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उभृत 113
उनचास उदभूत--सं० (वि०) उभरा हुआ
उद्वर्ष-सं० (पु०) फालतू बढ़ी हुई चीज़ प्रेद, उभेदन-सं० (पु०) 1फोड़कर वस्तु का बाहर | अवर्धन-सं० (पु०) 1 दबायी हुई हंसी 2 विस्तार निकलना 2 प्रकट होना 3 (अलंकार) कौशल से छिपाई हुई | अस-सं० (वि०) 1 मधु निकला हुआ 2 रिक्त 3 लुप्त बात का प्रकट होना
उनुहन-सं० (पु०) 1 उठाना 2 सँभालना 3 विवाह करना ग्रम, उनमण-सं० (पु०) 1 चक्कर काटना, घूमना 4 उठाकर ले जाना 2 उदय होना 3 उद्वेग 4 विभ्रम, विस्मय
शांत-I सं० (पु०) कै, वमन II (वि०) उगला हुआ भ्रांत-सं० (वि०) 1 चक्कर खाया हुआ 2 भ्रम में पड़ा हुआ शासन-सं० (पु०) 1 दूर करना 2 उजाड़ना 3 वध करना 3 चकित, भौचक्का 4 उद्विग्न 5 भटका हुआ
4 आसन बिछाना उद्धांति-सं० (स्त्री०) = उदभ्रंम
उद्धवासित-सं० (वि०) 1 नष्ट किया हुआ 2 भगाया हुआ उद्यत-सं० (वि०) 1 प्रस्तुत 2 तैयार, आमादा
उसाह, उद्धाहन-सं० (पु०) 1ऊपर ले जाना 2 दूर ले जाना जाम-सं० (पु०) 1 श्रम, मेहनत 2 उद्योग - धंधा। कर्ता 3 विवाह 4 जोते हुए खेत को जोतना 5 संभालना
(पु०) उद्यमी; ~शील (वि०) मेहनती, उद्यमी उवाहिक-सं० (वि०) 1दूर ले जाया हुआ 2 वैवाहिक उद्यमी-सं० (वि०) 1 उद्यमशील 2 परिश्रमी 3 साहसी उद्धवाहित-सं० (वि०) 1 उठाया हुआ 2 खींचा हुआ 3.विवाहित उद्यान-सं० (पु०) 1 बाग़, बगीचा 2 जंगल, वन। ~कर्म उद्याही-सं० (वि०) 1 ऊपर ले जानेवाला 2 विवाह करनेवाला (पु०) = उद्यान व्यापार; ~गृह (पु०) बगीचे में बना हुआ अद्विकास-सं० (पु०) ऊपर की ओर बढ़ना छोटा सुंदर मकान; ~गोष्ठी (स्त्री०) बाग़ में होनेवाली मित्रों अद्विन-सं० (वि०) 1 परेशान 2 चिंतित 3 खिन्न । ता की सभा नगरी (स्त्री०) जो नगर उद्यान विशेष के लिए (स्त्री०) उद्विग्न होने की अवस्था, आकुलता, परेशानी प्रसिद्ध हो; ~पाल (पु०) माली; विज्ञान (पु०), सीक्षण-सं० (पु०) 1 ऊपर की ओर देखना 2 नज़र 3 आँख विद्या (स्त्री०) बाग़बानी
उद्वेग-सं० (पु०) 1 तीव्र वेग, तेज़ी 2 आवेश, जोश 3 घबराहट उद्यानिकी-(पु०) (स्त्री०) बाग-बगीचे लगाने का काम 4 चित्त की अस्थिरता जनक (वि०) उद्वेग पैदा उद्यापन-सं० 1 विधिपूर्वक काम पूरा करना 2 व्रतादि की | करनेवाला समाप्ति पर किया जानेवाला धार्मिक कर्म
उद्धेगकर-सं० (वि०) = उद्वेगजनक धापित-सं (वि०) विधिपूर्वक किया हुआ
