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आभास आयुर्वेद
आभास - कश्मीरी शैव मत का एक सिद्धान्त । कश्मीरी शैवों की साहित्यिक परम्परा में सोमानन्द कृत 'शिवदृष्टि' ग्रन्थ व मत के दार्शनिक विचारों को स्पष्टरूप में प्रस्तुत करता है। यह एकेश्वरवाद को मानता है एवं इसके अनु सार मोक्ष मनुष्य को सतत प्रत्यभिज्ञा (मनुष्य का शिव के साथ तादात्म्य भाव) के अनुशासन से प्राप्त हो सकता है। यहाँ सृष्टि को केवल माया नहीं, अपितु शिव का शक्ति के माध्यम से व्यक्तीकरण माना गया है । सम्पूर्ण सृष्टि शिव का 'आभास' (प्रकाश) है आभास का शाब्दिक अर्थ है 'सम्यक् प्रकार से भासित होगा' यह एक प्रकार की विश्व-मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा परम शिव (अन्तिम तत्व) विश्व के विविध रूपों में भासित होता है।
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आमर्दकीव्रत- किसी मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी, विशेष रूप से फाल्गुन मास की आमदंकी अथवा पात्री ( आंवला फल अथवा हरे) कहलाती है। विभिन्न नक्षत्रों से युक्त द्वादशी के विभिन्न नाम ये हैं । जैसे विजया ( श्रवण नक्षत्र के साथ), जयन्ती (रोहिणी के साथ), पापनाशिनी (पुष्य नक्षत्र के साथ ) । अन्तिम द्वादशी के दिन उपवास करने से एक सहस्र एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है। विष्णु की पूजा करते हुए व्रती को आमलक वृक्ष के नीचे जागरण करना चाहिए। दे० हेमाद्रि, १, २१४-२२२ ।
आमलक्येकादशी - फाल्गुन शुक्ल एकादशी । इस तिथि को आमलक वृक्ष के नीचे हरि भगवान् का पूजन करना चाहिए, क्योंकि इस वृक्ष में विष्णु और लक्ष्मी का वास है । दे० पद्मपुराण, ६.४७. ३३ स्मृतिकौस्तुभ ३६४-३६६ । आँवले के वृक्ष के नीचे बैठकर कार्तिक पूर्णिमा अथवा कार्तिक मास के किसी भी दिन पूजन और भोजन करना चाहिए ।
आमेर (अम्बानगर ) - राजस्थान का एक प्रसिद्ध शाक्त पीठ । यह जयपुर से ५ मील दूर है जो इस राज्य की प्राचीन राजधानी थी । यहाँ काली का एक प्रसिद्ध मन्दिर है । एक अन्य पहाड़ी पर पर गलता ( झरना) टीला है, जिसको लोग गालव ऋषि की तपोभूमि मानते हैं। टीले के ऊपर सात कुण्ड हैं । इनके पास ही शंकरजी का मन्दिर है। झरनों से बराबर जल प्रवाहित होता रहता है
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जिसमें यात्री स्नान करके अपने को पुण्य का भागी समझते हैं ।
आम्रपुण्यभक्षण इस व्रत का सम्बन्ध कामदेव पूजन से है आम्रमञ्जरीकामदेव का प्रतीक है, क्योंकि इसकी मदगन्ध काम को उद्दीप्त करती है । कामदेव की तुष्टि के लिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को आम्र मञ्जरियों को रवाना चाहिए । ० स्मृतिकौस्तुभ ५१९ वर्षकृत्यकौमुदी, ५१६-५१७ ।
आयतन - छान्दोग्य उपनिषद् (७.२४.२) में यह निवास स्थान के अर्थ में केवल एक स्थान पर आया है। किन्तु काव्यों में इसे पवित्र स्थान, विशेष कर मन्दिर माना गया है, जैसे देवायतन, शिवायतन आदि ।
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विष्णु भगवान् को मङ्गल का आयतन माना गया है मङ्गलं भगवान् विष्णुः मङ्गलं गरुडध्वजः । मङ्गलं पुण्डरीकाक्षः मङ्गलायतनं हरिः ॥ आयन्त दीक्षित — आयन्त दीक्षित देश के शिष्य थे। इन्होंने 'व्यासतात्पर्यनिर्णय' नामक एक अद्भुत ग्रन्थ की रचना की थी। बेङ्कटेश सदाशिवेन्द्र सरस्वती के समकालीन थे, उन्होंने 'अक्षयषष्टि' और 'दायशतक ' नामक दो ग्रंथ रचे हैं । उनके शिष्य होने के कारण आयन्त दीक्षित का जीवन काल भी अठारहवीं शताब्दी ही सिद्ध होता है। 'व्यासतात्पर्यनिर्णय' में आयन्त दीक्षित ने व्यास के वेदान्तसूत्रों को अद्वैतवादी माना है। अद्वैत सिद्ध प्रेमियों के लिए यह महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । आयुर्वेद - - परम्परा के अनुसार आयुर्वेद एक उपवेद है तथा धर्म और दर्शन से इसका अभिन्न सम्बन्ध है। चरणव्यूह के अनुसार यह ऋग्वेद का उपवेद है परन्तु सुश्रुतादि आयुर्वेद ग्रन्थों के अनुसार यह अथर्ववेद का उपवेद है । सुश्रुत के मत से "जिसमें या जिसके द्वारा आयु प्राप्त हो, आयु जानी जाय उसको आयुर्वेद कहते हैं।" भावमिश्र ने भी ऐसा ही लिखा है । चरक में लिखा है-- 'यदि कोई पूछने वाला प्रश्न करे कि ऋक्, साम, यजु, अथर्व इन चारों वेदों में किस वेद का अवलम्ब लेकर आयुर्वेद के विद्वान् उपदेश करते हैं, तो उनसे चिकित्सक चारों में अथर्ववेद के प्रति अधिक भक्ति प्रकट करेगा। क्योंकि स्वस्त्ययन, बलि, मङ्गल, होम, नियम, प्रायश्चित्त, उपवास और मन्त्रादि अथर्ववेद से लेकर ही वे चिकित्सा का उपदेश करते हैं ।'
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