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ततः सा कालिका देवी योगनिद्रा जगन्मयी । पूर्वत्यक्तसतीरूपा जन्मार्थ मेनकां ययौ ॥ समयस्यानुरूपेण मेनकाजठरे शिवा । सम्भूय च समुत्पन्ना सा लक्ष्मीरिव सागरात् ॥ वसन्तसमये देवी नवम्यां मृगयोगतः । अर्धरात्री समुत्पन्ना गङ्गेव शशिमण्डलात् । तान्तु दृष्ट्वा यथा जातो नीलोत्पलदलानुगाम् ।
सामेकादेवी मुदमाषातिविता || देवाश्च हर्षमतुलं प्रापुस्तत्र मुहुर्मुहुः ॥ आदि (कालिकापुराण ४० अध्याय)
तन्त्र ग्रन्थों में श्यामापूजा का विस्तृत विधान है । दे० कालीतन्त्र, वीरतन्त्र, कुमारीकल्प, तम्बसार, गोप्य गोप्य - लीलागम आदि ।
श्रवण - नवधा भक्ति का एक प्रकार । भगवान् की कीर्ति को सुनना 'श्रवण' कहलाता है ।
(२) मनुस्मृति ( ८.७४) के अनुसार समक्ष दर्शन और श्रवण दोनों से साक्ष्य सिद्ध होता है।
श्राद्ध – श्रद्धापूर्वक शास्त्रविधि से पितरों की तृप्ति के लिए किया गया धार्मिक कृत्य । इसका लक्षण इस प्रकार वर्णित है :
संस्कृतव्यञ्जनादयश्च पयोदधिघृतान्वितम् । श्रद्धया दीयते यस्मात् श्राद्धं तेन निगद्यते ॥ मनु के अनुसार धाद्ध पाँच प्रकार का है:
नित्यं नैमित्तिकं काम्यं वृद्धिश्राद्धं तथैव च । पार्वणञ्चेति मनुना श्राद्धं पञ्चविधं स्मृतम् ॥ विश्वामित्र के अनुसार बाढ़ बारह श्राद्ध होता है :
नित्यं नैमित्तिकं काम्यं वृद्धिश्राद्धं सपिण्डनम् । पार्वणचेति विज्ञेयं गोष्ठयां शुद्धपर्थमष्टमम् ॥ कर्मा नवमं प्रोक्तं दैविकं दशमं स्मृतम् । यात्रार्थेकादशं प्रोकं पुष्ट्यर्थ द्वादशं स्मृतम् ॥ भविष्यपुराण में इन श्राद्धों का निम्नलिखित विवरण पाया जाता है :
प्रकार का
१. नित्य बाजो प्रति दिन श्राद्ध किया जाता है उसे नित्य श्राद्ध कहते हैं ।
२. नैमित्तिक - एक ( पितृ) के उद्देश्य से जो श्राद्ध (एकोद्दिष्ट) किया जाता है उसे नैमित्तिक कहते हैं ।
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श्रवण- श्री
इसको अदेव रूप से किया जाता है और इसमें अयुग्म (विषम) संख्या के ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है ।
३. काम्य धाखकिसी कामना के अनुकूल अभि प्रेतार्थ सिद्धि के लिए जो धाद्ध किया जाता है उसे काम्य कहते हैं ।
४. पार्वण श्राद्ध-पार्वण (महालया अमावस्या के विधान से जो धाद्ध किया जाता है उसे पार्वण श्राद्ध कहते हैं।
५. वृद्धि श्राद्ध वृद्धि (संतान, विवाह) में जो श्राद्ध किया जाता है उसे वृद्धि श्राद्ध कहते हैं ।
६. प्रेत को पितरों के साथ मिलित करने के लिए जो श्राद्ध किया जाता है उसे सपिण्डन कहते हैं ।
७-१२. शेष नित्य श्राद्ध के समान होते हैं।
दे० कूर्म, वराह (श्राद्धोत्पत्तिनामाध्याय), विष्णु पुराण अंश, १३ अध्याय), गरुड पुराण ( ९९ अध्याय) । श्रावणी श्रवण नक्षत्र से युक्त श्रावणमास की पूर्णिमा को श्रावणी कहते हैं । यह पवित्र तिथि मानी जाती है । प्राचीन काल में शैक्षणिक सत्र इसी समय से प्रारम्भ होता था। इस दिन धावणी कर्म अथवा उपाकर्म किया जाता था, जिसके पश्चात् अपनी-अपनी शाखा का वैदिक अध्ययन प्रारम्भ होता था । आजकल श्रावणी के दिन रक्षाबन्धन की प्रथा चल गयी है, जिसका उद्देश्य है किसी महान् त्याग के लिए अपने सम्बन्धी मित्रों अथवा यजमानों को प्रतिबद्ध (प्रतिद्युत) करना । धावस्ती - उत्तर प्रदेश में गोंडा-बहराइच जिलों की सीमा पर स्थित बौद्ध तीर्थस्थान । गोंडा-बलरामपुर से १२ मील पश्चिम आज का सहेत महेत ग्राम ही बावस्ती है। प्राचीन काल में यह कोसल देश की दूसरी राजधानी थी। भगवान् राम के पुत्र लव ने इसे अपनी राजधानी बनाया था । श्रावस्ती बौद्ध, जैन दोनों का तीर्थ है । तथागत दीर्घ काल तक श्रावस्ती में रहे थे। यहाँ के श्रेष्ठी अनाथपिण्डिक ने असंख्य स्वर्णमुद्राएँ व्यय करके भगवान् बुद्ध के लिए जेतवन विहार बनवाया था। अब यहाँ बौद्ध धर्मशाला, मठ और मन्दिर हैं ।
श्री - ( १ ) लक्ष्मी ( श्रयति हरि या), विष्णुपत्नी ।
(२) यह देवताओं और मानवों के लिए सम्मानसूचक विशेषण शब्द है :
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'देवं गुरुं गुरुस्थानं क्षेत्र क्षेत्राधिदेवताम् । सिद्धं सिद्धाधिकारांश्च धीपूर्व समुदीरयेत् ॥'
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