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हयपञ्चमी अथवा हयपूजावत-हरगौरी
के भिन्न भिन्न नामों को उच्चारण करते हए पूजन करना चाहिए तथा भिन्न भिन्न खाद्य पदार्थों का भोग लगाना चाहिए। वर्षान्त में सपत्नीक ब्राह्मण का सम्मान करना चाहिए। इसके परिणाम स्वरूप रोगों से मुक्ति, सात जन्मों तक वैधव्याभाव, सौन्दर्य तथा पुत्र-पौत्रादि की उपलब्धि होती है। पार्वती ने शंकर जी के शरीर में अर्द्ध भाग प्राप्त करने के लिए इस व्रत का आच किया था। हरगौरी-हर (शिव) के साथ गौरी ( पार्वती ) की मूर्ति को हरगौरी कहते हैं। यह अर्द्ध नारीश्वर-शिवमूर्ति का नाम है। कालिका पुराण ( अध्याय ४४ ) में इस स्वरूप का विस्तृत वर्णन पाया जाता है : ___ "देवी ने कहा, हे हर ! जिस प्रकार मैं सदा तुम्हारी छाया के समान अनुगत रहूँ और आप का साहचर्य सदा बना रहे उस प्रकार मेरे लिए आप को करना चाहिए। आपके साथ मैं सभी अङ्गों का संस्पर्श और नित्य आलिङ्गन का पुलक चाहती हूँ। आप को ऐसा ही करना योग्य है।"
तस्य मुर्दा समयवत् द्यौः सनक्षत्रतारका । केशाश्चास्याभवद् दीर्घा रवेरंशुसमप्रभा । कर्णावाकाशेपाताले ललाटं भूतधारिणी। गङ्गा सरस्वती श्रोण्यौ ध्रुवावास्तां महोदधी॥ चक्षुषी सोमसूर्यो ते नासा सन्ध्या पुनः स्मृता । प्रणवस्तस्य संस्कारो विद्युज्जिह्वा च निर्मिता। दन्ताश्च पितरो राजन् सोमपा इति विश्रुता। गोलोको ब्रह्मलोकश्च ओष्ठावास्तां महात्मनः ॥ ग्रीवा चास्याभवद्राजन् कालरात्रिगुणोत्तरा।
एतद्यशिरः कृत्वा नानामूर्तिभिरावृतम् ॥ देवीभागवत (प्रथम स्कन्ध, पञ्चम अध्याय) में हयग्रीवकी दूसरी कथा मिलती है। इसके अनुसार दैत्य का वध करने के लिए ही विष्णु ने हयग्रीव का रूप धारण किया था। हेमचन्द्र ने इस कथा का समर्थन किया है। (विष्णुवध्य दैत्यविशेषः)। किन्तु एक दूसरी परम्परा के अनुसार जब कल्पान्त में ब्रह्मा सो रहे थे तब हयग्रीव नामक दैत्य ने वेद का हरण कर लिया। वेद का उद्धार करने के लिए विष्णु ने मत्स्यावतार धारण किया और उसका वध किया ।
विद्या प्राप्ति के लिए वेदोद्धारक हयग्रीव भगवान् की उपासना विशेष चमत्कारकारिणी मानी गयी है। हयपञ्चमी अथवा हयपूजावत-चैत्र मास की पंचमी को इन्द्र का प्रसिद्ध अश्व, उच्चैःश्रवा समुद्र से आविर्भूत हुआ था । अतएव गन्धर्वो सहित (जैसे चित्ररथ, चित्रसेन जो वस्तुतः उच्चैःश्रवा के बन्धु-बान्धव ही हैं) उच्चैःश्रवा का संगीत, मिष्ठान्न, पोलिकाओं, दही, गुड़, दूध, चावल आदि से पूजन करना चाहिए। इसके फलस्वरूप शक्ति, दीर्घायु, स्वास्थ्य की प्राप्ति तथा युद्धों में सदा विजय होती है। हर-शिव का एक नाम । इसका अर्थ है पापों तथा सांसारिक तापों का हरण करने वाला (हरति पापान सांसारिकान् क्लेशाञ्च )। हरकालीव्रत-माघ शुक्ला तृतीया को इस व्रत का आयोजन करना चाहिए । इसकी दुर्गा जी देवता हैं । यह व्रत केवल महिलाओं के लिए है। व्रती जौ के हरे हरे अंकुरों में रात भर देवी का ध्यान करते हए खड़ा रहे। द्वितीय दिवस स्नान, ध्यान आदि से निवृत्त होकर देवी का पूजन कर भोजन ग्रहण करे। वर्ष में प्रति मास देवी
भगवान् शिव ने कहा, हे भामिनि : जिसकी तुम इच्छा करती हो वह मुझे भी रुचिकर है। उसका उपाय मैं कहता हूँ । यदि कर सकती हो तो करो । हे सुन्दरी ! मेरे शरीर का आधा तुम ग्रहण कर लो। मेरा आधा शरीर नारी और आधा पुरुष हो जाय । यदि तुम मेरा आधा शरीर नहीं ग्रहण कर सकती हो, तो हे सुन्दर मुखवाली ! तुम्हारा आधा शरीर में ही ग्रहण करूँगा। तुम्हारा आधा शरीर नारो और आधा पुरुष हो जाय । ऐसा करने में मेरी शक्ति है । तुम अपनी अनुज्ञा दो।
देवी ने कहा, हे वृषध्वज ! मैं ही आप के शरीर का आधा भाग ग्रहण करूँगी । किन्तु मेरी एक इच्छा है, यदि आप पसन्द करें हे हर ! उस प्रकार मैं जब आप के शरीर का आधा ग्रहण कर के स्थिर रहूँ और आधा शरीर छोड़ दूं तो दोनों सम्पूर्ण बने रहें। इस प्रकार यदि आधे भाग का हरण आप को पसन्द हो तो आप के शरीर का आधा भाग हे शम्भो ! मैं हरण करती हूँ।
शिव ने कहा, जैसा तुम करना चाहती हो, ऐसा ही नित्य हो। शरीर के आधे भाग का हरण तुम्हारी इच्छा के अनुसार ही हो ।
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