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लीलाशक-लोहाभिसारिकाकृत्य
हैं । अपने साहित्य को गुप्त रखने लिए साम्प्रदायिकों ने नाम कृष्णपाद मिलता है। जन्म भी दक्षिण में ही हुआ ग्रन्थ लेखन के लिए एक भिन्न लिपि का भी उपयोग था। इन्होंने रामानुजाचार्य का मत समझाने के लिए किया है।
दो ग्रन्थों की रचना की-तत्त्वत्रय' और 'तत्त्वशेखर' । लोलाशुक-विष्णुस्वामी सम्प्रदाय के चौदहवीं-पन्द्रहवीं 'तत्त्वत्रय' में चित् तत्त्व या आत्मतत्त्व, अचित् या जड़ शती के एक आचार्य बिल्वमङ्गल हो गये हैं। इनका ही तत्त्व और ईश्वर तत्त्व का निरूपण करते हुए रामानुजीय दूसरा नाम लोलाशक है। इन्होंने 'कृष्णकर्णामृत' नामक सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया है। कहीं-कहीं पर अन्य बड़े ही मधुर भक्तिरसपूर्ण काव्यग्रंथ की रचना की है। मतों का खण्डन भी किया गया है। इस ग्रन्थ पर बर्बर लुम्बिनी (कानन)-यह मूलतः बौद्ध तीर्थ है। अब यहाँ मुनि का भाष्य भी मिलता है। स्थानीय लोग देवी की पूजा करते हैं। यह बुद्ध की माता लोकायतदर्शन-लोक एवं आयत, अर्थात् 'लोकों' जनों में माया देवी का आधुनिक रूप है। यह स्थान नेपाल की 'आयत' फैला हुआ दर्शन ही लोकायत है । इसका दूसरा तराई में पूर्वोत्तर रेलवे की गोरखपुर-नौतनवाँ लाइन के अर्थ वह दर्शन है जिसकी सम्पूर्ण मान्यताएँ इसी भौतिक नौतनवाँ स्टेशन से २० मील उत्तर है और गोरखपुर-गोंडा जगत् में सीमित हैं। यह भौतिकवादी अथवा नास्तिक लाइन के नौगढ़ स्टेशन से १० मील है। नौगढ़ से यहाँ दर्शन है । इसका अन्य नाम चार्वाक दर्शन भी है। विशेष तक पक्का मार्ग भी बन गया है । गौतम बुद्ध का जन्म विवरण के लिए दे० 'चार्वाक दर्शन' । यहीं हुआ था। यहाँ के प्राचीन विहार नष्ट हो चुके हैं। लोचनदास-चैतन्य सम्प्रदाय के इस प्रतिष्ठित कवि ने एक अशोकस्तम्भ है जिस पर अशोक का अभिलेख सोलहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में 'चैतन्यमङ्गल' उत्कीर्ण है। इसके अतिरिक्त समाधिस्तुप भी है, जिसमें बुद्ध नामक काव्य ग्रन्थ की रचना की । की मूर्ति है । नेपाल सरकार द्वारा निर्मित दो स्तूप और लोपा-तैत्तिरीय संहिता (५.५९.१८.१) में लोपा अश्वमेध हैं । रुम्मिनदेई का मन्दिर तथा पुष्करिणी दर्शनीय है। यज्ञ की बलितालिका में उद्धृत है। इसे सायण ने एक लोक-ऋग्वेद आदि संहिताओं में लोक का अर्थ विश्व है। प्रकार का पक्षी, सम्भवतः श्मशानशकुनि' (शवभक्षी तीन लोकों का उल्लेख प्रायः होता है। 'अयं लोकः' कौवा) बतलाया है। (यह लोक) सर्वदा 'असौ लोकः' (परलोक अथवा स्वर्ग) के लोपामुद्रा-ऋग्वेद (१.१७९.४) की एक ऋचा में लोपाप्रतिलोम अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। लोक का कभी-कभी मुद्रा का उल्लेख अगस्त्य की स्त्री के रूप में जान पड़ता स्वर्ग अर्थ भो किया गया है। वैदिक परिच्छेदों में अनेक है। यह प्रबुद्ध महिला स्वयं ऋषि थी। विभिन्न लोकों का उल्लेख हुआ है । लौकिक संस्कृत में लोमश ऋषि-लोमश ऋषि को 'लोमशरामायण' का प्रायः तीन लोकों का ही उल्लेख मिलता है : (१) स्वर्ग
रचयिता माना जाता है। ये अमर समझे जाते हैं।
रचयिता माना जाता है। अमर: (२) पृथ्वी और (३) पाताल ।
लोहाभिसारिकाकृत्य-जो राजा विजयेच्छु हो उसे आश्विन लोकव्रत-चैत्र शुक्ल पक्ष में इस व्रत का प्रारम्भ होता है। शुक्ल प्रतिपदा से अष्टमी तक यह धार्मिक कृत्य करना सात दिनों तक निम्न वस्तुओं का क्रमशः सेवन करना चाहिए। सोने, चाँदी अथवा मिट्टी की दुर्गाजी की चाहिए-गोमूत्र, गोमय, दुग्ध, दधि, घृत तथा जल प्रतिमा का पूजन इसमें होता है । इस अवसर पर अस्त्रजिसमें कुश डूबा हुआ हो। सप्तमी को उपवास का विधान शस्त्र तथा राजत्व के उपकरण (छत्र, चँवर आदि) का है । महाव्याहृतियों (भूः भुवः स्वः) का उच्चारण करते भी मन्त्रों से पूजन किया जाना चाहिए। जनश्रुति है कि हुए तिलों से हवन करना चाहिए। वर्ष के अन्त में वस्त्र, लोह नाम का एक राक्षस था। देवताओं ने उसके काँसा तथा गौ दान की जानी चाहिए। इस व्रत से व्रती शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये । आज जितना भी लोहा को राजत्व प्राप्त होता है।
मिलता है वह उसी के शरीर के अवयवों से निर्मित्त हुआ लोकाचार्य-विशिष्टाद्वैत सम्प्रदाय में लोकाचार्य वेदान्ता- है। लोहाभिसार का तात्पर्य यह है कि लोहे के अस्त्रचार्य के ही समसामयिक और विशिष्ट विद्वान् हुए है। शस्त्रों को आकाश में घुमाना ( लोहाभिसारोऽस्त्रभृतां इनका काल विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी और पिता का राज्ञां नीराजनो विधि:-अमरकोश)। जिस समय
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