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संस्कारहीन-सगर
जाता है । यह अवधि ब्राह्मण के लिए सोलह वर्ष, क्षत्रिय ब्रह्मणश्च शिवस्यापि प्रह्लादस्य तथैव च । के लिए बाईस वर्ष और वैश्य के लिए चौबीस वर्ष है। गौतमस्य कुमारस्य संहिताः परिकीर्तिताः ॥
(२) अनगढ़, असंस्कृत व्यक्ति या वस्तु को भी संस्कार- __ कूर्मपुराण ( अ० १), स्कन्दपुराण ( शिवमाहात्म्य हीन कहा जाता है।
खण्ड, अ० १) में भी संहिताओं की सूचियाँ हैं । संस्मरण-संस्कारजन्य ज्ञान । तिथ्यादितत्त्व में कथन है :
सकुल्य-समान कुल में उत्पन्न अथवा सगोत्र । बौधायन ध्यायेन्नारायण नित्यं स्नानादिषु च कर्मसु ।
के अनुसार प्रपितामह, पितामह, पिता, स्वयं, सहोदर तद्विष्णोरिति मन ण स्नायादप्सु पुनः पुनः ।।
भाई, पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र-इनको अविभक्त दायाद अथवा गायत्री वैष्णवी ह्येषा विष्णोः संस्मरणाय वै ।
सपिण्ड कहते हैं। विभक्त दायादों को सकुल्य कहते हैं । संहार-(१) सृष्टि की समाप्ति, प्रलय । मनुस्मृति (१.८०)
अविभक्त दायादों के अभाव में सम्पत्ति इनको मिलती है । के अनुसार :
दे० दायतत्त्व तथा शुद्धितत्त्व । मन्वन्तराण्यसंख्यानि सर्गः संहार एव च ।
सकुल्यों के लिए बृहस्पति ने अशौच का विधान इस क्रीडन्निवैतत् कुरुते परमेष्ठी पुनः पुनः ।।
प्रकार बतलाया है : (२) अष्ट भैरवों में से एक का नाम :
दशाहेन सपिण्डास्तु शुध्यन्ति प्रेतसूतके । असिताङ्गो रुरुश्चण्डः क्रोध उन्मत्त एव च ।
त्रिरात्रेण सकुल्यास्तु स्नात्वा शुध्यन्ति गोत्रजाः ।। कपाली भीषणश्चैव संहारश्चाष्ट भैरवाः ।।
(शुद्धितत्व में उद्धृत) संहारमुद्रा (विसर्जनमद्रा)-धार्मिक क्रियाओं में विसर्जन सखीसम्प्रदाय-राम और कृष्ण के प्रेममार्गी भक्तों का की मुद्रा को संहारमुद्रा कहते हैं । यथा
एक उपसम्प्रदाय । इसके अनुयायी अपने को सीताजी अधोमुखे वामहस्ते ऊस्यिं दक्षहस्तकम् । या राधाजी की सखी मानकर राम या कृष्ण की उपासना क्षिप्राङ्गुलीरङ्गलिभिः संगृह्य परिवर्तयेत् ।। करते है। ये अपनी वेशभूषा प्रायः स्त्रियों की तरह रखते
प्रोक्ता संहारमुद्रेयमर्पणे तु प्रशस्यते ॥ हैं । रंगीन वस्त्र पहनते हैं, आभूषण धारण करते हैं, संहिता-सम्यक् अथवा पूर्वापर रूप में संग्रथित (संगृहीत) पाँवों में महावर लगाते हैं। अपना साम्प्रदायिक नाम भी साहित्यिक अथवा आचार-नियम सम्बन्धी सामग्री। स्त्रीवाचक रखते हैं, जैसे प्रेमा, ललिता, शशिकला संगहीत और सुसम्पादित वैदिक साहित्य को इसीलिए आदि । अयोध्या, जनकपुर, वृन्दावन इनके केन्द्र है। प्रायः संहिता कहते हैं जिसकी संख्या चार है-(१) ऋग्वेद उच्च श्रेणी के रसिक भक्त अपने सखीभाव को लोकाचार (२) यजुर्वेद (३) सामवेद और (४) अथर्ववेद । मन्वादि- से अलग गुप्त रखते हैं । प्रणीत धर्मशास्त्र ग्रन्थों अथवा स्मृतियों को भी संहिता सगर-सूर्यवंश के एक प्रसिद्ध राजा। इनकी उत्पत्ति की कहते हैं । सम्प्रदायों से सम्बद्ध ग्रन्थों को भी संहिता कहा कथा पद्मपुराण (स्वर्ग खण्ड, अध्याय १५) में इस प्रकार जाता है । पुराण भी संहिता कहे गये है । ब्रह्मवैवर्तपुराण दी हुई है : "सूर्यवंश में बाहु नाम के महान् राजा हुए। के श्रीकृष्णजन्म खण्ड ( अ० १३२) में संहिताओं की तालजङ्घ हैहयों ने उनके सम्पूर्ण राज्य का हरण कर गणना इस प्रकार है :
लिया । काम्बोज, पलव, पारद, यवन और शक इन पाँच एवं पुराणसंस्थानं चतुर्लक्षमुदाहृतम् । गणों ने हैहयों के लिए पराक्रम किया । राज्य का हरण हो अष्टादश पुराणानामेवमेव विदुर्बुधाः ॥ जाने पर राजा बाहु वन में चले गये। उनकी पतिव्रता एवञ्चोपपुराणानामष्टादश प्रकीर्तिताः । यादवी पत्नी गर्भिणी थी। उसकी सौत ने गर्भ को नष्ट इतिहासो भारतश्च वाल्मीकं काव्यमेव च ॥ करने के लिए उसको भोजन के समय गर ( विष ) दे पञ्चकं पञ्चरात्राणां कृष्णमाहात्म्यमुत्तमम् । दिया। यादवी के योगबल से वह गर्भ मरा नहीं और वासिष्ठं नारदीयञ्च कापिल गौतमीयकम् ।। देवताओं की अनुकम्पा से वह रानी भी नहीं मरी। वह परं सनत्कुमारीयं पञ्चरात्रञ्च पञ्चकम् । वन में पति की सेवा करती रही। राजा ने उस वन में पञ्चकं संहितानाञ्च कृष्णभक्तिसमन्विताम् ।। योग से अपने प्राण त्याग दिये। रानी पति की चिता
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