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श्रीकण्ठ-श्रीमति
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श्रीकण्ठ-शिव का एक विरुद (श्रीः शोभा कण्ठे यस्य) । शिवभक्ति के अधिक प्रचार के कारण पूरे कुरु-जाङ्गल ( हरियाना ) प्रदेश को श्रीकण्ठ कहा जाता था। श्रीचक्र-त्रिपुरसुन्दरी देवी की पूजा का विशेष यन्त्र । मन्त्रमहोदधि (११ तरङ्ग) में इसकी रचना का निम्नाङ्कित वर्णन है:
श्रीचक्रस्पोद्धतिं वक्ष्ये तत्र पूजाप्रसिद्धये । बिन्दुगर्भ त्रिकोणंतु कृत्वा चाष्टारमुद्धरेत् ।। दशारद्वयमन्वस्राष्टारषोडशकोणकम् । त्रिरेखात्मकभूगेहवेष्टितं यन्त्रमालिखेत् ॥
श्रीचक्र सृष्ट्यात्मक यन्त्र है। बिन्दु के साथ तीन आधारों पर स्थित अष्टकोण संहारचक्र होता है। बारह और चौदह अरों वाला यन्त्र स्थितिचक्र हो जाता है । यामलतन्त्र में कहा गया है :
बिन्दुत्रिकोणवसुकोणदशारयुग्ममन्वस्रनागदलसङ्गतषोडशा रम् । वृत्तत्रयञ्च धरणीसदनत्रयञ्च
श्रीचक्रराजमुदितं परदेवतायाः ।। श्रीचक्र के पूजन से ऋद्धि, सिद्धि तथा सुख, सम्पत्ति प्राप्त होती हैं :
षोडशं वा महादानं कृत्वा यल्लभते फलम् । तत्फलं समवाप्नोति कृत्वा श्रीचक्रदर्शनम् ।
(तन्त्रसार) श्रीनगर-(१) कश्मीर की राजधानी, उत्तरापथ का प्रसिद्ध तीर्थस्थान । श्रीनगर तथा उसके आसपास बहुत से दर्शनीय स्थान हैं । श्रीनगर से लगी हई एक पहाड़ी पर आद्य शंकराचार्य द्वारा स्थापित शिवमूर्ति है। इस पर्वत को शंकराचार्य टेकरी कहते हैं। लगभग दो मील कड़ी चढ़ाई है । मन्दिर बहुत प्राचीन है। इसी के नीचे शङ्करमठ है। इसको दुर्गानागमन्दिर भी कहते हैं । नगर में शाह हमदन की मस्जिद है जो देवदारु की चौकोर लकड़ी की बनी है । इस स्थान पर प्राचीन मन्दिर था। कोने में पानी का स्रोत है। हिन्दू इस स्थान की पूजा करते हैं। कालीमन्दिर का स्थान अब श्मशानभूमि के रूप में है । नगर के पास हरिपर्वत है जो छोटी पहाड़ी के रूप में है । अकबर ने उस पर एक परकोटा बनवाया था। उसके अन्दर मन्दिर और गुरुद्वारा भी है । अब वह सुरक्षित सैनिक स्थान है । श्रीनगर में दो कलापूर्ण मस्जिदें दर्शनीय हैं, विशेष कर नरजहाँ की बनवायी पत्थर की मस्जिद । इसके अतिरिक्त मगल उद्यान अपने सौन्दर्य के लिए विश्व में प्रसिद्ध है। डल झील के किनारे के मुख्य उद्यान शालीमारबाग, निशातबाग है । नौका से देखने योग्य नसीमबाग है। शङ्कराचार्यशिखर के पास ही अब नेहरूपार्क बन गया है, जहाँ झील में स्नान की भी उत्तम सुविधा है । जम्मू से श्रीनगर जाते समय मध्य में एक पहाड़ी मार्ग वैष्णवी देवी के लिए जाता है । आश्विन के नवरात्र में यहाँ मेला होता है। श्रीनगर से आगे अनन्तनाग, मार्तण्ड, अमरनाथ आदि धर्मस्थानों की यात्रा की जाती है।
(२) श्रीनगर (द्वितीय) बदरिकाश्रम के मार्ग में टीहरी जिले का प्रमुख नगर है। यहाँ भी शङ्कराचार्य द्वारा प्रतिष्ठित श्रीयन्त्र का दर्शन होता था, जो अब गङ्गा के गर्भ में विलीन है। श्रीमति-देव विग्रह अर्थात् देवता की प्रतिमा (विशेषतः वैष्णव) को श्रीमूर्ति कहते हैं। श्रीमूर्तियों के प्रकार का वर्णन भागवत में इस तरह है : ।
शैली दारुमयी लौही लेप्या लेख्या च सकती। मनोमयी मणिमयी प्रतिमाष्टविधा मता ॥
चक्रेऽस्मिन् पूजयेत् यो हि स सौभाग्यमवाप्नुयात् । अणिमाद्यष्टसिद्धीनामधिपो जायतेऽचिरात् ।। विद्रुमे रचिते यन्त्रे पद्मरागेऽथवा प्रिये । इन्द्रनीलेऽथ वैदूर्ये स्फाटिके मारकतेऽपि वा ।। धनं पुत्रान् तथा दारान् यशांसि लभते ध्रुवम् । ताम्रन्तु कान्तिदं प्रोक्तं सुवर्णं शत्रुनाशनम् ।। राजतं क्षेमदञ्चैव स्फाटिक सर्वसिद्धिदम् । श्रीचक्र के पादोदक (चरणामृत) का महत्त्व इस प्रकार बतलाया गया है :
गङ्गापुष्करनर्मदासु यमुनागोदावरीगोमतीगङ्गाद्वारगयाप्रयागबदरीवाराणसीसिन्धुषु । रेवासेतुसरस्वतीप्रभृतिषु ब्रह्माण्डभाण्डोदरे तीर्थस्नानसहस्रकोटिफलदं श्रीचक्रपादोदकम् ॥ श्रीचक्र के दर्शन का महान् फल कहा गया है : सम्यक् शतक्रतून् कृत्वा यत् फलं समवाप्नुयात् । तत्फलं लभते भक्त्या कृत्वा श्रीचक्रदर्शनम् ॥
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