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शिवदृष्टि-शिवयोगयुक्तशिवरात्रिव्रत
चतुर्दशी को उपवास का विधान है। शंकर तथा उमा की यायी था। इस पंथ में निराकार ब्रह्म की उपासना होती श्वेत कमल तथा गन्धाक्षतादि से चरणों से प्रारम्भ कर है और इनके अनुयायी शिवनारायण को ईश्वर का अवसिरपर्यन्त पूजा करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त सभी तार मानते हैं। चतुर्दशियों को व्रत का आयोजन हो सकता है। मार्गशीर्ष शिवपवित्रव्रत-आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन शिव की आराधना मास से प्रारम्भ कर बारह महीनों तक भिन्न-भिन्न नामों करनी चाहिए। इस दिन शिवप्रतिमा को यज्ञोपवीत से शिवजी को प्रणामाञ्जलि देनी चाहिए। वर्ष के प्रति (पवित्र सूत्र) पहनाया जाय तथा शिवभक्तों को भोजन मास में व्रती क्रमशः निम्न वस्तुओं का सेवन करे-गोमूत्र, कराया जाय । पुनः कार्तिक की पूर्णिमा को शिव की गोमय, गोदुग्ध, गोदधि, गोघृत इत्यादि तथा प्रति मास उपासना करनी चाहिए। साथ ही संन्यासियों को दक्षिणा भिन्न-भिन्न प्रकार के पुष्प समर्पित किये जाय। कार्तिक देनी चाहिए तथा वस्त्रों का दान करना चाहिए। मास से एक वर्ष या बारह वर्षों तक यह विधान चलना शिवपुराण-विष्णुपुराण में अष्टादश पुराणों की जो सूची चाहिए । वर्ष के अन्त में वह एक वृष छोड़ दे तथा पर्य- दी गयी है उसमें शिवपुराण की गणना है, वायुपुराण की कोपयोगी वस्त्र तथा कलश का दान करे । इस व्रत का नहीं। इसलिए कतिपय विद्वान् दोनों पुराणों को एक ही पुण्य सहस्रों अश्वमेध यज्ञों से बढ़कर है । इससे गम्भीर से ग्रन्थ मानते हैं । परन्तु दोनों पुराणों की विषयसूचियों में गम्भीर पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
मेल नहीं है (दे० आनन्दाश्रम, पूना से प्रकाशित वायुशिवदृष्टि-शैव मत का एक ग्रन्थ । उत्पलाचार्य के गुरु,
पुराण की विषयसूची)। शिवपुराण (विद्यश्वर खण्ड, काश्मीरीय शिवाद्वैतवाद के मुख्य आचार्य सोमानन्द ने
अ० २) के अनुसार इसमें मूलतः एक लाख श्लोक थे। इसकी रचना की थी। इसमें भर्तृहरि के शब्दाद्वयवाद व्यास ने इसका संक्षेप कर सात संहिताओं (खण्डों) का की विशेष समालोचना हुई है।
चौबीस सहस्र श्लोकों वाला शव पुराण (शिवपुराण) रचा । शिवनक्षत्रपुरुषव्रत-फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में हस्त नक्षत्र स्पष्टतः यह शैव पुराण है। इसके सात खण्डों के नाम के दिन उपवास करने में असमर्थ व्यक्ति को इसका आयो
इस प्रकार हैं : (१) विद्येश्वरसंहिता (२) रुद्रसंहिता जन करना चाहिए। यह नक्षत्रव्रत है । इसके शिव देवता
जिसमें सृष्टिखण्ड, सतीखण्ड, पार्वतीखण्ड, कुमारखण्ड, हैं। इस दिन शङ्करजी के शरीरावयवों को हस्त इत्यादि और युद्धखण्ड का समावेश है (३) शतरुद्रसंहिता (४) २७ नक्षत्रों के साथ संयुक्त करते हुए उनका आपादमस्तक कोटिरुद्रसंहिता (५) उमासंहिता (६) कैलाससंहिता पूजन करना चाहिए। तैल एवं लवण रहित नक्त विधि और (७) वायवीय संहिता । पं० रामनाथ शैव द्वारा से आहार तथा प्रति नक्त दिन को एक प्रस्थ चावल तथा
सम्पादित तथा वेंकटेश्वर प्रेस, बम्बई से प्रकाशित शिवघृत से परिपूर्ण पात्र का दान करना चाहिए। पारणा के पुराण में चौबीस सहस्र श्लोक है। इसमें उपर्युक्त सात समय शिव तथा उमा की मूर्ति तथा पर्यनोपयोगी वस्त्रों संहिताएँ पायी जाती है। का दान करना चाहिए।
शिवभागवत-अथर्वशिरस् उपनिषद् में शंकर अथवा शिव शिवनारायणी पंथ-सुधारवादी निर्गण शाखा का पन्थ, के लिए भगवान्' शब्द का प्रयोग हुआ है। इसलिए जिसका प्रवर्तन शिवनारायण नामक सन्त ने किया था। प्राचीन ग्रन्थों में शिव के उपासकों को 'शिवभागवत' शिवनारायण का जन्म गाजीपुर (उ० प्र०) जिले के भले- कहा जाने लगा। महाभाष्य (पाणिनि, ५.२.७८) में शिवसरी गाँव के राजपूत परिवार में हुआ था । इन्होंने संवत् भागवत का उल्लेख है । प्रशस्तपाद ने वैशेषिक सूत्रभाष्य १७९० वि० में इस मत का प्रवर्तन किया। इन्होंने के अन्त में महर्षि कणाद की वन्दना करते हुए कहा है कि गाजीपुर जिले में ही चार धामों के नाम से चार मठों की 'भगवान् महेश्वर' के प्रसाद से उन्हें ये सूत्र प्राप्त हुए थे। स्थापना की। इनके अनुयायियों में सभी वर्ण के लोग शिवभागवत स्मार्त आचारवादी होते हैं । सम्मिलित थे, परन्तु निम्न वर्ण और असवर्णों की प्रधानता शिवयोगयुक्त शिवरात्रिवत-फाल्गुन कृष्ण की शिवयोगयुक्त थी । ऐसा कहा जाता है कि दिल्ली का बादशाह मुहम्मद चतुर्दशी को इस व्रत का अनुष्ठान होता है। शिव इसके शाह (संवत् १७७६-१८०५ वि०) भी इस मत का अनु- देवता हैं । यह एक राजा की कथा से सम्बद्ध है जो पूर्व
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