Book Title: Hindu Dharm Kosh
Author(s): Rajbali Pandey
Publisher: Utter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou

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Page 694
________________ ७८० सेवापराष भगवान् विष्णु की सेवा का विस्तृत वर्णन है (दे० पद्म- (४) मृत मनुष्य को छू कर बिना स्नान किए विष्णु के पुराण, क्रियायोगसार, अध्याय ९-१०; वही अध्याय पास जाना। ११-१३) पुराणों में वणित सेवा प्रायः कर्मकाण्डीय है। (५) रजस्वला को छूकर विष्णु-मंदिर में प्रवेश करना । परन्तु पुष्टिमार्ग' की सेवा मुख्यतः भावनात्मक है । सेवा (६) मानव शव को स्पर्श कर बिना स्नान किए विष्ण के तीन स्थान हैं-(१) गुरु (२) सन्त और (३) प्रभु । प्रथम दो साधन और अंतिम साध्य है । गुरु-सेवा भक्ति का प्रथम सोपान है और अनिवार्य भी। उपनिषदों तक में (७) विष्णु का स्पर्श करते हुए अपान वायु छोड़ना । इसकी महिमा गायी गयी है। निर्गुण और सगुण दोनों (८) विष्णु कर्म करते हुए पुरीष-त्याग । भक्तिमार्गों में गुरु की बड़ी महिमा है । नानक ने जिस (९) विष्णु शास्त्र का अनादर करके दूसरे शास्त्रों की सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया, उसमें गुरु प्रथम पूजनीय है। प्रशंसा। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस के प्रारम्भ में (१०) मलिन वस्त्र पहनकर विष्णु कर्म करना । गुरु की बड़ी महिमा गायी है । सन्त-सेवा भक्ति का दूसरा (११) अविधान से आचमन कर विष्णु के पास जाना । चरण है। इसका माहात्म्य पुराणों में विस्तार से दिया (१२) विष्णु अपराध करके विष्णु के पास जाना । (१३) क्रोध के समय विष्णु का स्पर्श । हुआ है (दे० गरुडपुराण, उत्तरखण्ड, धर्मकाण्ड) । (१४) निषिद्ध पुष्प से विष्णु का अर्चन कराना । सेवा का तीसरा और अंतिम चरण है प्रभु-सेवा जो (१५) रक्त वस्त्र धारण कर विष्णु के पास जाना । साध्य है । यहाँ सेवा का अर्थ है भगवान् की स्वरूपसेवा । (१६) अन्धकार में दीपक के बिना विष्णु का स्पर्श । इसके दो प्रकार हैं-(१) क्रियात्मक और भावनात्मक । (१७) काला वस्त्र पहनकर विष्णु पूजाचरण । क्रियात्मक सेवा के भी दो प्रकार हैं-(१) तनुजा तथा (२) वित्तजा । जो सेवा शरीर से की जाती है उसको (१८) कौआ से अपवित्र वस्त्र पहन कर विष्णु-कर्म करना। तनुजा और जो सेवा सम्पत्ति के द्वारा की जाती है उसे वित्तजा कहते हैं। भावात्मक सेवा मानसिक होती है । (१९) विष्णु को कुत्ता का उच्छिष्ट अर्पित करना । इसमें सम्पूर्ण भाव से प्रभु के सम्मुख आत्मसमर्पण किया (२०) वराह मांस खाकर विष्णु के पास जाना। जाता है । इसके भी दो भेद हैं-(१) मर्यादा सेवा और (२१) हंसादि का मांस खाकर विष्णु के पास जाना । (२२) दीपक छूकर बिना हाथ धोये विष्णु का स्पर्श (२) पुष्टिसेवा। प्रथम में ज्ञान, भजन, पूजन, श्रवण अथवा कर्माचरण । आदि साधनों द्वारा भगवान् के सायुज्य की कामना की। जाती है । इसमें नियम-उपनियम, विधिनिषेध का पर्याप्त (२३) श्मशान जाकर बिना स्नान किए विष्णु के पास स्थान है। इसीलिए इसको मर्यादा सेवा कहते हैं । इसमें निर्बन्ध अथवा उन्मुक्त समर्पण नहीं। पुष्टिसेवा में प्रभु (२४) पिण्याक भोजन कर विष्ण के पास जाना । के सम्मुख विधि निषेध रहित उन्मुक्त समर्पण है । यह सेवा (२५) विष्णु को वराह मांस का निवेदन । साधनरूपा नहीं, साध्यरूपा है। (२६) मद्य लाकर, पीकर अथवा छुकर विष्णु मंदिर सेवापराष-'आचारतत्त्व' में बत्तीस प्रकार के सेवापराध जाना । बतलाये गये हैं। भगवान की पूजा के प्रसंग में इनका (२७) दूसरे के अशुचि वस्त्र को पहनकर विष्णु कर्मापरिवर्जन आवश्यक है : चरण । (१) भगवद्भक्तों का क्षत्रिय सिद्धान्न भोजन । (२८) विष्णु को नवान्न न अर्पित कर भोजन करना । (२) मल-मूत्र त्याग, स्त्री सेवन के बाद बिना स्नान (२९) गन्ध-पुष्प दिए बिना धूपदान करना । किए विष्णुमति के पास जाना। (३०) उपानह पहनकर विष्णु-मंदिर में प्रवेश । (३) अनिषिद्ध दिन में बिना दन्तधावन किए विष्णु के (३१) भेरी शब्द के बिना विष्णु का प्रबोधन । पास पहुँचना। (३२) अजीर्ण होने पर विष्णु का स्पर्श । जाना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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