Book Title: Hindu Dharm Kosh
Author(s): Rajbali Pandey
Publisher: Utter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou

View full book text
Previous | Next

Page 663
________________ सती ___ इस सम्प्रदाय का पुनः संगठन १७५० ई० के लगभग जगजीवन दास के द्वारा हुआ, जो बाराबंकी जिले (उ.प्र.) के कोटवा नामक स्थान के निवासी थे। ये योगी और कवि थे । इन्होंने हिन्दी में पदों की रचना की। इनके शिष्य दुलन दास हुए। ये भी कवि थे। ये आजीवन रायबरेली जिले में रहे। १८२० और १८३० ई० के बीच छत्तीसगढ़ के एक चमार जातीय सन्त गाजीदास ने फिर इरा सम्प्रदाय का पुनरुत्थान किया। इस नवोत्थित धर्म का प्रचार विशेषकर चमारों और अन्य असवर्ण लोगों में ही हआ इस सम्प्रदाय में निम्न वर्ण के लोग थे । जैसा कि ऊपर कहा गया है, इस सम्प्रदाय के अनुयायी एक सत्यनाम (अरूप, निर्गुण ईश्वर) के उपासक हैं । इनमें अवतार और मूर्तिपूजा वजित है । भोजन में ये शाकाहारी है और इनमें मद्य और मांस का निषेध है। ये उन पदार्थों का भी सेवन नहीं करते जो आकृति में रक्त अथवा मांस की तरह दिखाई पड़ते हैं। कुछ लोगों के अनुसार इनमें गात्री, क्रिया की साधना होती थी, जिसके अनुसार ये शारीरिक मलों से युक्त भोजन करते थे । परन्तु भट्टा- चार्य ने इस मत का खण्डन किया है। छत्तीसगढ़ के सत- नामियों में एक धार्मिक प्रथा के रूप में स्त्रियों में शिथिल आचार देखा जाता था जो अब प्रायः बन्द हो गया है। इनके कई वर्गों में मूर्तिपूजा की प्रथा भी जारी हो गयी है, जो परम्परागत हिन्दू धर्म का प्रभाव है। इनकी कुछ गन्दी प्रथाएँ आदिम काल के अविकसित जीवन के अव- शेष है जो अभी तक पूर्णतः नष्ट नहीं हो पाये हैं। सती-(१) सत् अथवा सत्य पर दृढ़ रहनेवाली । यह शिव की पत्नी का नाम है। पुराणों में इनकी कथा विस्तार से दी हुई है । ये दक्ष प्रजापति की कन्या थीं। इनका विवाह शिव के साथ हुआ था। एक बार दक्ष ने यज्ञ का अनुष्ठान किया। उन्होंने सभी देवताओं को निमन्त्रित कर उनका भाग दिया किन्तु शिव को नहीं निमन्त्रित किया। जब सती को अपने पिता के यज्ञानुष्ठान का पता लगा तो उन्होंने शिव से अपने पिता के यहाँ जाने का आग्रह किया । शिव ने बिना निमन्त्रण के जाना अस्वीकार कर दिया। उनके मना करने पर भी सती अपने पिता के यहाँ गयीं। वहाँ अपने पति के अपमान से बहुत दुःखी हुई और अपना शरीर त्याग कर दिया । इस घटना का समाचार पाकर शिव बहुत क्रुद्ध हुए। उन्होंने अपने गणों को यज्ञ विध्वंस करने के लिए भेजा। स्वयं वे सती के मृत शरीर को लेकर और सन्तप्त होकर संसार में घूमते रहे। जहाँ-जहाँ सती के अङ्ग गिरे वहाँ तीर्थ बन गये । दूसरे जन्म में सती ने हिमालय के यहाँ पार्वती के रूप में जन्म लिया और पुनः उनका शिव के साथ विवाह हुआ, जिसका काव्यमय वर्णन कालिदास ने कुमारसंभव में किया है। (२) प्रचलित अर्थ में सती वह स्त्री है जो सच्चे पतिव्रत का पालन करती थी और पति के मरने पर उसकी चिता पर अथवा अलग चिता पर जलकर उसका अनुगमन करती थी । यह प्रथा प्राचीन भारत में प्रचलित थी। परन्तु अब यह विधि के द्वारा वर्जित है, कभी-कभी इसके उदाहरण विधि का भंग करते हुए सुनाई पड़ते हैं। अन्य देशों में, जहाँ स्त्रियाँ पुरुषों की सम्पत्ति समझी जाती थीं, मृत पति के साथ वे समाधि में चुन दी जाती थीं । परन्तु भारत के प्राचीनतम साहित्य में इस प्रकार का उल्लेख नहीं पाया जाता । ऐसा कोई वैदिक सूक्त अथवा मन्त्र नहीं मिलता जिसमें मत पति की चिता पर विधवा के सती होने की चर्चा हो । गृह्यसूत्रों में, जिनमें अन्त्येष्टि का विस्तृत वर्णन पाया जाता है, सती होने का कोई विधान नहीं है । ऐसा लगता है कि किसी आर्येतअवथा विदेशी सम्पर्क के कारण यह प्रथा भारत में प्रचलित हई। धर्मसूत्रों में से केवल विष्णुधर्मसूत्र में सतीप्रथा का वैकल्पिक विधान है (मृते भर्तरि ब्रह्मचर्य तदन्वारोहणं वा)। २५.१४ : मिताक्षरा, याज्ञ० १.८८ के भाष्य में उद्धृत) । मनुस्मृति में कहीं भी सती का उल्लेख नहीं पाया जाता। रामायण (उत्तर, १७.१५) में इसका केवल एक उदाहरण पाया जाता है । इसके अनुसार एक ब्रह्मर्षि की पत्नी अपने पति की चिता पर सती हुई। महाभारत के अनुसार युद्ध में बहुसंख्यक लोग मारे गये, किन्तु सती के उदाहरण बहुत कम हैं । माद्री पाण्डु के मरने पर उनकी चिता पर सती हो गयी (आदि०,९५.६५) । वसुदेव की चार पत्नियाँ-देवकी, भद्रा, रोहिणी और मदिरा-पति की चिता पर सती हुईं (मुसल०, ७.१८) । कृष्ण की कुछ पत्नियाँ उनके शव के साथ सती हुईं। किन्तु सत्यभामा तपस्या करने वन चली गयी (मुसल, ७.७३-७४) । ऐसा लगता है कि सती प्रथा मुख्यतः क्षत्रियों में ही प्रचलित थी और वह भी बहुन व्यापक नहीं थी। कौरवों की पत्नियों के सती होने का उल्लेख नहीं है। परवर्ती स्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722