Book Title: Hindu Dharm Kosh
Author(s): Rajbali Pandey
Publisher: Utter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou

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Page 668
________________ ६५४ सदाचारस्मृति-सद्यःशौच है । उस देश में अन्तराल सहित चारों वर्णी का परम्परा- सकती । महाभारत (२.७९४) में गण्डकी और सदानीरा गत जो आचार है वह सदाचार कहलाता है। ] को अलग-अलग माना गया है। किन्तु यहाँ शायद गण्डकी धर्म के प्रमुख चार स्रोतो में तीसरा सदाचार है : का तात्पर्य छोटी गण्डक से है, जो उत्तर प्रदेश के देवश्रुतिः स्मतिः सदाचारः स्वस्य च प्रियमात्मनः । रिया जिले में बहती है। सदानीरा का एक नाम नारायणी एतच्चतुर्विध प्राहुः साक्षाद् धर्मस्य लक्षणम् ।। या शालग्रामी भी है । वर्षाऋतु में अन्य नदियाँ रजस्वला (मनुस्मृति) होने के कारण अपवित्र रहती हैं, किन्तु इसका जल [ श्रुति, स्मति, सदाचार और अपने आत्मा को प्रिय, सदा पवित्र रहता है। अतः यह सदानीरा कहलाती है । यह चार प्रकार का साक्षात् धर्म का लक्षण कहा यह पटना के पास गंगा में मिल जाती है। गया है।] सदापूण-ऋग्वेदोक्त ( ५.४४.१२ ) एक ऋषि । ___ कालिकापुराण (अध्याय ८६), वामनपुराण (अध्याय सदाशिव ब्रह्मेन्द्र-भट्टोजिदीक्षित के समकालीन एक विद्वान् १४), पद्मपुराण (स्वर्ग खण्ड, अध्याय २९,३०,३१) और संन्यासी । संभवतः ये काञ्ची कामकोटि पीठ के महाधीश्वर मार्कण्डेयपुराण के सदाचाराध्याय में सदाचार का विस्तृत भी थे । इनके रचित ग्रन्थ गुरुरत्नमालिका में ब्रह्मविद्यावर्णन पाया जाता है। भरणकार स्वामी अद्वैतानन्द का उल्लेख पाया जाता है। सदाचारस्मृति-मध्वाचार्य द्वारा रचित एक ग्रन्थ । इसमें सदाशिव स्वामी ने अद्वैतविद्याविलास, बोधार्यात्मनिर्वेद, माध्व साम्प्रदायिक वैष्णवों के आचारों का वर्णन और गुरुरत्नमालिका, ब्रह्मकीर्तनतरङ्गिणी आदि ग्रन्थों की विवेचन है। रचना की थी। सदानन्द-अद्वैत दर्शन के एक आचार्य अद्वैतानन्द पन्द्रहवीं सदुक्तिकर्णामृत-बङ्गदेशीय वैष्णव श्रीधरदास द्वारा प्रस्तुत शती में हुए थे, जिन्होंने ब्रह्मसूत्र के शाङ्कर भाष्य पर स्तुतियों का एक संग्रह ग्रन्थ । इसका रचनाकाल १२०५ भरण नामक भाष्य पद्य में लिखा। अद्वैतानन्द ई० है। इसमें जयदेव के कुछ पद्य भी संगृहीत हैं। के शिष्य सदानन्द थे, जिन्होंने गद्य में वेदान्तसार सद्यःशद्धि-सामान्यतः मरणाशौच और जननाशौच में नामक ग्रन्थ लिखा। यह शाङ्कर वेदान्त की अच्छी शुद्धि बारह दिनों के पश्चात् होती है । परन्तु किन्हीं भूमिका प्रस्तुत करता है परन्तु इस पर सांख्य का प्रभाव परिस्थितियों में सद्यः (तुरन्त) शुद्धि हो जाती है । स्पष्ट है। गरुडपुराण (अध्याय १०७) के अनुसार : सदानन्द योगीन्द्र-इन्होंने वेदान्तसार नामक ग्रन्थ की देशान्तरमृते बाले सद्यः शुद्धिर्यतौ मृते ।' रचना की। इनका जीवन काल सोलहवीं शती का [देशान्तर में मरने पर, बालक की मृत्यु पर तथा उत्तरार्द्ध है। वेदान्तसार के ऊपर नृसिंह सरस्वती की संन्यासी की मृत्यु पर सद्यः शुद्धि हो जाती है। ] इसका सुबोधिनी नामक टीका है जिसका रचनाकाल शक सं० कारण यह है कि प्रथम और द्वितीय का परिवार से १५१८ है। वेदान्तसार अद्वैतवेदान्त का अत्यन्त सरल सम्बन्ध नहीं रहता है। द्वितीय का व्यक्तित्व अविकसित प्रकरण ग्रन्थ है। इस पर कई टीकाएँ लिखी गयी है। और उसका परिवार में अभिनिवेश प्रायः नहीं होता । इस ग्रन्थ से मुमुक्षुओं का बहुत उपकार हुआ है । सदानन्द । सद्यःशौच-सामाजिक आवश्यकता और कुछ विशेष योगीन्द्र का एक ग्रन्थ शङ्करदिग्विजय भी है जो अभी कारणों से कुछ वर्गों और व्यक्तियों का शौच (शुद्धि) नागराक्षरों में प्रकाशित नहीं है । दे० सदानन्द । तुरन्त मान लिया जाता है। गरुडपुराण (अध्याय १०७) सदानीरा-शतपथ ब्राह्मण (१.४.१.१४ ) के अनुसार में कथन है : यह कोसल और विदेह के बीच सीमा बनाती थी। शिल्पिनः कारवो वैद्याः दासीदासाश्च भृत्यकाः । वेबर इसको गण्डकी ( बड़ी गंडक ) मानते हैं, जो ठीक अग्निमान् श्रोत्रियो राजा सद्यः शौचाः प्रकीर्तिताः ।। प्रतीत होता है । कुछ लोगों ने इसको करतोया माना है [ शिल्पी लोग, बढ़ई, वैद्य, दासी, दास, भृत्य, यज्ञ (इम्पीरियल गजेटियर ऑफ इंडिया, पृ १५,२४) । परन्तु करने वाला, श्रोत्रिय और राजा ये तुरन्त शौच वाले (शुद्ध) करतोया बहुत दूर पूर्व में होने से सदानीरा नहीं हो माने जाते हैं ।] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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