उद्वेगात्मक, उद्वेगी-सं० (वि०) 1 दुःखी 2 चिंताजनक उहाक्त-सं० 1 तत्पर, तैयार 2 काम में लगा हुआ, संलग्न उखेजक-सं० (वि०) उद्वेग उत्पन्न करनेवाला योग-सं० । यत्न, श्रम 2 उद्यम 3 कल-कारखानों में माल उद्वेजन-सं० (पु०) 1 क्लेश पहुंचाना 2 उद्वेग उत्पन्न करना तैयार करना । उन्नति (स्त्री०) उद्योग की उन्नति; ~कला | उद्धेजित-सं० (वि०) = उद्वेगी (स्त्री०) उद्योग करने का ढंग, विधि आदि; ~धंधा + हि० | उद्वेलन-सं० (पु.) 1 उफनना, उपटकर बहना 2 उल्लंघन (पु०) कार्य - व्यापार; पति (पु०) कारखाने या मिल का ओलित-सं० (वि०) 1 ऊपर से बहाया हुआ 2 छलकता हुआ मालिक; -परायण (वि०) = उद्यमशील। व्यवसाय | 3 उद्विग्न, अशान्त (पु०) काम-धंधा; ~शाला (स्त्री०) कारखाना, कम्पनी का | ओएन-सं० (पु०) 1 घेरा, बाड़ा 2 घेरना 3 नितंब में होनेवाली कार्यालय; ~शील (वि०) परिश्रमी, उद्यमी उद्योगी-सं० (वि०) = उद्योगशील । ~करण (पु०) उद्योग वेष्टित-सं० (वि०) चारों तरफ से घिरा हुआ स्थापित करना; कृत (वि०) जिसे उद्योग का रूप दिया गया उधड़ना (अ० क्रि०) । खुलना, टूटना 2 अलग होना
3बिखरना 4 उखड़ना । द्योत-सं० (पु०) 1 प्रकाश 2 चमक
उधर -(क्रि० वि०) 1 उस ओर 2 उस पक्ष में उद्योतन-सं० (पु०) 1 प्रकाशित करना 2 चमकाना उपराना-(अ० क्रि०) 1 तितर - बितर होना 2 उड़ जाना उद्रिक्त-सं० (वि०) 1 उद्रेक से किया हुआ 2 प्रत्यक्ष 3 प्रमुख ___ 3 गायब हो जाना
4 अत्यधिक, बहुत ज़्यादा चित्त (वि०) उच्च हृदयवाला उधार (पु०) 1 कर्ज 2 मैंगनी। ~का व्यवहार (पु.) 1 कर्ज़ झुज-सं० (वि०) 1 तोड़नेवाला 2 नष्ट करनेवाला 3 जड़ देना 2 उधार माल बेचना; खाता (पु०) उधार का खोदनेवाला
हिसाब-किताब ~खाना कर्ज पर गुज़र करना; दबाए बैठना उद्रेक-सं० 1 प्रचुरता 2 प्रमुखता 3 आरंभ 4 (साहि०) | 1किसी बात पर अडिग होना 2 किसी वस्तु के आसरे रहना; अर्थालंकार का एक भेद जिसमें किसी वस्तु के गुण-दोष के ग्रहण + सं० (पु.) उधार लेना,
आगे कई गुणों-दोषों के मंद पड़ने का वर्णन हो उधेड़-बुन (स्त्री०) निरंतर विचार, ऊहापोह, तर्क-वितर्क उद्रेचक-सं० (वि०) बहुत बढ़ा देनेवाला
उधेड़ना-(स० क्रि०) । खोलना, तोड़ना 2 उखाड़ना 3 अलग उद्वपन-सं० (पु०) 1 बाहर निकालना 2 हिलाकर गिराना। करना 4 बिखेरना। उधेड़कर रख देना 1 कच्चा चिट्ठा खोल 3 उंडेलना 4 दान
देना 2 पोल पट्टी खोल देना, दोष-बुराई कह देना उद्धर्त-I सं० (पु०) 1 उबटन 2 उबटन की मालिश 3 अतिरिक्त | म (सर्व०) 'उस' का बहुवचन रूप अंश II (वि०) शेष बचा हुआ, फ़ालतू
मका 1 अलभ्य वस्तु 2 एक कल्पित पक्षी होना अदृश्य हो उबर्तन-सं० (पु०) 1ऊपर उठाना 2 उबटन लगाना 3 वृद्धि |
जाना अर्तित-सं० (वि०) 1 उठा हुआ 2 मालिश किया हुआ | उनचास-I(वि०) चालीस और नौ II(पु०) 49 की संख्या
पीड़ा दा