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वैष्णवमताब्जभास्कर-व्रजवासीदास
जाते हैं, उसी तरह भक्तिमार्ग में वे विष्णुस्वामी सम्प्रदाय गव्य से नदी में स्नान करना चाहिए। अष्टादश भुजा के शिष्य माने जाते हैं। परन्तु विष्णुस्वामी के मत में वाली व्यतीपात की आकृति बनाकर, सुवर्णकमल में स्थाराधा-गोपाल की उपासना का विशेष प्रचलन है। पित कर गन्धाक्षत-पुष्पादि से उसका पूजन करना चाहिए। वैष्णवमताब्जभास्कर-सीतारामोपासक वैष्णव सम्प्रदाय के उस दिन उपवास का विधान है। एक वर्षपर्यन्त यह व्रत प्रधानाचार्य स्वामी रामानन्दजी महाराज ने वैष्णवधर्म के चलना चाहिए । तेरहवें व्यतीपात के समय उद्यापन करना संरक्षण के लिए वैष्णवमताब्जभास्कर नामक ग्रन्थ की । चाहिए। अग्नि में सौ घृत आहुतियों के अतिरिक्त दुग्ध, रचना की है। इसमें वैष्णवों के दैनिक आचार और तिल, समिधाओं के हवन के बाद घृत की धारा डालते भजन-पूजन का भली भाँति निर्देश किया गया है।
हए 'व्यतीपाताय स्वाहा” शब्द का उच्चारण करना वैष्णवसम्प्रदाय-दे० 'वैष्णवमत'।
चाहिए। कहा जाता है कि व्यतीपात सूर्य तथा चन्द्र का वैष्णववाङमय-ऋग्वेद (१०.९०) के पुरुषसूक्त में इसकी
आरम्भिक उपलब्धि होती है। महानारायण उपनिषद्, व्यासपूजा-आषाढ़ की पूर्णिमा के दिन इस व्रत का अनुमहाभारत, रामायण तथा भगवद्गीता इसका साधारण ठान होता है । विशेष रूप से संन्यासियों, यतियों, साधओं साहित्य है। भागवत लोग उपर्युक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त तथा तपस्वियों के लिए इसका महत्त्व है। दे० स्मृतिकोसभी स्मार्त ग्रन्थों में रुचि रखते हैं । भागवत सम्प्रदाय के स्तुभ, १४४-१४५; पुरुषार्थचिन्तामणि, २८४ । तमिलनाडु जो विशेष ग्रन्थ हैं, उनका यहाँ उल्लेख किया जाता है। में ज्येष्ठ शुक्ल १५ (मिथुनार्क) को इसका आयोजन किया इसका सबसे प्राचीन ग्रन्थ हरिवंश है। वैखानससंहिता, जाता है। स्कन्द उपनिषद्, भागवत पुराण, नारदभक्तिसूत्र, शाण्डिल्य- व्योमवत-इसके लिए श्वेत चन्दन का अँगूठे और अँगुली भक्तिसूत्र, वासुदेव एवं गोपीचन्दन उपनिषद्, वोपदेव कृत के जोड़ जैसा कुण्डलाकार आकाश बनाकर सूर्य के सम्मुख मुक्ताफल तथा हरिलीला, श्रीधर स्वामी (१४०० ई०)
रखना चाहिए । करवीर के पुष्पों से सूर्य का पूजन करना कृत भागवतभावार्थदीपिका तथा शुकसुधी कृत शुक्रपक्षीया चाहिए तथा आकाश की आकृति के पूर्व, दक्षिण, पश्चिम व्याख्या एवं वेदान्त सूत्र तेलुगु में) आदि ग्रन्थ इस सम्प्र- तथा उत्तर में क्रमशः केसर, अगर, श्वेत चन्दन तथा दाय से सम्बन्धित हैं।
'चतुःसम' और केन्द्र में रक्त चन्दन लगाना चाहिए । वैष्णवाचार-तान्त्रिक गण सात प्रकार के आचारों में इसका मन्त्र है 'खखोल्काय नमः ।' सर्य इसके देवता हैं। विभक्त हैं, उनमें वैष्णवाचार भी एक है । इसमें वेदाचार व्रज-गौओं का बाड़ा अथवा पशुचारण का स्थान (चराकी विधि के अनुसार सर्वदा नियमतत्पर रहना होता है, गाह) । रूढ प्रसंग में इसका अर्थ है वह स्थान जहाँ कृष्ण मद्य, मथुन वा उसका कथाप्रसङ्ग भी कभी नहीं किया ने गौएँ चरायीं, अर्थात् मथुरा और वृन्दावन के आस-पास जाता । हिंसा, निन्दा, कुटिलता और मांस भोजन का का भमण्डल । यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यमुनातटसदा परित्याग होता है। रात्रि में कभी माला तथा मन्त्र वर्ती क्षेत्र है, जहाँ विष्णु के अवतार श्री कृष्ण ने बालका उपयोग नहीं किया जाता । दे० 'आचारभेद' । लीलायें की थीं। व्रजमण्डल बड़ा पवित्र माना जाता है । वोपेदेव-तेरहवीं शती के अन्त में महाराष्ट्र में बोपदेव भक्तिकाल के प्रमुख आचार्य स्वामी हरिदास, हित हरिनामक एक व्युत्पन्न विद्वान् का उदय हुआ। इन्होंने भाग- वंश और अष्टछाप के आठों कवि यहीं हुए । यहाँ वत पुराण पर अनेक ग्रन्थ रचे। उनमें से हरिलीला बोली जाने वाली भाषा को 'व्रजभाषा' कहते हैं। तथा मुक्ताफल अधिक प्रसिद्ध है। हरिलीला में भागवत इसमें अनेक कृष्णप्रेमी कवियों ने मधुर रचनाएँ की हैं । पुराण का सारांश है तथा मुक्ताफल इसकी शिक्षाओं का यह हिन्दी साहित्य का एक अति उदात्त, सरस और महसंग्रह है।
त्त्वपूर्ण अङ्ग है। व्यतीपातव्रत-व्यतीपात पञ्चाङ्गस्थ योगों (विष्कम्भ, प्रीति व्रजवासीदास-राधा-कृष्ण एवं ग्वाल-बालों के बालजीवन
इत्यादि) में से है। धर्मशास्त्र में इसकी कई प्रकार से तथा प्रेम को आधार बनाकर इन्होंने व्रजविलास नामक व्याख्या की गयी है । व्यतीपात के दिन मनुष्य को पञ्च- ग्रन्थ की रचना १८००वि० के लगभग की।
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