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हरिव्रत-हाटकेश्वर (बड़नगर)
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पुरुषोत्तमाचार्य की पुस्तक 'वेदान्तरत्नमंजूषा' पर इन्होंने हरिहरनाथ का मन्दिर है। कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ विस्तृत संस्कृत व्याख्या लिखो है। धर्म प्रचार और संग- विशाल मेला होता है जिसमें देशदेशान्तर के लाखों लोग ठनार्थ इन्होंने अपने सुयोग्य शिष्य देश के संकटग्रस्त सम्मिलित होते हैं। वाराहपुराण में हरिहरक्षेत्र का स्थानों में नियुक्त किये थे, जिनमें इनके प्रधान शिष्य माहात्म्य पाया जाता है : स्वभूरामजी पंजाब की ओर सक्रिय रहे और धार्मिक ततः स पञ्चरात्राणि स्थित्वा वै विधिपूर्वकम् । कलह, हिंसा, कदाचार के निवारण में सफल हुए । आगे गोधनान्यग्रतः कृत्वा हरिक्षेत्र जगाम ह॥ चलकर मध्य, पूर्व, पश्चिम दिशाओं, तिरुपति, जगन्नाथपुरी, हरिणाधिष्ठितं क्षेत्र हरिक्षेत्र ततः स्मृतम् । किन्दुबिल्व बंगाल, द्वारका आदि स्थानों में इनकी ओर सदानन्दी शूलपाणिर्गोधनेन पुरस्कृतः ।। से अनेक मठ-मन्दिर स्थापित किए गए। हरिव्यासजी स्थितवास्तहिनादेव तत्क्षेत्र हरिहरात्मकम् । के एक प्रभावशाली शिष्य परशुरामदेव राजस्थान में देवानामटनाच्चैव देवाट इति संज्ञितम् । मुस्लिम फकीरों के आतंक को शान्त करने में अग्रसर
हलधर-बलराम अथवा बलदेव का पर्याय । इसका अर्थ हुए और सलीमशाह सूफी को अपना सेवक बना लिया ।
है 'हल धारण करने वाला' । इसका दूसरा नाम संकर्षण हरिव्यासदेव पन्द्रहवीं शती में हुए थे।
है, जो पाञ्चरात्र के चतुर्ग्रह के द्वितीय घटक हैं। हलधर हरिवत-(१) अमावस्या तथा पूर्णिमा के दिन मनुष्य
और संकर्षण का एक ही भाव है। को एकभक्त रहने का अभ्यास करना चाहिए। इससे
हल षष्ठी-भाद्र कृष्ण षष्ठी [निर्णयसिन्धु १२३] । कभी नरक में नहीं जाना पड़ता। उपर्युक्त दिवसों को
हवि (हविष्य)-हवनीय द्रव्य को हवि अथवा हविष्य व्रती को चाहिए कि वह भगवान् हरि की पुण्याह वाचन तथा 'जय' जैसे शब्दों से पूजाकर ब्राह्मण को प्रणाम करे
कहते हैं । इसके पर्याय घृत, तिल, चावल, सामान्नादि हैं। तथा ब्राह्मणों, अन्धों, अनाथों, दलित पतितों को भोजन हविष्य-यज्ञोपयोगी खाद्यान्न, जो कुछ निश्चित व्रतों में कराए।
ग्राह्य हैं। दे० कृत्यरत्नाकर ४००, तिथितत्त्व १०९, (२) जो मनुष्य द्वादशी (एकादशी) के दिन भोजन निणयासन्धु १०६ । का परित्याग करता है वह सीधा स्वर्ग सिधारता है। हस्तगौरी व्रत-भाद्र शुक्ल तृतीया को इस व्रत का अनु(वाराह पुराण )।
ष्ठान होता है । कृष्ण भगवान् ने कुन्ती को धन-धान्य हरिशयन-हरि (विष्णु का शयन-निद्रा)। यह आषाढ़
से परिपूर्ण राज्य की प्राप्ति के लिए इस व्रत को उपयोगी शुक्ल एकादशी को प्रारम्भ और कार्तिक शुक्ल एकादशी
बतलाया था। इसमें निरन्तर १३ वर्षी तक गौरी, हर को समाप्त होता है। यह चार महीने का समय हरिशयन
तथा हेरम्ब (गणेश) में ध्यान केन्द्रित करते रहना तथा का काल है। इस काल में व्रत उपवास पूजा आदि का
चौदहवं वर्ष में उद्यापन करना चाहिए। विधान है तथा उपनयन, विवाह आदि का निषेध है। हाटकेश्वर (बड़नगर)-गुजरात का प्रसिद्ध तीर्थस्थान । हरिश्चन्द्र-सूर्यवंश के अड़तीसवें राजा, जो त्रेता युग में भगवान् शंकर के तीन मुख्य लिङ्गों में एक हाटकेश्वर
हुए थे । ये अपनी सत्यनिष्ठा के लिए प्रसिद्ध थे। है। हाटकेश्वर गुर्जर नागर ब्राह्मणों के कुलदेवता हैं। हरिहर-हरि (विष्णु) और हर (शिव) की संयुक्त मूर्ति । आनर्तविषये रम्यं सर्वतीर्थमयं शुभम् । इनको वृषाकपी भी कहा जाता है । वामनपुराण (अध्याय
हाटकेश्वरजं क्षेत्र महापातकनाशनम् ॥ ५९) हरिहर मूर्ति का सुन्दर वर्णन है।
तत्र कमपि मासाद्धं यो भक्त्य पूजयेद्धरम् । हरिहर क्षेत्र-विहार प्रदेश का तीर्थविशेष । हरिहर स सर्वपापयुक्तोऽपि शिवलोके महीयते ।। (विष्णुशिव) का संयुक्त तीर्थस्थान। यह गङ्गा और अत्रान्तरे नरा येच निवसन्ति द्विजोत्तमाः । नारायणी (बड़ी गंडक) के संगम पर पटना के पास कृषिकर्मोद्यताश्चापि यान्ति ते परमां गतिम् ।। सोनपुर में स्थित है। तट पर हरिहरात्मक संयुक्त
(स्कन्द पुराण नागर खं० २७ ।)
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