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सरस्वतीपूजजनविधि-सर्वजया
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रूप में ऋग्वेद में कल्पित की गयी है जो पवित्रता, शुद्धि, विवाहिता महिलाएं अपनी संगीत सम्बन्धी पुस्तकें तथा समृद्धि और शक्ति प्रदान करती थी । उसका सम्बन्ध अन्य। वीणा साथ-साथ लाती हैं तथा उनकी सरस्वती के समान देवताओं-पूषा, इन्द्र, और मरुत से बतलाया गया है। ही पूजा करती हैं। शिल्पी तथा दूसरे कारीगर लोग कई सूक्तों में सरस्वती का सम्बन्ध यज्ञीय देवता इडा और नवमी के दिन अपने-अपने औजार तथा यंत्रों को पूजते हैं। भारती से भी जोड़ा गया है। पीछे भारती सरस्वती से सर्ग-सृष्टि, जगत् की रचना । पुराणों का प्रथम वर्ण्य विषय अभिन्न मान ली गयी।
यही है । मनु० ने इसी अर्थ में इसका प्रयोग किया है : (२) पहले सरस्वती नदी देवता थी। परन्तु ब्राह्मण हिंसाहिसे मृदुक्रूरे धर्माधर्मावृतानृते । काल में ( दे० शतपथ ब्राह्मण, ३-९-१; ऐतरेय ब्राह्मण, यद्यस्य सोऽदधात् सर्गे तत्तस्य स्वयमाविशत् ।। ३.१ ) उसका वाक् ( वाग्देवता ) से अभेद मान लिया
(१.२९) गया। परवर्ती काल में तो वह विद्या और कला की श्रीमद्भागवत (३,१०.१४-२६) में सर्ग का विस्तत अधिष्ठात्री देवी हो गयी । पुराणानुसार यह ब्रह्मा की पुत्री वर्णन पाया जाता है। मानी गयी है।
सर्पविषापहापञ्चमी-श्रावण शुक्ल पंचमी को इस व्रत का सरस्वती का ध्यान निम्नांकित पद्य से प्रायः किया। अनुष्ठान होता है। व्रती को घर के दरवाजे के दोनों जाता है :
ओर गौ के गोबर से सर्प की आकृतियाँ बनाकर उनकी या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता गेहूँ, दूध, भुने हुए धान्य, दधि,दूर्वांकुरों तथा पुष्पादि से या वीणावरधारिणी भगवती या श्वेतपद्मासना । पूजा करनी चाहिए। इससे सर्प जाति सन्तुष्ट रहती है या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता तथा पूजक को सात पीढ़ियों तक उनका भय नहीं रहता। सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥ सर्पसत्र (नागयज्ञ)-सौ को नष्ट करने वाला यज्ञ । जन
सरस्वती का वाहन हंस है, जो क्षीर-नीर-विवेक का मेजय ने अपने पिता परीक्षित् की सर्पदंश से हुई मृत्यु का प्रतीक है। कहीं मयूर भी सरस्वती का वाहन बतलाया बदला लेने के लिए सर्पसत्र किया था। भागवत, १२,६. गया है । ब्रह्मवैवर्त पुराण के गणेश खण्ड (४०.६१-६७) १६-२८ । में सरस्वतीपूजन की विधि विस्तार के साथ वर्णित है। सर्वगन्ध-पूजनोपयोगी मुख्य गन्धद्रव्य । सुगन्धित पदार्थों सरस्वतीपूजनविधि-आश्विन शुक्ल के मूल नक्षत्र में का भिन्न भिन्न रूप से परिगणन किया गया है। इस सरस्वती का आवाहन करना चाहिए। प्रतिदिन सरस्वती सम्बन्ध में हेमाद्रि (१.४४) में वर्णन है । कपूर, चन्दन, की आराधना करते हुए श्रवण नक्षत्र को विसर्जन करना कस्तुरी तथा केसर समान भागों में होने पर सर्वगन्ध चाहिए (मूल नक्षत्र से चौथा नक्षत्र श्रवण है)। सरस्वती कहलाती हैं। की चार दिन पूजा होती है, जो साधारणतः सप्तमी से सर्वजया-स्त्रियों द्वारा किया जानेवाला एक व्रत । मार्गशीर्ष दशमी तक चलती है। वर्षकृत्यदीपिका के अनुसार इन से प्रारम्भ होकर बारह महीनों तक यह व्रत चलता है। दिनों न तो अध्ययन करना चाहिए न अध्यापन और इसमें सामान्य विधि से नवग्रहपूजन तथा प्रणव से अंगन लेखन ।
न्यास करके निम्नलिखित प्रकार से ध्यान करना चाहिए : माघ शुक्ल पंचमी (वसन्तपंचमी) को आगमोक्त "श्वेतवर्ण वृषारूढं व्यालयज्ञोपवीतिनम् । विधि से महाशक्ति सरस्वती की वार्षिक पूजा को विभूतिभूषिताङ्गञ्च व्याघ्रचर्मधरं शुभम् ।। जाती है।
पञ्चवक्त्र दशभुजं जटिलं चन्द्रचूडकम् । सरस्वतीस्थापना-आश्विन शुक्ल नवमी को पुस्तकों में त्रिनेत्रं पार्वतीयुक्तं प्रमथैश्च समन्वितम् ।। सरस्वती की स्थापना करनी चाहिए। दे० वर्ष-कृत्य
प्रसन्नवदनं देवं वरदं भक्तवत्सलम् ।" दीपिका, ९२-९३ तथा २६८-२६९ । तमिलनाडु में इस प्रकार ध्यान करके 'ॐ नमः शिवाय ह्रीं दुर्गाआबाल वृद्ध प्रकाशित तथा हस्तलिखित ग्रन्थ एकत्रित कर यै नमः' मन्त्र से अर्घ्य देकर और पुनः ध्यानकर 'ॐ गौरीविशेष प्रकार को सरस्वती पूजा करते हैं । बालिकाएँ तथा सहितहराय नमः' इस मन्त्र से पूजन करना चाहिये।
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