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हारीत-हिन्दुत्व
हारीत-धर्मशास्त्रकर्ता एक ऋषि है याज्ञवल्क्य (१.४) ने धर्मशास्त्र प्रयोजकों में इनकी गणना की है।
मन्वत्रिविष्णुहारीतयाज्ञवल्क्योशनोऽङ्गिराः । यमापस्तम्बसंवर्ताः कात्यायनबृहस्पती ।। पराशरव्यासशङ्खलिखिता दक्षगौतमौ । शातातयो वसिष्ठश्च धर्मशास्त्रप्रयोजकाः ।। श्रीमद्भागवत में इनको पौराणिक कहा गया है :
त्रय्यारुणिः कश्यपश्च सावणिरकृतवणः ।
वैशम्पायनहारीतौ षडव पौराणिका इमे । हालेविद-कर्णाटक प्रदेश का प्रसिद्ध तीर्थस्थान । मैसूर के तीर्थों में भगवान् होयसालेश्वर का प्रमुख स्थान है । इन्हें राजा विष्णवद्धन ने प्रतिष्ठित किया था। यह मन्दिर दक्षिण के मन्दिरों में कला और संस्कृति की दृष्टि से निराला स्थान रखता है। हाहा-देवगन्धर्व विशेष । देवताओं में हाहा, हह, विश्वावसु, तुम्बरु, चित्ररथ आदि गन्धर्ववाचक हैं। इनका संगीत से विशेष सम्बन्ध है। हिन्दुत्व-भारतवर्ष में बसनेवाली प्राचीन जातियों का सामूहिक नाम 'हिन्दू' तथा उनके समष्टिवादी धर्म का भाव 'हिन्दुत्व' है। जब मुसलमान आक्रमणकारी जातियों ने इस देश में अपना राज्य स्थापित किया और बसना प्रारम्भ किया तब वे मुसलमानों से इतर लोगों को, अपने से पृथक् करने के लिए सामूहिक रूप से 'हिन्दू' तथा उनके धर्म को 'हिन्दू मजहब (धर्म) कहने लगे। यूरोपीयों और अंग्रेजों ने भी इस परम्परा को जारी रखा। उन्होंने भारतीय जनता को छिन्न-भिन्न रखने के लिए उसको दो भागों में बाँटा-(१) मुस्लिम तथा (२) गैर मुस्लिम अर्थात् 'हिन्दू' । इस प्रकार आधुनिक यात्रावर्णन, इतिहास, राजनीति, धर्म विवरण आदि में भारत की मुस्लिमेतर जनता का नाम 'हिन्दू' तथा उनके धर्म का नाम 'हिन्दू धर्म' प्रसिद्ध हो गया, यद्यपि भारतीय मुसलमान भी पश्चिम एशिया में हिन्दी' और अमेरिका में 'हिन्दू' कहलाते रहे। भारतीय जनता ने भी संसार में व्यापक रूप से अपने को अभिहित करनेवाले इन शब्दों को क्रमशः स्वीकार कर लिया।
इसमें सन्देह नहीं कि 'हिन्दू' शब्द भारतीय इतिहास में अपेक्षाकृत बहुत अर्वाचीन और विदेशी है। प्राचीन संस्कृत साहित्य में इसका प्रयोग नहीं मिलता । एक अत्यन्त
परवर्ती तन्त्रग्रन्थ, 'मेरुतन्त्र' में इसका उल्लेख पाया जाता है। इसका सन्दर्भ निम्नाङ्गित है :
पञ्चखाना सप्तमीरा नव साहा महाबलाः । हिन्दूधर्मप्रलोप्तारो जायन्ते चक्रवर्तिनः ।। हीनञ्च दूशयत्येव हिन्दुरित्युच्यते प्रियं । पूर्वाम्नाये नवशतां षडशीतिः प्रकीर्तिताः ॥
(मेरुतन्त्र, ३३ प्रकरण) उपर्युक्त सन्दर्भ में 'हिन्दू' शब्द की जो व्युत्पत्ति दी गयी है वह है 'हीनं दूषयति स हिन्दू' अर्थात् जो हीन (हीनता अथवा नीचता) को दूषित समझता ( उसका त्याग करता ) है, वह हिन्दू है। इसमें सन्देह नहीं कि यह योगिक व्युत्पत्ति अर्वाचीन है, क्योंकि इसका प्रयोग विदेशी आक्रमणकारियों के संदर्भ में किया गया है।
वास्तव में यह 'हिन्दू' शब्द भौगोलिक है । मुसलमानों को यह शब्द फारस अथवा ईरान से मिला था। फारसी कोषों में 'हिन्द' और इससे व्युत्पन्न अनेक शब्द पाये जाते हैं, जैसे हिन्दू, हिन्दी, हिन्दुवी, हिन्दुवानी, हिन्दूकुश, हिन्दसा, हिन्दसाँ, हिन्दुवाना, हिन्दुएचर्ख, हिन्दमन्द आदि । इन शब्दों के अस्तित्व से स्पष्ट है कि 'हिन्द' शब्द भूलतः फारसी है और इसका अर्थ 'भारतवर्ष' है । भारत फारस (ईरान) का पड़ोसी देश था। इसलिए वहाँ इसके नाम का बहुत प्रयोग होना स्वाभाविक था। फारसी में बलख-नगर का नाम 'हिन्दवार', इसके पास के पर्वत का नाम 'हिन्दूकुश' और भारतीय भाषा और संस्कृति के लिए 'हिन्दकी' शब्द मिलता है। इन शब्दों के प्रयोग से यह निष्कर्ष निकलता है कि फारसी बोलनेवाले लोग हिन्द ( भारत ) से भली-भांति परिचित थे और वे हिन्दुकुश तक के प्रदेश को भारत का भाग समझते थे । निस्सन्देह फारस के पूर्व का देश भारत ही 'हिन्द' था। अब प्रश्न यह है कि 'हिन्दू' शब्द फारसवालों को कैसे मिला। फारस के पूर्व सबसे महत्त्वपूर्ण भौगोलिक अवरोध एवं दृश्य 'सिन्धु नद' और उसकी दक्षिण तथा वामवर्ती सहायक नदियों का जाल है। पूर्व से सिन्धु में सीधे मिलनेवाली तीन नदियाँ वितस्ता ( झेलम ), परुष्णी ( रावी)
और शतद्रु ( सतलज) ( उपनदियों के साथ ) और पश्चिम से भी तीन सुवास्तु ( स्वात ) कुभा ( काबुल ) और गोमती ( गोमल ) हैं। इन छः प्रमुख नदियों के साथ सिन्धु द्वारा सिञ्चित प्रदेश का नाम 'हफ्तहेन्दु' (सप्तसिन्ध)
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