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मरा
चातुर्भद्र 254
चारी चातुर्भद्र-सं० (पु०) अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष ये चारों पदार्थ चामरी-सं० (स्त्री०) सुरा गाय, याक चातुर्मास्य-(पु०) 1 चौमासा, वर्षाकाल 2 चार महीने चामुंडा-सं० (स्त्री०) चंड मुंड का नाश करनेवाली देवी, दर्गा चातुर्य-सं० (पु०) चतुरता, चतुराई। पूर्ण (वि०) चालाकी चाय-फा० (स्त्री०) एक प्रसिद्ध पौधा जिसकी पत्तियाँ पानी में
उबालकर दूध एवं चीनी मिलाकर पीने योग्य होती हैं चातुर्वर्ण्य-I सं० (पु०) हिंदुओं के चारों वर्ण II (वि०) चारों (जैसे-चार प्याले चाय तैयार करना)। खाना (पु०) वों में होनेवाला
चायघर; दान (पु०), दानी + हिं० (स्त्री०) चाय चातुर्विद्य-[ सं० (वि०) चारों (वेदों) का ज्ञाता II (पु०) बनाने का पात्र; पान + सं० (पु०) चाय पीना; पानी चारों वेद
+ हिं० (पु०) चाय सहित दिया जानेवाला नाश्ता; पार्टी चादर-फा० (स्त्री०) 1 आयताकार कपड़े का वह भाग जिसे __ + अं० (स्त्री०) जलपान; ~फरोश (पु०) चाय बेचनेवाला बिछाया एवं ओढ़ा जाता है 2 धातु आदि का बड़ा आयताकार चायक-सं० (वि०) चुननेवाला पतला पत्तर (जैसे-टीन की चादर का भाव क्या है)।
चार-I (वि०) 1 तीन और एक 2 कुछ 3 अनेक II (पु०) ~उतारना बेइज़्ज़त करना; ~ओढ़ाना, डालना विधवा से चार की संख्या। ~आँखें करना आँखें मिलाना; चाँद शादी करना; देखकर पाँव फैलाना विसात देखकर खर्च लगना अत्यधिक सुंदर होना, सुंदरता में वृद्धि होना; चश्म करना; हिलाना आत्मसमपर्ण हेतु कपड़ा हिलाकर संकेत + फ़ा० (वि०) 1 निर्लज्ज 2 कृतघ्नः चाँद लगाना करना
अत्यधिक सुंदर बनाना; दिन की जिंदगी अल्प काल का चादरा-फा० (पु०) बड़ी चादर
जीवन, थोड़े समय का जीवन; दिन में ही कुछ समय में ही चाप-I (स्त्री०) 1 चापने की क्रिया 2 पैरों की आहट (जैसे-मालिक के व्यवहार से नौकर चार दिन में ही ऊब चाप-II सं० (पु०) 1 धनुष 2 ग० वृत्त की परिधि का कोई गया); पाँच करना इधर-उधर की बातें करना . भाग (जैसे-दो इंच की त्रिज्या से एक चाप लगाओ)3 मेहराब। चार-सं० (पु०) 1सेवक, दास 2 गुप्तचर, जासूस। कर्म ~रूप (वि०) धनुषाकार
(पु०) जासूस का काम, जासूसी; पुरुष (पु०) गुप्तचर; चापड़-(वि०) 1 जो चिपटा हो गया हो 2 चौपट
~भट (पु०) वीर सैनिक; ~वायु (स्त्री०) गरम हवा, लू; चापना-(स० क्रि०) 1 दबाना, चाँपना (जैसे-पैर ~) व्यवस्था (स्त्री०) = चार कर्म । 2 आलिंगन करते समय दबाना
चारखाना-फा० (पु०) 1 चौकोर खानोंवाली रचना 2 चौकोर चापर-बो० (वि०) = चापड़
