Book Title: Hindu Dharm Kosh
Author(s): Rajbali Pandey
Publisher: Utter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou

View full book text
Previous | Next

Page 696
________________ ६८२ सोमतीर्थ-सोमवारव्रत हए, हो जाओ”। दक्ष के शाप से सोम क्षय को प्राप्त हुआ। सोम के नष्ट होने पर देव, मनुष्य, पशु, वृक्ष और विशेष कर सब औषधियाँ क्षीण हो गयीं।""देव लोग चिन्तित होकर विष्णु की शरण में गये । भगवान् ने पूछा, 'कहो क्या करें ?' देवताओं ने कहा, 'दक्ष के शाप से सोम नष्ट हो गया ।' विष्णु ने कहा कि 'समुद्र का मन्थन करो।' ... "सब ने मिलकर समुद्र का मन्थन किया। उससे सोम पुनः उत्पन्न हुआ। जो यह क्षेत्रसंज्ञक श्रेष्ठ पुरुष इस शरीर में निवास करता है उसे सोम मानना चाहिए; वही देहधारियों का जीवसंज्ञक है । वह परेच्छा से पृथक् सौम्य मूर्ति को धारण करता है । देव, मनुष्य, वृक्ष ओषधी सभी का सोम उपजीव्य है । तब रुद्र ने उसको सकल ( कला सहित ) अपने सिर में धारण किया ।...." सोमतीर्थ-प्रभासतीथं का दूसरा नाम ( सोमेन कृतं तीर्थ सोमतीर्थम्)। महाभारत (३-८३.१९) में इसके माहात्म्य का वर्णन मिलता है । इस तीर्थ में स्नान करने से राजसूय यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है । वाराह पुराण (सौकरतीर्थ माहात्म्याध्याय ) में इसका विस्तृत वर्णन है। सोमयाग-जिस यज्ञ में सोमपान तथा सोमाहुति प्रधान अङ्ग होता है और जिसका सत्र तीन वर्षों तक चलता रहता है उसे सोमयाग कहते हैं । ब्राह्मण ग्रन्थों तथा श्रौतसूत्रों में इसका विस्तार से वर्णन है । ब्रह्मवैवर्त पुराण (श्रीकृष्णजन्मखण्ड, ६०-५४-५८ ) में इसका वर्णन इस प्रकार है : स्थान, अध्याय २९ ) में इसका विस्तृत वर्णन है। यह लता कश्मीर के पश्चिमोत्तर हिन्दूकुश की ओर से प्राप्त की जाती थी। सोमवंश-पराणों के अनुसार सोम (चन्द्रमा ) से उत्पन्न वंश सोमवंश अथवा चन्द्रवंश कहलाता है। चन्द्रमा के पुत्र बुध और मनु की पुत्री इला के विवाह से पुरूरवा का जन्म हुआ, जिसे ऐल ( इला से उत्पन्न ) कहते थे । इस उपनाम के कारण सोमवंश ऐलवंश भी कहलाता है ! इस वंश की आदि राजधानी प्रतिष्ठान (प्रयाग के पास झसी थी) गरुड पुराण ( अध्याय १४३-१४४ ) तथा अन्य कई पुराणों में सोमवंश के राजाओं की सूची पायी जाती है। सोमवती अमावस्या-सोमवार के दिन पड़नेवाली अमावस्या बड़ी पवित्र मानी जाती है। इस दिन लोग (विशेष रूप से स्त्री वर्ग) पीपल के वृक्ष के पास जाकर विष्णु भगवान की पूजा कर वृक्ष की १०८ परिक्रमाएँ करते हैं। 'व्रतार्क' ग्रन्थ के अनुसार यह व्रत बड़े बड़े धर्मग्रन्थों में वर्णित नहीं है, किन्तु व्यवहार रूप में ही इसका प्रचलन है । सोमवार व्रत-प्रति सोमवार को उपवासपूर्वक सायंकाल शिव अथवा दुर्गा का पूजन जिस व्रत में किया जाता है उसको सोमवार व्रत कहते हैं। स्कन्दपुराण ( ब्रह्मोत्तरखण्ड, सोमवार व्रत माहात्म्य, अध्याय ८) में इसका विवरण मिलता है : सोमवारे विशेषेण प्रदोषादिगुणर्युते । केवलं वापि ये कुर्युः सोमवारे शिवार्चनम् ।। न तेषां विद्यते किञ्चिदिहामुत्र च दुर्लभम् ॥ उपोषितः शुचिर्भत्वा सोमवारे जितेन्द्रियः । वैदिकैलौकिकवापि विधिवत्पूजयेच्छिवम् ॥ ब्रह्मचारी गृहस्थो वा कन्या वावि सभर्तका । विभर्तृका वा संपूज्य लभते वरमभीप्सितम् ।। सामान्य नियम है कि श्रावण, वैशाख, कार्तिक अथवा मार्गशीर्ष मास के प्रथम सोमवार से व्रत का आरम्भ किया जाय । इसमें शिव की पूजा करते हुए पूर्ण उपवास अथवा नक्त विधि से आहार करना चाहिए। वर्षकृत्य दीपिका में सोमवार व्रत तथा उद्यापन का विशद वर्णन मिलता है। आज भी श्रावण मास के सोमवारों को पवित्रतम माना जाता है। ब्रह्महत्याप्रशमनं सोमयागफलं मने । वर्ष सोमलतापानं यतमानः करोति च ।। वर्षमेंकं फलं भुङ्क्ते वर्षमेकं जलं मुदा । त्रैवार्षिकमिदं यागं सर्वपापप्रणाशनम् ॥ यस्य वार्षिकं धान्यं निहितं भूतिवृद्धये । अधिक वापि विद्येत स सोमं पातुमर्हति ।। महाराजश्च देवो वा यागं कर्तुमलं मुने । न सर्वसाध्यो यज्ञोऽयं बह्वन्नो बहुदक्षिणः ॥ सोमयाजी-सोम याग कर चुकने वाले । सोमयज्ञ संपादन करने के पश्चात् यजमान की यह उपाधि होती थी। सोमलता-एक ओषधिविशेष । यज्ञ में इसके रस का पान किया जाता था और आहुति होती थी। आयुर्वेद में भी यह बहुत गुणकारी मानी गयी है। सुश्रुत ( चिकित्सा- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722