष-सूक्ष्म है इसलिये विना है परकी सहायताके उनका श्रद्धान नहीं किया जा सकता। जब विना परके निमित्तकै स्वभावसे सम्यहै, ग्दर्शन नहीं हो सकता तब सम्यग्दर्शनका निसर्गज सम्यग्दर्शन भेद मानना व्यर्थ है। यदि यह कहा
जायगा कि उपदेश वा शास्त्र के द्वाराजीवादि पदार्थों का सामान्य ज्ञान हो जानेपर उनका यथार्थ श्रद्धान ॐ हो जायगा और वही निसर्गज सम्यग्दर्शन कहा जायगा कोई दोष नहीं ? सो भी अयुक्त है। यदि ६ उपदेश वा शास्त्र आदि परनिमिचोंसे वह श्रद्धान माना जायगा तो वह अधिगमज सम्यग्दर्शन ही है 5 निसर्गज सम्यग्दर्शन नहीं कहा जा सकता। तथा
तापपूकाशवयुगपदुत्पत्तेरभ्युपगमाच्च ॥ ४॥ ___ यदि सम्यग्दर्शनके पहिले विना किसी निमिचके सम्यग्दर्शन हो, तब तो वह निसर्गज सम्यग्दर्शन | है कहा जा सकता है सो तो माना नहीं किंतु जिसप्रकार सूर्यसे उत्ताप और प्रकाशकी एक साथ उत्पत्ति है होती है उसीप्रकार जिससमय आत्मामें सम्यग्दर्शन पर्याय प्रकट होती है उसी समय मति अज्ञान और । श्रुत अज्ञान सम्यग्ज्ञानस्वरूप हो आत्मामें प्रकट हो जाते हैं इस रीतिसे सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानकी
SPEPARSADNESSPAPERBASNEPARAS+