________________
शाक्तानन्दतरङ्गिणी - शाण्डिल्यायन
शाक्तानन्दतरङ्गिणी - यह स्वामी ब्रह्मानन्द गिरि रचित एक शाक्त ग्रन्थ है |
शाक्य मुनि शाक्य वंश में अवतीर्ण होने के कारण गौतम बुद्ध शाक्य मुनि कहलाते थे । शाक शाल वृक्ष को कहते हैं। अयोध्या के इक्ष्वाकु (सूर्यपुत्र) वंश की एक शाखा गौतमगोत्रज कपिल मुनि के आश्रमप्रदेश में, जिसमें शाक वृक्षों का आधिक्य था, आकर बस गयी थी, इसलिए वह शाक्य कहलाने लगी । अमरकोश के टीकाकार भरत का निम्नांकित कथन है :
----
शाकवृक्ष प्रतिच्छन्नं वासं यस्मात् प्रचक्रिरे । तस्मादिक्ष्वाकुवंश्यास्ते भुवि शाक्य इति श्रुताः ॥ शाक्य मुनि को शाक्यसिंह भी कहते हैं । शाक्री-शक्र की शक्ति । यह दुर्गा का पर्याय है : इन्द्राणी इन्द्रजननी शाक्री शक्रपराक्रमा | कुकरा देवी बच्चा तेनोपगीयते ॥
कहते हैं
शाख - विशाख को ही शाख भी नाम कृत्तिकापुत्र या कार्तिकेय भी है। पार्वती के पुत्र थे, जिनका पालन किया था ।
।
शाङ्खायन कौषीतकि ब्राह्मण, कौषीतकि गृह्यसूत्र आदि के रचनाकार तथा ऋग्वेद के एक शाखा सम्पादक । इनका उल्लेख वंशसूची में शाङ्खायन आरण्यक के अन्त में हुआ है जहाँ गुणारूप को उसका रचयिता कहा गया है। श्रौतसूत्र में शाङ्खायन का नामोल्लेख नहीं है, किन्तु गृह्यसूत्र सुयज्ञ शाङ्खायन को आचार्य के रूप में लिखता है। परवर्ती काल में शाङ्खायन शाखा के अनुयायी उत्तरी गुजरात में पाये जाते थे । शाङ्खायन तैत्तिरीय प्रातिशाख्य में काण्डमायन के साथ उल्लिखित हैं ।
शाङ्खायन आरण्यक ऋग्वेद का एक आरण्यक । इस आरण्यक का सम्पादन तथा अंग्रेजी अनुवाद प्रो० कीथ ने किया है।
-
(देवीपुराण) । इनका दूसरा वास्तव में वे कृत्तिकाओं ने
शाङ्खायनगृह्यसूत्र -- गृह्यसूत्रों के वर्ग में ऋग्वेद से सम्ब न्धित शाङ्खायनगृह्यसूत्र प्रमुखतया प्रचलित है । शाङ्खायनब्राह्मण - यह ऋग्वेद की कौषीतकि शाखा का ब्राह्मण है । कौषीतकिब्राह्मण नाम से भी यह ख्यात हैं । शाङ्खायनधौतसूत्र वेदीय साहित्यान्तर्गत संहिता और
७९
--
Jain Education International
६२५
ब्राह्मण के पश्चात् तीसरी कोटि का साहित्य | यह ४८ अध्यायों में है। शायन श्रौतसूत्र का शाङ्खायन ब्राह्मण से सम्बन्ध है । इस श्रौतसूत्र के पन्द्रहवें और सोलहवें अध्याय की रचना ब्राह्मण ग्रन्थों की भाषाशैली में हुई है । इससे इसकी प्राचीनता अनुमानित की जाती है । इसके सत्रहवें और अठारहवें अध्याय का सम्बन्ध कौपीतकि आरण्यक के पहले दो अध्यायों के साथ निष्ठ प्रतीत होता है।
शाट्यायनाय के गोत्रज शाट्यायन का उल्लेख शतपथ ब्राह्मण (८.१.४.९, १०.४.५.२ ) में दो बार हुआ हैं । जैमिनीय उपनिषद्ब्राह्मण में प्रायः इनका उल्लेख है । वंशसूची में ये ज्वालायन के शिष्य कहे गये हैं तथा सामविधान ब्रा० की वंशसूची में बादरायण के शिष्य उल्लि खित हैं । शाट्यायनों का उल्लेख सूत्रों में भरा पड़ा है। शाट्यायन ब्राह्मण तथा शाट्यायनक का भी उनमें उल्लेख है । शाट्यायनब्राह्मण आश्वलायन श्रौतसूत्र में शाट्यायन ब्राह्मण का उल्लेख है ।
-
शाण्डिल्य - शण्डिल के वंशज शाण्डिल्य कहलाते हैं । अनेक आचार्यों का यह वंशबोधक नाम है । सबसे महत्वपूर्ण शाण्डिल्य वे हैं जो अनेक बार शतपथ ब्रा० में सुयोग्य विद्वान् के रूप में वर्णित हैं। इससे स्पष्ट है कि ये अग्निक्रियाओं (यशों) के सबसे बड़े आचायों में थे, जिनसे (यज्ञों से) शतपथ ब्रा० का पांचवां तथा उसके परवर्ती अध्याय भरे पड़े हैं। वंशब्राह्मण के दसवें अध्याय के अन्त में उन्हें कुशिक का शिष्य तथा वात्स्य का आचार्य कहा गया है । यह गोत्रनाम आगे चलकर बहुत प्रसिद्ध हुआ । विशेष विवरण के लिए दे० गोत्रप्रवरमञ्जरी ।
शाण्डिल्यभक्तिसूत्र - यह एक विशिष्ट भागवत ( वैष्णव ) ग्रन्थ है। इसमें भक्तितत्व का विवेचन किया गया है। भक्तिशास्त्र के मौलिक ग्रन्थों में शाण्डिल्य तथा नारद के मनिष ही आते हैं।
शाण्डिल्यायन - शाण्डिल्य के गोत्रापत्य ( वंशज) शाण्डिल्यायन कहलाते हैं । शतपथब्राह्मण में यह एक आचार्य का वंशसूचक नाम है | अवश्य वे तथा चेलक एक ही व्यक्ति हैं और इसलिए यह सोचना ठीक है कि चैलकि जीवल
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org