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षष्टी-षोडसी
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है । वार्षगण्य ने षष्टितन्त्र नामक ग्रन्थ लिखा था । इसका को एक बार भोजन कर और त्रयोदशी को रात में भोजन अर्थ है 'साठ प्रबन्ध' । यह ग्रन्थ अभी तक उपलब्ध नहीं है। कर, चतुर्दशी को महामाया को विधानतः जगाकर गीत, षष्ठी-कात्यायनी देवी का एक पर्याय । षोडश मातृकाओं में बादित्र, निर्घोष और नाना प्रकार के नैवेद्य से पूजा करे । एक मातृका का भी यह नाम है । यह प्रकृति की छठी कला दूसरे दिन बुद्धिमान साधक को अयाचित उपवास करना है। इसको स्कन्द की भार्या भी कहा गया है। ब्रह्मवैवर्त चाहिए । इस प्रकार व्रत करना चाहिए जब तक कि नवमी पुराण के प्रकृतिखण्ड (प्रथम अध्याय) में इसके स्वरूप
आ जाय । ज्येष्ठा में सम्यक् प्रकार से अर्चना कर मूल में आदि का वर्णन इस प्रकार पाया जाता है :
प्रतिपूजन करना चाहिए। उत्तरा में अर्चना कर श्रवण में "हे नारद ! प्रकृति की अंशस्वरूप जो देवसेना है वह विसर्जन करना चाहिए । मातृकाओं में पूज्यतम है और षष्ठी नाम से प्रसिद्ध है। षोडश मातृका-मातृकाओं अथवा देवियों की (विशेष प्रकार शिशुओं का प्रत्येक अवस्था में पालन करने वाली है। में) संख्या सोलह मानी गयी है। 'दुर्गोत्सवपद्धति' में यह तपस्विनी और विष्णुभक्त है, कार्तिकेय की कामिनी सोलह मातृकाओं को नमस्कार किया गया है (गौर्यादिभी है। प्रकृति के छठे अंश का रूप है, इसलिए इसे षोडशमातकाभ्यो नमः )। श्राद्धतत्त्व में उनके नाम इस षष्ठी कहते है । पुत्र-पौत्र की देनेवाली और तीनों जगत प्रकार आते है : की धात्री है। यह सर्व सुन्दरी, युवती, रम्या और बरा- गौरी पद्मा शची मेधा सावित्री विजया जया । बर अपने पति के पास रहने वाली है। शिशुओं के स्थान देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोकमातरः ।। में परमा वृद्धरूपा और योगिनी है। ससार में बारहों शान्तिः पुष्टि तिस्तुष्टिरात्मदेवतया सह । महीने इसकी बराबर पूजा होती है। शिशु उत्पन्न होने आदौ विनायकः पूज्य० अन्ते च कुलदेवता ।। के छठे दिन सूतिकागार में इसकी पूजा होती है। इसी ये सब शिव, विष्णु, इन्द्र, ब्रह्मा, अग्नि, कार्तिकेय प्रकार इक्कीसवें दिन भी इसकी पूजा कल्याण करने वाली आदि प्रमुख देवताओं की पत्नियाँ हैं । होती है। यह बराबर नियमित और नित्य इच्छानुसार षोडशत्विक क्रतु--षोडश ऋत्विकों (याज्ञिकों) द्वारा किया आहूत की जा सकती है, यह सदा मातृरूपा, दयारूपा और जाने वाला यज्ञविशेष। यह ज्योतिष्टोम यज्ञ अथवा रक्षणरूपा है । यह जल, स्थल और अन्तरिक्ष में और यहाँ बारह दिनों में पूरा होने वाला सत्रयाग है। षोडश तक कि स्वप्न में भी शिशओं की रक्षा करने वाली है।" ऋत्विजों के नाम इस प्रकार है : इसकी उत्पत्ति और विस्तृत कथानक के लिए दे० स्कन्द
(१) ब्रह्मा (२) ब्राह्मणाच्छंसी (३) आग्नीघ्र (४) पुराण । षष्ठीकर्म के लिए दे० राजमार्तण्ड, ब्रह्मवैवर्त,
पोता (५) होता (६) मैत्रावरुण (७) अच्छावाक् (८) विष्णुधर्मोत्तर, ज्योतिस्तत्त्व आदि।
ग्रावस्तोता (९) अध्वर्यु (१०) प्रतिप्रस्थाता (११) नेष्टा षष्ठीवर-उत्कल देश के एक विद्वान्, जिन्होंने महाभारत
(१२) उन्नेता (१३) उद्गाता (१४) प्रस्तोता (१५) प्रतिका अनुवाद उडिया भाषा में किया । इनका समय तेरहवीं
हर्ता और (१६) सुब्रह्मण्य ।
उपर्युक्त में से प्रथम चार सर्ववेदीय, द्वितीय चार शती के लगभग है।
ऋग्वेदीय, तृतीय चार यजुर्वेदीय और चतुर्थ चार सामषोडश वान-श्राद्ध आदि धार्मिक कृत्यों में सोलह प्रकार
वेदीय होते है। के दानों का वर्णन पाया जाता है । दे० शुद्धितत्त्व ।
षोडशी-(१) एक यज्ञपात्र का नाम । अतिरात्र यज्ञ का षोडशभुजा-दुर्गा का एक पर्याय, अर्थ है 'सोलह भुजा- सोमपात्र । वाली' । कालिकापुराण (अ० ५९) में षोडश भुजा-पूजन (२) बारह महाविद्याओं में से एक विद्या का नाम । का विधान पाया जाता है :
वैसे प्रायः दस महा विद्याएँ ही प्रसिद्ध हैं। इनके नाम ___ "जब षोडशभुजा महामाया का दुर्गातन्त्र से पूजन निम्नांकित हैं : करना चाहिए, नब उसकी विशेष बात सुनिए । कृष्ण पक्ष काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी । की कन्या राशि की एकादशी को उपवास करके, द्वादशी भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा ॥
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