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व्रजविलास-शक्ति उपासना
व्रजविलास-संत व्रजवासीदास कृत व्रजभाषा का लोक- शक्ति-शक्ति की कल्पना तथा आराधना भारतीय धर्म की काव्य । यह ग्रन्थ ब्रजभूमि के माहात्म्य तया कृष्ण के अत्यन्त पुरानी और स्थायी परम्परा है। अनेक रूपों में बालचरित्रों का दोहा-चौपाइयों में वर्णन करता है। शक्ति की कल्पना हुई है, प्रधानतः मातृरूप में। इसका भक्तों की इसके पठन की तीव्र लालसा रहती है। विशेष पल्लवन पुराणों और तन्त्रों में हुआ । हरिवंश और व्रतषष्टि-मत्स्यपुराण (१०१) और पद्मपुराण (५.२०. मार्कण्डेय पुराण के देवीमाहात्म्य में देवी अथवा शक्ति ४३) में महत्त्वपूर्ण ६० व्रतों का उल्लेख मिलता है, जिन का विशेष वर्णन और विवेचन किया गया है। देवी को सबका उल्लेख कृत्यकल्पतरु में हुआ है ।
उपनिषदों का ब्रह्म तथा एकमात्र सत्ता बतलाया गया है । दूसरे देव इसी की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ है। दैवी
शक्ति का यह सिद्धान्त यहाँ सर्वप्रथम व्यक्त हुआ है। इस श-ऊष्मवर्णों का प्रथम अक्षर । कामधेनुतन्त्र में इसके
प्रकार वह ( शक्ति ) विशेष पूजा तथा आराधना के स्वरूप का वर्णन निम्नांकित है :
योग्य है । मनुष्य जब कुछ अपनी मनोरथ पूर्ति कराना शकारं परमेशानि शृणु वर्ण शुचिस्मिते ।
चाहेगा तो उसी से अनुनय-विनय करेगा, शिव से नहीं । रक्तवणप्रभाकारं स्वयं परमकुण्डली ।।
शाक्त साहित्य में शक्तिरहित शिव को शवतुल्य चतुर्वर्गप्रदं देवि शकारं ब्रह्मविग्रहम् ।
बताया गया है। शक्ति ही शिव या ब्रह्म की विशुद्ध पञ्चदेवमयं वर्ण पञ्चप्राणात्मक प्रिये ।।
कार्यक्षमता है। अर्थात् वही सृष्टि एवं प्रलयकी है तथा
सब दैवी कृपा तथा मोक्ष प्रदान उसी के कार्य हैं । इस रजःसत्त्वतमो युक्तं त्रिबिन्दुसहितं सदा ।
प्रकार शक्ति शिव से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। शक्ति त्रिशक्तिसहितं वर्णमात्मादितत्त्वसंयुतम् ।।
से ही विशेषण 'शाक्त' बनता है जो शक्ति-उपासक सम्प्रयोगिनीतन्त्र (तृतीय भाग, सप्तम पटल ) में इसके
दाय का नाम है । शक्ति ब्रह्मतुल्य है। शक्ति और ब्रह्म निम्नलिखित वाचक बतलाये गये है :
का एक मात्र अन्तर यह है कि शक्ति क्रियाशील भाग है शः सव्यश्च कामरूपी कामरूपो महामतिः ।
तथा ब्रह्म को सभी उत्पन्न वस्तुओं तथा जीवों के रूप में मौख्यनामा कुमारोऽस्थि श्रीकण्ठो वृषकेतनः ।।
वह व्यक्त वा द्योतित करती है। जबकि ब्रह्म अव्यक्त एवं विषघ्नं शयनं शान्ता सुभगा विस्फुलिङ्गिनी ।
निष्क्रिय है । धार्मिक दृष्टि से वह ब्रह्म से श्रेष्ठ है । शक्ति मृत्युदेवो महालक्ष्मीर्महेन्द्रः कुलकौलिनी ।
मूल प्रकृति है तथा सारा विश्व उसी (शक्ति) का प्रकट बाहुहंसो वियद् वक्रं हृदनङ्गांकुशः खलः।
रूप है । दे० 'योग', 'क्रिया', 'भूति' । वामोरुः पुण्डरीकात्मा कान्तिः कल्याणवाचकः ।।
शक्ति उपासना-पुराणों के परिशीलन से पता चलता है शकुन्तला-शतपथ ब्राह्मण (१३.५.४.१३) के अनुसार कि प्रत्येक सम्प्रदाय के उपास्य देव की एक शक्ति है। एक अप्सरा का नाम, जिसने भरत को नाडपित नामक गीता में भगवान् कृष्ण अपनी द्विधा प्रकृति, माया की स्थान पर जन्म दिया था। ब्राह्मणों, महाभारत, पुराणों बारम्बार चर्चा करते हैं । पुराणों में तो नारायण और और परवर्ती साहित्य में शकुन्तला मेनका नामक अप्सरा विष्णु के साथ लक्ष्मी के, शिव के साथ शिवा के, सूर्य के से उत्पन्न विश्वामित्र की पुत्री कही गयी है। मेनका साथ सावित्री के, गणेश के साथ अम्बिका के चरित और स्वर्ग लौटने के पूर्व पुत्री को पृथ्वी पर छोड़ गयी, जिसका माहात्म्य वणित हैं । इनके पीछे जब सम्प्रदायों का अलगपालन शकुन्त पक्षियों ने किया। इसके पश्चात् वह कण्व अलग विकास होता है तो प्रत्येक सम्प्रदाय अपने उपास्य ऋषि की धर्मपुत्री हई और उनके आश्रम में ही पालित की शक्ति की उपासना करता है । इस तरह शक्ति उपाऔर शिक्षित हुई । उसका गान्धर्व विवाह पौरववंशी राजा सना की एक समय ऐसी प्रबल धारा बही कि सभी सम्प्रदुष्यन्त से हुआ, जिससे भरत की उत्पत्ति हुई । भरत चक्र- दायों के अनुयायी मुख्य रूप से नहीं तो गौण रूप से वर्ती राजा था, जिसके नाम पर एक परम्परा के अनुसार शाक्त बन गये । अपने उपास्य के नाम से पहले शक्ति के इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा।
स्मरण करने की प्रथा चल पड़ी। सीताराम, राधाकृष्ण,
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