खानोंवाला कपड़ा चापल-I सं० (पु०) चंचलता, चपलता II (वि०) चंचल, चारज-अं० (पु०) = चार्ज चपल
चारजामा-फ़ा० (पु०) घोड़े की पीठ पर कसा जानेवाला जीन चापलूस-फ़ा० (वि०) खुशामदी, चाटुकार
चारण-I सं० (पु०) 1 बंदीजन, भाट 2 भाट जाति का व्यक्ति चापलूसी-फ़ा० (स्त्री०) खुशामद, चाटुता
II (पु०) चराना (जैसे-गोचारण) चापल्य-सं० (पु०) चंचलता, चपलता, अस्थिरता चारदीवारी-फ़ा० (स्त्री०) = चहारदीवारी चाप्य-अं० (स्त्री०) तला हुआ टुकड़ा
चार-ना-चार-फ़ा० (क्रि० वि०) विवश होकर, लाचार होकर चाफंद-(पु०) मछलियाँ पकड़ने का जाल
चारपाई-(स्त्री०) खाट (जैसे-वह चारपाई पर लेटा है)। चाबना-(स० क्रि०) 1 चबाना, दबाना (जैसे-दाँतों से गन्ना ~धरना, पकड़ना, ~पर पड़ना 1 सख़्त बीमार होना
चबाकर रस चूसना) 2 पेट भरकर भोजन करना, चाभना 2 चारपाई पर लेट जाना; से पीठ लगना बीमार पड़ जाना चाबी-(स्त्री०) 1 ताली, कुंजी (जैसे-चोर ने बिना चाबी के चारा-(पु०) 1 घास-फूस, भूसा (जैसे-गाय को चारा डाल ताला कैसे खोला) 2 यंत्र को गतिशील रखने के लिए कमानी दो) 2 निकृष्ट भोजन 3 प्रलोभन (जैसे-भुझे चारा डालकर कसना (जैसे-घड़ी बंद है, चाबी दे दो) 3 युक्ति, साधन फँसाने की कोशिश मत करो)। घास (स्त्री०) घास-भूसा; (जैसे-घबराने की बात नहीं, उनकी चाबी तो मेरे पास है)। दाना + फ़ा० (पु०) चरने खाने की चीज़
देना, ~भरना कमानी कसना (जैसे-घड़ी में चाबी देना) चाराजोई-फ़ा० (स्त्री०) याचना, फरियाद (जैसे-अदालत में चाबुक-फ़ा० (पु०) चमड़े आदि का कोड़ा। दस्त (वि०) चाराजोई करना) दक्ष, कुशल; दस्ती (स्त्री०) दक्षता, कुशलता; सवार चारित-I सं० (वि०) चलाया हुआ, गतिमान किया हुअ (पु०) घोड़े को चाल सिखानेवाला व्यक्ति; सवारी II (पु०) आरा
(स्त्री०) 1 चाबुक सवार का पद 2 चाबुक सवार का काम चारितार्थ्य-सं० (पू०) चरितार्थ होने की अवस्था, चरितार्थत चाभना-(स० क्रि०) - चाबना
चारित्र-सं० (पु०) 1 अच्छा चाल-चलन 2 रीति-व्यवहा चाभी-(स्त्री०) = चाबी
3 वंश का आचार-व्यवहार चाम-(पु०) चमड़ा, खाल। -चोरी (स्त्री०) गुप्त रूप से चारित्रिक-सं० (वि०) 1 अच्छे चरित्रवाला 2 चरित्र में किया गया परस्त्री गमनः के दाम चलाना 1 चमड़े के संबंधित। ता 1 अच्छा चरित्र 2 चरित्र चित्रण की कल सिक्के चलाना 2 व्याभिचार से धन कमाना 3 बल, वैभव चारित्र्य-सं० (पु०) चरित्र, आचरण। -पतन (पु०) चरिः आदि से असाधारण कार्य करना
की गिरावट चामत्कारिक-सं० (वि०) चमत्कारी
चारी-[सं० (वि०) चलनेवाला (जैसे-स्वेच्छाचारी, अनाचारी चामर-सं० (पु०) चंवर, मोरछल
व्योमचारी) II (पु०) पैदल चलनेवाला सिपाही