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श्रीरङ्गपट्टन-श्रीराम चलाचलेति द्विविधा प्रतिष्ठा जीवमन्दिरम् ।
न हो। रामसम्प्रदाय में इतिहास, धर्म और दर्शन का हयशीर्षपञ्चरात्र में श्रीमूर्तियों के विस्तृत लक्षण पाये __अद्भुत समन्वय है। सीता राम की पत्नी हैं, किन्तु जाते हैं । दे० श्रीहरिभक्तिविलास, १८१ विलास । वे आदिशक्ति और दिव्य श्री भी हैं । वे स्वर्गश्री हैं जो श्रीरङ्गपट्टन-कर्णाटक प्रदेश का प्रसिद्ध वैष्णव तीर्थ । कावेरी तप से प्राप्त हुई थीं। वे विश्व की चेतनाचेतन प्रकृति है नदी की धारा में तीन द्वीप है-आदिरङ्गम्, मध्यरङ्गम्
(देवी उपनिषद् २.२९४)। और अन्तरङ्गम् । श्रीरङ्गपट्टन ही आदिरङ्गम् है। यहाँ
रामावत सम्प्रदाय का मन्त्र 'रामाय नमः' अथवा भगवान् नारायण की शेषशायी श्रीमति है। कहते है कि
तान्त्रिक रूप में रां रामाय नमः' है। 'राम' का शाब्दिक यहाँ महर्षि गौतम ने तपस्या की थी और श्रीरङ्गमति
अर्थ है '(विश्व में) रमण करने वाला' अथवा 'विश्व को की स्थापना भी की थी।
अपने सौन्दर्य से मुग्ध करने वाला' । रामपूर्वतापनीयो
पनिषद् (१.११-१३) में इस मन्त्र का रहस्य बतलाया श्री राम-राम अथवा रामचन्द्र अयोध्या के सूर्यवंशी राजा
गया है : दशरथ के पुत्र थे । त्रेता युग में इनका प्रादुर्भाव हुआ
जिस प्रकार विशाल वटवृक्ष की प्रकृति एक अन्यन्त था । ये भगवान् विष्णु के अवतार माने जाते हैं । वैष्णव
सूक्ष्म बीज में निहित होती है, उसी प्रकार चराचर जगत् तो इनको परब्रह्म ही समझते हैं। भारत के धार्मिक
बीजमन्त्र 'राम' में निहित है । पद्मपुराण की लोमशइतिहास में विशेष और विश्व के धार्मिक इतिहास में भी
संहिता में कहा गया है कि वैदिक और लौकिक भाषा के इनका बहुत ऊँचा स्थान है। राम को मर्यादापुरुषोत्तम
समस्त शब्द युग-युग में 'राम' से ही उत्पन्न और उसी में कहते हैं जिन्होंने अपने चरित्र द्वारा धर्म और नीति की
विलीन होते हैं। वास्तव में वैष्णव रामावत सम्प्रदाय में मर्यादा की स्थापना की। उनका राज्य न्याय, शान्ति और
राम का वही स्थान है जो वेदान्त में ओम् का । तारसुख का आदर्श था। इसीलिए अब भी 'रामराज्य'
सार उपनिषद् (२.२-५) में कहा गया है कि राम की नैतिक राजनीति का चरम आदर्श है। रामराज्य वह
सम्पूर्ण कथा 'ओम्' की ही अभिव्यक्ति है : राज्य है जिसमें मनुष्य को त्रिविध ताप-आधिभौतिक,
"अ से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई है, जो रामावतार में आधिदैविक तथा आध्यात्मिक-नहीं हो सकते ।
जाम्बवान् (ऋक्षों के राजा) हुए। उसे विष्णु (उपेन्द्र) की इनका अवतार एक महान् उद्देश्य को लेकर हुआ था। उत्पत्ति हुई, जो सुग्रीव हुए (वानरों के राजा)। म से वह था आसुरी शक्ति का विनाश तथा दैवी व्यवस्था की
शिव का प्रादुर्भाव हुआ, जो हनुमान् हुए। सानुनासिक स्थापना। पिता द्वारा इनका वनवास भी इसी उद्देश्य से हुआ बिन्दु से शत्रुघ्न प्रकट हुए। ओम् के नाद से भरत का था एवं सीता का अपहरण भी इसी की सिद्धि के लिए। अवतरण हुआ। इस शब्द की कला से लक्ष्मण ने जन्म रावण वध भी इसीलिए हुआ । रामपूर्वतापनीयोपनिषद् लिया। इसकी कालातीत ध्वनि से लक्ष्मी का प्रादुर्भाव के ऊपर ब्रह्मयोगी के भाष्य (अप्रकाशित) में इसका एक हुआ, जो सीता हुई। इन सबके ऊपर परमात्मा विश्वपुरुष दूसरा ही उद्देश्य बताया गया है। वह है रावण का स्वयं राम के रूप में अवतरित हुए।" उद्धार । वैष्णव साहित्य में रावण पूर्व जन्म में विष्णु का
रामावत पूजा पद्धति में सीता और राम की युगल पार्षद माना गया है। एक ब्राह्मण के शाप से वह
मुर्तियाँ मन्दिरों में पधरायी जाती हैं। राम का वर्ण श्याम राक्षस योनि में जन्मा । उसको पुनः विष्णुलोक में भेजना
होता है । वे पीताम्बर धारण करते हैं। केश जूटाकृति भगवान् राम (विष्णु) का उद्देश्य था।
रखे जाते हैं । उनकी आजानु भुजाएँ तथा दीर्घ कर्णरामभक्ति का भारत में व्यापक प्रचार है। राम- कुण्डल होते हैं। वे गले में वनमाला धारण करते हैं, प्रसन्न पञ्चायतन में चारों भाई तथा सीता और उनके और दर्पयुक्त मुद्रा में धनुष-बाण धारण करते हैं । पार्षद हनुमान् की पूजा होती है । हनुमान् की मूर्ति तो अष्ट सिद्धियाँ उनके सौन्दर्य को बढ़ाती हैं। उनकी
राम की मूर्ति से भी अधिक व्यापक है। शायद ही ऐसा बायीं ओर जगज्जननी आदिशक्ति सीता की मूर्ति कोई गाँव या टोला हो जहाँ उनकी मूर्ति अथवा चबूतरा स्वतन्त्र अथवा राम की बायी जंघा पर स्थित होती है ।
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