Book Title: Hindu Dharm Kosh
Author(s): Rajbali Pandey
Publisher: Utter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou

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Page 705
________________ स्नान-स्पर्श में स्नान कर लेता है उसको स्नातक कहते हैं । विद्या की विष्णुधर्मोत्तर पुराण आदि में इसका माहात्म्य पाया उपमा सागर से दी जाती है। जो इस सागर में अवगाहन जाता है। कर बाहर निकलता है वह स्नातक कहलाता है । स्नातक स्नापन सप्तमीव्रत-यह व्रत उन महिलाओं के लिए है तीन प्रकार के होते है-(१) विद्यास्नातक (२) व्रत- जिनके बालक शैशव काल में दिवंगत हो जाते हैं। दे० स्नातक और (३) उभयस्नातक । जो वेदाध्ययन तो पूरा भविष्योत्तर पुराण, ५२.१-४० । कर लेता है परन्तु ब्रह्मचर्य आश्रम के सभी नियमों का । ___ स्नेहवत-यह मासवत है । भगवान् विष्णु इसके देवता हैं । पूरा पालन किये बिना गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने की व्रती को आषाढ़ मास से चार मास तक तैलस्नान का अनुज्ञा मांगने जाता है उसको विद्यास्नातक कहते है । परित्याग कर पायस तथा घी का आहार करना चाहिए । जो ब्रह्मचर्य व्रत का पूरा पालन करता है परन्तु वेदाध्ययन व्रत के अन्त में तिल के तेल से परिपूर्ण एक कलश दान पूरा नहीं कर पाता है वह व्रतस्नातक है। जो विद्या में देना चाहिए । इस व्रत से व्रती सबका स्नेह-भाजन बन और व्रत दोनों का पूरा पालन करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश जाता है। करता है वह उभयस्नातक (पूर्णस्नातक) कहलाता है। स्पन्द-अङ्गविशेष का हलका कम्पन । विश्वास है कि इसका स्नान-नित्य, नैमित्तिक, काम्य भेद से स्नान तीन प्रकार शभाशुभ फल होता है। 'मलमासतत्त्व' में कथन है : का होता है । नैमित्तिक स्नान ग्रहण, अशौच आदि में चक्षुःस्पन्दं भुजस्पन्दं तथा दुःखप्रदर्शनम् । होता है। तीर्थों का स्नान काम्य कहा जाता है । नित्य शत्रूणाञ्च समुत्थानमश्वत्थ शमयाशु मे । स्नान प्रति दिनों का धार्मिक कृत्य माना गया है । ये तीन मत्स्य पुराण (२४१.३-१४) में इसके शुभाशुभ फल मुख्य स्नान हैं । इनके अतिरिक्त गौण स्नान भी हैं जो का विस्तार से वर्णन है। सात प्रकार के है, जिनका प्रयोग शरीर के अवस्थाभेद से स्पर्श-धार्मिक क्रियाओं में विविध अङ्गों के स्पर्श का किया जाता है : विधान पाया जाता है। सन्ध्योपासना में आचमन के (१) मान्त्र (मन्त्र से स्नान)। 'आपो हिष्ठा' आदि वेद पश्चात विभिन्न अङ्गों का स्पर्श किया जाता है। इसका मन्त्रों के द्वारा। उद्देश्य है उनको प्रबुद्ध करना अथवा उनकी ओर ध्यान (२) भौम ( मिट्टी से स्नान )। सूखी मिट्टी शरीर में केन्द्रित करना। उपनयन संस्कार में आचार्य शिष्य के मसलना। हृदय का स्पर्श कर उसके और अपने बीच में भावात्मक (३) आग्नेय ( अग्नि से स्नान )। पवित्र भस्म सारे सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है । इसी प्रकार विवाहशरीर में लगाना। संस्कार में पति पत्नी के हृदय का स्पर्श करता है और (४) वायव्य (वायु से स्नान) । गौओं के खुरों से उड़ी। कहता है कि मैं तुम्हारे हृदय की बात जानता रहूँगा और हुई धूल शरीर पर गिरने देना। तुम्हारा हृदय अपने हृदय में धारण करता हूं। आदि । (५) दिव्य (आकाश से स्नान) । धूप निकलते समय बहत से अभिचार कर्मों में स्पर्श का उपयोग होता है। वर्षा में स्नान करना । इसका उद्देश्य स्पृष्ट व्यक्ति को आदिष्ट अथवा आविष्ट (६) वारुण (जल से स्नान) । नदी-कूप आदि के जल करना होता है। से स्नान करना। धर्मशास्त्र में शुचिता की दृष्टि से बहुत सी वस्तुओं (७) मानस ( मानसिक स्नान )। विष्णु भगवान् के तथा व्यक्तियों का स्पर्श निषिद्ध बतलाया गया है । यथा, नामों का स्मरण करना। उच्छिष्ट के स्पर्श का बहुधा निषेध है । कुछ उदाहरण धर्म कार्य के पूर्व स्नान करना अनिवार्य बतलाया निम्नांकित हैं : गया है। न स्पृशेत् पाणिनोच्छिष्टं विप्रगोब्राह्मणानलान् । स्नानयात्रा-ज्येष्ठपूर्णिमा के दिन जगन्नाथपुरी में रूपो- न चानलं पदा वापि न देवप्रतिमा स्पृशेत् ।। त्सव को स्नानयात्रा कहते हैं। बह्मपुराण, स्कन्द पुराण, (कर्म पुराण, उपविभाग १६.३५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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